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Pushpendra Pankaj
जब ईमान कम हुआ , बेईमान मन हुआ । खुद ही इतराते रहे, रौब सब बेदम हुआ । सिर चढ़ा 'मैं' का नशा , जख्मी शब्द 'हम'हुआ। रूप-नूर क्यों घटा, मन को यही गम हुआ। यूँ तो चहल पहल थी , मेहफिल और बाजार मे। फिर क्यों अकेले खड़े , और कोई ना हमदम हुआ। पुष्पेन्द्र पंकज ©Pushpendra Pankaj #Poet #poem
JITENDRA PATEL
हौसला देख मेरा झुक गया वो पर्वत भी वो जिसे नाज़ था ख़ुद की कभी ऊँचाई पर ।। ©JITENDRA PATEL #poem #Poet
JITENDRA PATEL
बहा के पसीना मंजिल को पाना पडता है तरक्कीयां दहेज में नही मिलती इन्हें कमाना पड़ता है" ©JITENDRA PATEL #Poet #poem