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मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
heart प्रेम अल्पायु होता है! आप उसको जीवन बना लेते है,फिर छूट जाता है, चटक के टूट जाता है । बिखर जातें है हम जैसे हवा में सूखे पत्ते। प्रेम दो लोगों में होता ही नही, वो हर एक के भीतर जीता है अपना जीवन। इसलिए शायद हाथ की रेखाओं में समा जाता है। प्रेम अल्पायु होता है ! हृदय एक द्वार होता है, प्रेम पथिक की तरह बिन बुलाए आता है। कहीं से कभी भी बस आकर द्वार पर धप- धप करता है। हम खोलते नही तो वो धक्का देकर भीतर प्रवेश कर जाता है, धमनियों में रक्त के साथ प्रवाह में सांसों में घुलता जाता है, फिर एक दिन प्रेम का प्रवाह रुक जाता है कहते है मृत्य हुई है हृदय की गति रुकने से। धमनियो में कुछ जम सा गया था शायद। वो प्रेम था जो जम गया था। प्रेम अल्पायु होता है! ©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS #Heart प्रेम अल्पायु होता है! आप उसको जीवन बना लेते है,फिर छूट जाता है, चटक के टूट जाता है । बिखर जातें है हम जैसे हवा में सूखे पत्ते। प्र
Dinesh Sharma Dinesh
Devesh Dixit
आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे। मंजिल के रास्ते भी तो कच्चे न थे।। डगमगा रहे मेरे ये कदम बस यूँ ही। राह में मिले राहगीर तो सच्चे न थे।। भटकाया ऐसा मुझे मंजिल से मेरे। कहीं मेरे फैसले भी तो कच्चे न थे।। खैर फिर मुड़ चला मंजिल की ओर। अब देखा कि वो रास्ते तो अच्छे न थे।। कँटीली झाड़ियाँ बिखरी थीं जहाँ तहाँ। जाँच कर देखा वो कांँटे तो कच्चे न थे।। जब संभल कर रखा भी पैर इधर उधर। तब जाना मेरे जूते भी तो अच्छे न थे।। चटक चटक कर उखड़ रहे थे जहाँ तहाँ। मैं हैरान था मेरे जूते भी तो सस्ते न थे।। कहीं मिला मोची तो ठीक कराए मैंने। फिर उसने कहा ये जूते तो कच्चे न थे।। क्यों टूट गए ये जूते यूँ जगह जगह से। अब लगा आपके ये रास्ते तो अच्छे न थे।। किसी तरह पाया फिर मंजिल को मैंने। जबकि आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे।। ......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #आँधियो_क_इरादे_तो_अच्छे_न_थे #nojotohindi #nojotohindipoetry #nojotohindipoetry #nojotohindi t आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे आँधियों के
Abhishek 'रैबारि' Gairola
थोड़ा कुछ कुछ लिखता हूँ जिसमें से बहुत कुछ बकवास है, शायद, लगभग सब कुछ ही। इस कबाड़ में कभी कभी, एक दो शब्दों का समूह भीड़ से कुछ अलग, कुछ अप्रत्यक्षता से परिपूर्ण, वही लुका रहता हैं। हालांकि ये हीरे तो नही हैं जो एक चटक चमक छोड़ अपने अस्तित्व का परिचय दें परंतु इतने गोधुले भी नहीं कि ढूंढने से मिले भी नहीं। थोड़े भाग्य, कुछ अन्वेषण से शायद इनका साक्षात्कार हो जाये। अधिक कुछ नहीं तो गुम होने से बच जाएंगे, नहीं तो थोड़ा बहुत ही भार रखते हैं सृष्टि पे ये, उसी में धूल जाएंगे। ©Abhishek 'रैबारि' Gairola #Sawera थोड़ा कुछ कुछ लिखता हूँ जिसमें से बहुत कुछ बकवास है, शायद, लगभग सब कुछ ही। इस कबाड़ में कभी कभी, एक दो शब्दों का समूह भीड़ से कुछ
Aklesh Yadav
चार दिन की चटक चांदनी फिर अंधेरी रात इसलिए यदि सुख का समय आया है तो यह मत समझो कि अब बुरा समय नहीं आएगा ©Aklesh Yadav #ramadan चार दिन की चटक चांदनी फिर अंधेरी रात/Life changing speech
Nisheeth pandey
तेरे मेरे नसीबों का खेल कहें , या..... गठबंधन की जुनून में खोट कहें .... कि तुम मेरी होकर भी मेरी ना हुई..... हम तुम्हारे होकर भी तुम्हारे ना हुए ..... मैंने तो कोशिश बहुत की.... तुझे मनाने की मनन बहुत की ..... जुनून की इन्तहां में शायद कमी जरूर हुई .... तुम भी तो मुझे पाने का कोशिश कहाँ की ..... इश्क फ़ितूर की चक्की में निपट गया ... नसीब इश्क से बेवफाई में चटक गया.... रब भी हमारा साथी न हुआ ... मिलन की डोर तोड़ गया .... तेरे मेरे जुदाई की राह बनता गया ... भूलभुलैया की गलियों में भटता गया ...... हमारा इश्क जो आंखों में सँवरता रहता था ... धीरे धीरे इश्क हमारे आखों से पानी सा बह गया ... #निशीथ ©Nisheeth pandey तेरे मेरे नसीबों का खेल कहें , या..... गठबंधन की जुनून में खोट कहें .... कि तुम मेरी होकर भी मेरी ना हुई..... हम तुम्हारे होकर भी तुम्
Sarita Shreyasi
समेटना क्या? कल की उम्मीद में सहेजना क्या? समय मिला तो जी लिया, न मिल सका तो बासी भी न होने दिया। कल आएगा, नये पल के साथ। जो प्रत्यक्ष होगा, प्रस्तुत होगा उसको उसकी पूर्णता में जीयेंंगे। जीवन समय के साथ बह तो रहा है, मैं क्यों मुट्ठी भर समय सहेजने में लगी हूँ। यह जानते हुए कि इन मुट्ठियों में न कभी रेत ठहरा है न पानी। ये अधूरे अहसासों का पुलिंदा रखा ही रह जाएगा। (Read in caption) पूजा पूरी होते ही जल्दी से उठी, समय ज्यादा हो गया था, अतिथियों को खाना अभी बाकी था। जल्दी- जल्दी में कपड़े बदलते वक़्त हथेलियों से जब नई साड
Shree
हल्दी और धनिया हल्दी की हरियाली गई तब रंग आया धनिया धूप लगे तभी चटक स्वाद आया डिग्री तमाम उन फाईलों में सहेज आया जब-जब भूख लगी तो घर ही याद आया मां का ला
Shree
है ना, कहिए! तुम कोई नहीं हो मेरे, पर हां मेरे सब कुछ हो, अंबर रुठ जाए तो सूरज दिन ठहर जाए तो चंदा वक्त की फ़ेहरिस्त में सबब तुम सुकूं,तुम्हीं एतवार
Sita Prasad
दर्द से गुफ़्तगू ( कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें) कई बार हम खुद से बातें करते हैं, restzone, आपने बिल्कुल सही कहा कि हम हमारे अंदर छिपे एहसासों से कभी बात करते हैं या नहीं। बातचीत भी एक अद्भ