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Dr.asha Singh sikarwar
बसंत ! तुम लौट जाओ अपने गाँव वहाँ खेत-खलिहान बयार-दुलार यहाँ क्या रखा शहर में टोकरी भर फूल बरौनीभर धूप विष गंध में घुटती साँसे गाँव में माँ है जिसकी आखों से तु झरता है निश-दिन और 'वो' भी जिसकी कोर से सटकर बैठा 'तु ' डॉ आशासिंह सिकरवार अहमदाबाद गुजरात 10.2.19 #NojotoQuote वसंत #वसंत वसंत #best #hindi #poetry
Yashpal singh gusain badal'
वसंत लता वसन संग रति करेँ सदनानन मेँ । पियूष भरा पुष्प शोभित आनन मेँ । मदन उत्साह ,अनंग मधु विकसत तन मेँ । तरु-मरु शोभित, भ्राँति करे तूर्य सी जन मेँ । अनंग छबि भरे, परिपूर्ण मुग्ध धौर आभा । श्रंग गिरि सरि मेँ ,मन मोहित करे आभा । मारुत हिलोर दे तन्वी ,न्रत्य कटि मटकावे । भानु शशि सम लगे , पुष्प मास हर्षावे । रचना- यशपाल सिह बादल . ©Yashpal singh gusain badal' वसंत
वसंत #कविता
read moresarika thakur
वसंत आया है, ऐसे ही तुम भी आओ ,पीली सरसों खिली, कोयल की कूक बोली, पेड़ों पर फूल खिले, फूलों से भंवरे मिले,मिलकर कहने लगे वसंत आया है तुम भी चले आओ वसंत
वसंत
read moreमोहित खान
एक किरण चमक रही है उसमे हजारी तरंग निकस रही है वसंत के राजा कामदेव के पुत्र की जैसे लालिमा दलक रही है ©मोहित खान #वसंत
Dr. Bhagwan Sahay Meena
शीर्षक - आया वसंत विकल नव कोंपले, नव कली की चित्कार, मुरझाए फूलों का रूदन, ले वसंत आया। गरीब दीनहीन की दुर्दशा, महंगाई की मार, भ्रष्टाचार का विकट जाल, ले वसंत आया। जाति धर्म के नाम रचित, चक्रव्यूह कितने, नित नए षड्यंत्र मनुज के, ले वसंत आया। हर दहली पर, मां बहन बेटी का अपमान, बगिया में भंवरों की क्रुरता, ले वसंत आया। अब रिश्ते ही, रिश्तों के काटते गले बेरहम, मां के दूध में चलती तलवार, ले वसंत आया। स्वार्थ की मिठास में, खून से तरबतर दामन, तो कहीं दरारों से भरा आंगन, ले वसंत आया। संबंधों में, अपनों के लिए बदल गये अपने, बाजार से झूठ बोलते आईने, ले वसंत आया। अदली बदली सरकारें, बिन बदले मतदाता, भोर सुहावनी मृग मरीचिका, ले वसंत आया। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #वसंत
हरीश भट्ट
आया वसंत उर आंगन में प्रति पल पल पीत हुई धरती । ले स्नेह निमंत्रण सूरज की मृदु किरणे नभ से हैं झरती ।। तितलियों का कैसा गुंजन ये ... कोलाहल सा अमराई में । ऋतु बदल रही चोली चूनर सब व्याधि त्रास को हैं हरती ।। ©हरीश भट्ट #वसंत
Sunita Bishnolia
मंद पवन भी चल रही,ज्यों सरगम के साज। करते स्वागत सुमन है, आए हैं ऋतुराज।। ©Sunita Bishnolia #वसंत
Sunita Bishnolia
अपनी आभा से धरती को करने को गुलजार, सुमन धरा पे खिले संग ले सतरंगी संसार। पहन हरित-वसन-बसंत ने जीवन दिया धरा को, मंद-महक पवन संग उड़-उड़ भर देती घर द्वार #वसंत #
#वसंत #
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