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कौशिक
प्रकृति में हर एक चीज के लिए एक नियत नियम है मनुष्य को छोड़कर वृक्ष सांसे देते हैं ये उसका नियम है उन्हे दूषित करने का कार्य करता है मनुष्य फलदार पेड़ ताजे फल देते हैं उनमें मिलावट करता है मनुष्य नदियां जीवन देती है जल के रूप में उनका अनुचित दोहन करता है मनुष्य उस जल को दूषित कर जहर करता है मनुष्य जंगल ,पर्वत औषधि देते हैं लालच में उनकी विनाश करता है मनुष्य ऐसी अनेकों चीजे हैं जो अपने नियत नियम से चलती हैं कोई नियम नहीं है तो केवल मनुष्य के लिए उसके लिए बस एक ही नियम हैं लोभ लालच स्वार्थ जो प्रकृति ने उसके लिए निर्धारित नही किया उसे स्वयं चुना है मनुष्य ने और अब मनुष्य अपने चुने नियम पर भी स्थिर नहीं वह गिरता जा रहा है बहुत गिरता जा रहा इतना की उसे लोगो की जिदंगी में भी दिखता है बस लोभ लालच व्यापार जिसके वशीभूत मर चुका है इंसान प्रत्येक इंसान के भीतर का #न जाने कहां तक और गिरेगा मनुष्य
Ajay Chaurasiya
तुमसे दूरी कब तक ? यह परहेज जरूरी कब तक ? तुम लौट आने को नहीं जाते क्या ? ये मजबूरी कब तक ? तुझे चाहकर भी कह नहीं पाते, करे तुमसे इजहार कब तक ? ये मन मन में करना इकरार तुमसे, मेरी जरूरत कब तक ? तुम नहीं समझे क्या ? हाल मेरे दिल का अब तक ?.... ©Ajay Chaurasiya #कब तक
K K Joshi
____कब तक____ अरी ओ घुटन! मुस्कानों के मधुर जाल में कब तक कैद रहोगी तुम अरी ओ नदी! तपी रेत के भीतर भीतर कब तक मौन बहोगी तुम अरी ओ पवन! इठलाती तू जिस बहाव पर चक्रवात वो, झील बन गया अरी ओ घटा! जिसने तुझ में यौवन देखा वो दर्पण अश्लील बन गया वृक्ष! तुम्ही हो शायद जिसने मेरा सारा जहर पिया है पंछी! तुमने यौवन को हर बार एक नव स्वप्न दिया है कब तक
अर्हंत
तेरी आँखों से ही जागे सोये हम कब तक आखिर कब तक आखिर तेरे घाम को रोये हम वक्त का मरहम ज़ख्मों को भर देता हैं शीशे को भी यह पत्थर कर देता हैं रात में तुझ को पाये दिन मे खोये हम तेरी आँखों से ही जागे सोये हम हर आहट पर लगता हैं तू आया हैं धूप हैं मेरे पीछे आगे साया हैं खुद अपनी ही लाश को कब तक ढोये हम तेरी आँखों से ही जागे सोये हम "निदा फाज़ली" ©अर्हंत कब तक.......
Mariya Salam
ये मुहब्बत मुझे रोलाएगी कब तक.. इंतज़ार तेरा मुझे करवाएगी कब तक.. तरसती रहीं हूँ मैं तेरी एक नज़र के लिए, ये उम्मीद ए वफ़ा सताएगी कब तक मांगी है मुहब्बत उससे जो खुद खाली दामन "रोज "खाली दामन मुझे तरसाएगा कब तक ©Mariya Salam #कब तक
Jyoti Prakash
कब तक यूं ही चलती रहेगी ये जिंदगी फिर से बही रात बही दिन की कहानी है फिर क्यों दो दिन की ही रहती है क्यों नहीं सदा बहार रहती ये जिंदगी क्यों है ये गमों के साय और क्यों नहीं सदा खुशी रहती कब तक चलेगा ये सब कहते हैं ये दुनिया का दस्तूर है सभी जाने को मजबूर हैं सदियों से ऐसा ही होता आया है और कोई इसे बदल नहीं पाया है कब तक यूं ही चलता रहेगा कब तक और कब तक? ©Jyoti Prakash #कब तक