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Vikas Ghatal
सुना है हवा के साथ साथ रेत भी उडती हैं कही दुर किसी किनारे लग जाती हैं किनारे बनते हैं लोग आते हैं वही बैठ कर सागर की लहरे समेटे ढलता सुरज याद रेह जाता है उसी रेत में छोड जाते उनके निशान सुना है हवा साथ साथ रेत भी उडती है सुना है हवा के साथ रेट भी उडती है
HS KUSHAWAHA
💕 पूछा जो उसने...इश्क क्या है? हमने भी कह दिया बस एक अफवाह...जो उडती रहती है तुम्हारे और मेरे दरमियां•••||| ©HS KUSHAWAHA #mohabbat 💕 पूछा जो उसने...इश्क क्या है? हमने भी कह दिया बस एक अफवाह...जो उडती रहती है
ghanshyam bohra
राघव_रमण (R.J)..
कला की देवी थी ललना उसपर शक्ति का था साथ तुमने महिषासुर बनकर ललकारा आब देखो क्या होता अभिशाप जो पुजने योग्य थी सबकी दुत्कार बनाकर क्या पाया जो उडती आकाश गगन मध्य बरबाद बनाकर क्या पाया लडकियो के साथ बलात्कार के विरोध मे ये कविता #क्या_पाया चीखों मे सिमटी दुनियां वो अपनी धुन मे लगा रहा वो बिलख रही थी खुद मे ही
Ajay rajpoot
ये शायरी उन लडकियों के लिए जो आशमान में उडती हैं लडकिया ज्यादा आशमान में न उडों और ये न भूलो की लडकें तुमसे ऊपर उडतें हैं क्योकि लडकें चाँद
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
संग रहे अर्धांगिनी , लेकर हाथ गुलाल । प्रीति-प्रीति में मैं करूँ, आगे अपने गाल ।। रंगों अपनी प्रीति से , तुम अब मेरे अंग । बहका-बहका मैं रहूँ , जैसे पीकर भंग ।। फाग मनाएंगे सजन , आज तुम्हारे संग । तुम बिन जीवन में नही , देखो कोई रंग ।। प्रीति रंग जबसे चढ़ा , हो गई मैं मलंग । उडती रहती संग में , जैसे डोर पतंग ।। संग तुम्हारे हो सदा , सुनो सभी त्यौहार । तुम पर ही छलके सदा , निशिदिन मेरा प्यार ।। खट पट तो होती रहे , रहे सदा जो साथ । प्रीत बढायेगी यही , छोड़ न मेरा हाथ ।। ०७/०३/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR संग रहे अर्धांगिनी , लेकर हाथ गुलाल । प्रीति-प्रीति में मैं करूँ, आगे अपने गाल ।। रंगों अपनी प्रीति से , तुम अब मेरे अंग । बहका-बहका मैं र
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
घर बाबुल के बनकर चिडिय़ा जो उडती रहती आँगन में, प्यार भरे रिश्तों की होती थी बरसातें तब आँगन में, रिश्तों में थी नहीं दीवारें सोती वो माँ की बाहों में , संग भाई के खेली कूदी नहीं कभी जो अपवादों में, घर बाबुल के बनकर चिड़िया जो उड़ती रहती आँगन में, आज सयानी होकर जानी नारी है अपवादों में , भागी दारी हर घर में हैं पर कभी न हकदारों में , शिक्षा दिक्षा चूल्हा चौका दिए गए संस्कारो में, घर के बाहर की दुनिया को छीन लिए अधिकारों में , घर बाबुल के बनकर चिड़िया जो उड़ती रहती आँगन में महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR घर बाबुल के बनकर चिडिय़ा जो उडती रहती आँगन में, प्यार भरे रिश्तों की होती थी बरसातें तब आँगन में, रिश्तों में थी नहीं दीवारें सोती वो माँ की