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NEERAJ SIINGH
किसी के हालातों का किसी की गरीबी का मजाक मत उड़ाओ क्या पता कब किसको कौन पीस दें हर चीज लौटती जरूर है ये समय है इसकी चक्की घूमती इतनी बारीक महीन से महीन चीजें पिसती हैं तो गरीब की और हालातों के मजबूर की चक्की भी चलेगी , और पीसेगी गंदगी को #neerajwrites गंदगी पिसेंगी जरूर
Rjt
मेंहदी के साथ में दिल ओ जज़्बात पिसे हैं... #rjt #ishq #mohabbatkadard
Anamika
जिम्मेदारियां भी बड़ी जिद्दी होती है मन की ख्वाहिशों को समझौते में बदल सिरहाने को चुपके से भिगो ही जाती है. #जिम्मेदारियाँ #समझौता #देखा मैंने उसको बार बार समझोता करते... साहब मामूली बंदा है,कब तलक जिम्मेदारियों के बोझ तले पिसेगा... #आमआदमी #yqqou
Rashmi Hule
एक क्षण मंतरलेला आठवात निगुतीने जपलेला काळोखरात्री विचार तुझेच अन् अचानक तु अवतरलेला विषयाला शब्दमर्यादा नाही शुभदुपार मित्रहो 🙂 एक क्षण मंतरलेला हा विषय दिपाली पिसे यांनी सुचविला आहे, अभिनंदन दिपाली जी! 👌💐👍 #एकक्षण
Sarita Prashant Gokhale
येता पहिला पाऊस देतो मनाला गारवा, सृष्टी सजताना सारी शालू नेसते हिरवा.! येता पहिला पाऊस नाचे मोर रानामध्ये, पिसे गळताना दाटे रडू सारे मनामध्ये.! येता पहिला पाऊस होतो शेतकरी बाप, देतो जगाला आधार दिसे घामाचा प्रताप.! येता पहिला पाऊस वारा भरे दान असं रानी वनी हिरवळ तेव्हा ओठी भरे हसं.! ©Sarita Prashant Gokhale शीर्षक:- पहिला पाऊस येता पहिला पाऊस देतो मनाला गारवा, सृष्टी सजताना सारी शालू नेसते हिरवा.! येता पहिला पाऊस
Dr Jayanti Pandey
जागो ग्राहक जागो.... लोकतंत्र में लगे हैं चोर दिखा कर सपने कुछ झूठे कुछ आधे लेकर अपनी छान पगहिया जो भाग सको तो जल्दी भागो जागो ग्राहक जागो.... (पूरी कविता कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें).. बौने नेताओं की पर्वत सी आकांक्षाएं लोकतंत्र पर बोझ हैं जनता आपस में लड़े, भिड़े कट मर जाए बस नेताओं को करनी मौज है कहते हैं -ज्यादा चीखो
अनिता कुमावत
मनुष्य सामाजिक प्राणी है सोशल डिस्टेसिंग रखें भी तो कैसे ...???? कोरोना गाइडलाइन खत्म होते ही हिल स्टेशनों पर भारी भीड़ .... क्या कहें और क्या करें ☹️☹️ दूसरी लहर पूरी तरह खत्म नहीं हुई है, तीसरी लहर का
Devesh Dixit
महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये सुर ताल।। बीच वर्ग के हैं पिसे, देख हुए नाकाम। अब सोचें वह क्या करें, बढ़ा सकें कुछ काम।। फिर भी हैं कुछ घुट रहे, मिला न जिनको काम। महँगाई के दर्द में, जीना हुआ हराम।। चिंतित सब परिवार हैं, दें किसको अब दोष। महँगाई ऐसी बढ़ी, थमें नहीं अब रोष।। विद्यालय व्यवसाय हैं, दिखते हैं सब ओर। शुल्क मांँगते हैं बहुत, पाप करें ये घोर।। मुश्किल से शिक्षा मिले, कहते सभी सुजान। महँगाई की मार है, यही बड़ा व्यवधान।। .......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #महँगाई_की_मार #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये
अशोक द्विवेदी "दिव्य"
एक कप इश्क़ (कॉफ़ी) कैप्शन में पढ़िए । इंटरनेशनल कॉफ़ी डे एक कप कॉफ़ी के वजह से बहुत से दिल जुड़ते है रिश्ते बनते हैं । और लगभग हर प्रेम की शुरुआत का दौर इसके इर्दगिर्द ही होता है
AK__Alfaaz..
आओ...! कुछ देर साथ बैठतें हैं, मन के बरामदे मे, एक विश्वास की, आराम कुर्सी पर तुम बैठना, एक प्रेम की खाट पर मैं, किंतु आने से पूर्व, अपने अहम के स्वेद से लथपथ, अपनी रूढ़ियों की कमीज को, दिल के कमरे मे, समर्पण के दरवाजे के पीछे लगी, संवेदना की खूँटी पर टाँग देना, ताकि तेरे पुरूषार्थ मे डूबे, तेरे गर्व की बू न फैले यहाँ, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #रिवाज़ आओ...! कुछ देर साथ बैठतें हैं, मन के बरामदे मे, एक विश्वास की,