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Deepak Kumar Katariya
Vinod Umratkar
प्रेमाची रेष जात आहे डोक्यावरचे हळूहळू सारे केस। तरी अजून जुळली नाही,कुठे प्रेमाची रेष। किती केलेत प्रयत्न,किती उपवास नी यज्ञ। ओलांडुन गेली आता,माझ्या वयाचीही वेस। भरली होती एकदा, सुंदरा एक ती मनात। नेमके त्याचं वेळी कमी गेले डोईवरचे केस। दोष देऊ कुणा कुणा,घडला काय गुन्हा। आणखी किती रे देवा वाट पाहू मी शेष । ठरवलं शेवटचे,आता राहायचे एकटेच। समजा कुणी बैल ,की समजा मज मेष। हात पाय जोडुनी, करितो मी विनवणी जुळून द्या की राव,माझी कुठं प्रेम रेष। Pic Credit :- google प्रेमाची रेष जात आहे डोक्यावरचे हळूहळू सारे केस। तरी अजून जुळली नाही,कुठे प्रेमाची रेष। किती केलेत प्रयत्न,किती उपवा
pooja d
ही तर साऱ्यांचीच व्यथा ज्याची त्याची वेगळी कथा, तुझे जात आहेत डोक्यावरचे केस अन माझे चेहऱ्यावरचे तेज, तुझ्या काय माझ्याही मनात भरला होता राजकुमार, पण बघितले मी त्याचे उडालेले छप्पर, तरीही आवडला होता मला तो फक्त वाट बघत होते कधी म्हणेल हो, तू सांग तुझ्या सुंदरेला, तुझ्या मनातलं मी ही सांगेन माझ्या राजकुमाराला बघू आधी कुणाचं जुळत..... Pic Credit :- google प्रेमाची रेष जात आहे डोक्यावरचे हळूहळू सारे केस। तरी अजून जुळली नाही,कुठे प्रेमाची रेष। किती केलेत प्रयत्न,किती उपवा
Harshad Deshmukh
......आहेच ती जगात भारी गेले दोन तीन दिवस 'ती'च्या आठवणीत रमल्यामुळं ,सहज भुतकाळात फेरफटका मारल्याचा भास झाला.टाईम मशीन खरोखर अस्तित्वात येईल एव्हढे परफेक्ट दिवस आठ
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड🙏 लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥ पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो ओर समुद्र की खाई -उस पर भी सोने के परकोटे (चार दीवारी) का तेज प्रकाश कि जिससे नेत्र चकाचौंध हो जाए॥ छन्द 1 लंका नगरी और उसके महाबली राक्षसों का वर्णन कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना। चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥ गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै। बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥ उस नगरी का रत्नों से जड़ा हुआ सुवर्ण का कोट,अतिव सुन्दर बना हुआ है-चौहटे, दुकाने व सुन्दर गलियों के बहार, उस सुन्दर नगरी के अन्दर बनी है-जहा हाथी, घोड़े, खच्चर, पैदल व रथो की गिनती कोई नहीं कर सकता और जहा महाबली, अद्भुत रूपवाले राक्षसो के सेना के झुंड इतने है कि जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता॥ छन्द 2 लंका के बाग-बगीचों का वर्णन बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं। नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥ कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं। नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥ जहा वन, बाग़, बागीचे, बावडिया, तालाब, कुएँ, बावलिया शोभायमान हो रही है। जहां मनुष्य कन्या, नागकन्या, देवकन्या और गन्धर्वकन्याये विराजमान हो रही है – जिनका रूप देखकर, मुनि लोगोका मन मोहित हुआ जाता है॥कही पर्वत के समान बड़े विशाल देहवाले महाबलिष्ट, मल्ल गर्जना करते है और अनेक अखाड़ों में अनेक प्रकारसे भिड रहे है और एक एक को आपस में पटक पटक कर गर्जना कर रहे है॥ छन्द 3 लंका के राक्षसों का बुरा आचरण करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं। कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥ एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही। रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥ जहां कही विकट शरीर वाले करोडो भट,चारो तरफ से नगरकी रक्षा करते है और कही वे राक्षस लोग, भैंसे, मनुष्य, गौ, गधे,बकरे और पक्षीयों को खा रहे है॥राक्षस लोगो का आचरण बहुत बुरा है।इसीलिए तुलसीदासजी कहते है कि मैंने इनकी कथा बहुत संक्षेपसे कही है।ये महादुष्ट है, परन्तु रामचन्द्रजीके बानरूप पवित्र तीर्थ नदी के अन्दर अपना शरीर त्याग कर, गति अर्थात मोक्षको प्राप्त होंगे॥ ...निरंतर मंगलवार को..., विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 100 से 110 नाम 🙏🌹 100 अच्युतः अपनी स्वरुप शक्ति से च्युत न होने वाले 101 वृषाकपिः वृष (धर्म) रूप और कपि (वराह) रूप 102 अमेयात्मा जिनके आत्मा का माप परिच्छेद न किया जा सके 103 सर्वयोगविनिसृतः सम्पूर्ण संबंधों से रहित 104 वसुः जो सब भूतों में बसते हैं और जिनमे सब भूत बसते हैं 105 वसुमनाः जिनका मन प्रशस्त (श्रेष्ठ) है 106 सत्यः सत्य स्वरुप 107 समात्मा जो राग द्वेषादि से दूर हैं 108 सम्मितः समस्त पदार्थों से परिच्छिन्न 109 समः सदा समस्त विकारों से रहित 110 अमोघः जो स्मरण किये जाने पर सदा फल देते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड🙏 लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥ पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड🙏 लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥ पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो ओर समुद्र की खाई -उस पर भी सोने के परकोटे (चार दीवारी) का तेज प्रकाश कि जिससे नेत्र चकाचौंध हो जाए॥ छन्द 1 लंका नगरी और उसके महाबली राक्षसों का वर्णन कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना। चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥ गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै। बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥ उस नगरी का रत्नों से जड़ा हुआ सुवर्ण का कोट,अतिव सुन्दर बना हुआ है-चौहटे, दुकाने व सुन्दर गलियों के बहार, उस सुन्दर नगरी के अन्दर बनी है-जहा हाथी, घोड़े, खच्चर, पैदल व रथो की गिनती कोई नहीं कर सकता और जहा महाबली, अद्भुत रूपवाले राक्षसो के सेना के झुंड इतने है कि जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता॥ छन्द 2 लंका के बाग-बगीचों का वर्णन बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं। नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥ कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं। नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥ जहा वन, बाग़, बागीचे, बावडिया, तालाब, कुएँ, बावलिया शोभायमान हो रही है। जहां मनुष्य कन्या, नागकन्या, देवकन्या और गन्धर्वकन्याये विराजमान हो रही है – जिनका रूप देखकर, मुनि लोगोका मन मोहित हुआ जाता है॥कही पर्वत के समान बड़े विशाल देहवाले महाबलिष्ट, मल्ल गर्जना करते है और अनेक अखाड़ों में अनेक प्रकारसे भिड रहे है और एक एक को आपस में पटक पटक कर गर्जना कर रहे है॥ छन्द 3 लंका के राक्षसों का बुरा आचरण करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं। कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥ एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही। रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥ जहां कही विकट शरीर वाले करोडो भट,चारो तरफ से नगरकी रक्षा करते है और कही वे राक्षस लोग, भैंसे, मनुष्य, गौ, गधे,बकरे और पक्षीयों को खा रहे है॥राक्षस लोगो का आचरण बहुत बुरा है।इसीलिए तुलसीदासजी कहते है कि मैंने इनकी कथा बहुत संक्षेपसे कही है।ये महादुष्ट है, परन्तु रामचन्द्रजीके बानरूप पवित्र तीर्थ नदी के अन्दर अपना शरीर त्याग कर, गति अर्थात मोक्षको प्राप्त होंगे॥ ...निरंतर मंगलवार को..., विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 100 से 110 नाम 🙏🌹 100 अच्युतः अपनी स्वरुप शक्ति से च्युत न होने वाले 101 वृषाकपिः वृष (धर्म) रूप और कपि (वराह) रूप 102 अमेयात्मा जिनके आत्मा का माप परिच्छेद न किया जा सके 103 सर्वयोगविनिसृतः सम्पूर्ण संबंधों से रहित 104 वसुः जो सब भूतों में बसते हैं और जिनमे सब भूत बसते हैं 105 वसुमनाः जिनका मन प्रशस्त (श्रेष्ठ) है 106 सत्यः सत्य स्वरुप 107 समात्मा जो राग द्वेषादि से दूर हैं 108 सम्मितः समस्त पदार्थों से परिच्छिन्न 109 समः सदा समस्त विकारों से रहित 110 अमोघः जो स्मरण किये जाने पर सदा फल देते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड🙏 लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥ पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो
AK__Alfaaz..
कल भोर की, उदित होती सिंदूरी किरण के संग, मैने नेह की सुनहरी पोटली मे, सूरज से आती, ममता की धूप को, अपनी झीनी सी, हथेलियों से भर लिया, और.. गले का हार बना लटका लिया, ममत्व की डोरी मे पिरो, कल भोर की, उदित होती सिंदूरी किरण के संग, मैने नेह की सुनहरी पोटली मे, सूरज से आती, ममता की धूप को, अपनी झीनी सी हथेलियों से भर लिया,