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🅼🆄🅺🅴🆂🅷 🅶🆄🅿🆃🅰
अभी बिगड़ा है तेवर, तो सुघर जायेगा। कमबख्त वक्त ही तो है, गुजर जायेगा।। वो अगर दूर है मुझसे, तो दूर रहने दो, मेरे नसीब में होगा, तो किधर जायेगा।। वो गुनहगार था मेरा, सो बच गया मुझसे, खुदा से भागकर, वो कितनी दूर जायेगा।। बारहां रुख-ऐ-हवा है उसी घर की तरफ, अब जिसने आग लगाया, वहीं बुझायेगा।। अभी बिगड़ा है तेवर, तो सुघर जायेगा। #mukeshguptaquotes #nojoto #gazal #shayari #love Babli Tiwari Lucifer..👑 khushi kumawat.. 😊 Shah pooj
सोमेश त्रिवेदी
हम चंदा के एकटक निहारीला राती, आ बोलऽ कि दिनवा में सूरुज तकाई? खाली नैना मिले से पिरितिया ना होला, मिली दिल से दिल तऽ पिरितिया कहाई। सुघर देह देखलऽ ना देखलऽ भितरिया, देहिया तऽ सुघर मन करिया भेंटाई। फूटल करम ना भरम पालऽ मन में, जे किस्मत में नइखे तऽ ऊ कइसे पाईं। नींदिया जे टूटे ना टूटे सपनवा, सपनवा जे टूटल तऽ दुनिया लुटाई। खोतवा के चिरई बिलारी से यारी, तऽ ओकर भला कइसे होखी भलाई। ©®सोमेश त्रिवेदी हम चंदा के एकटक निहारीला राती, आ बोलऽ कि दिनवा में सूरुज तकाई? खाली नैना मिले से पिरितिया ना होला, मिली दिल से दिल तऽ पिरितिया कहाई। सुघर
Saket Ranjan Shukla
आख़िर शायर जो ठहरा मैं तुम तर करो लब मय से, मैं सूखा ही ठीक हूँ, बन जाओ तुम सुघर बड़े, मैं रूखा ही ठीक हूँ, तुम ले जाओ इनाम सारे झूठी तारीफें कर-कर, मैं चंद सच्ची वाह-वाहियों का भूखा ही ठीक हूँ.! IG:— @my_pen_my_strength ©Saket Ranjan Shukla आख़िर शायर जो ठहरा मैं..! . कुछ कठिन शब्दार्थ 👇🏻 लब:— होंठ (Lip) मय:— शराब (Alcohol) सुघर:— मिठबोला (Slick) रूखा:— उदासीन (Moody) .
सोमेश त्रिवेदी
खाली नैना मिले से मुहब्बत ना होला मिली दिल से दिल तऽ पिरितिया कहाई सुघर देह देखलऽ ना देखलऽ भितरिया तऽ देहिया तऽ गोर मन करिया भेंटाई फूटल करम ना भरम पालऽ मन में जे किस्मत में नइखे तऽ ऊ कइसे पाईं नींदिया जे टूटे ना टूटे सपनवा सपनवा जे टूटल तऽ दुनिया लुटाई हम चंदा के एकटक निहारीला राती आ बोलऽ कि दिनवा में सूरुज तकाई? खोतवा के चिरई बिलारी से यारी तऽ ओकर नतीजा तऽ समइया बताई ©®सोमेश त्रिवेदी खाली नैना मिले से मुहब्बत ना होला मिली दिल से दिल तऽ पिरितिया कहाई सुघर देह देखलऽ ना देखलऽ भितरिया तऽ देहिया तऽ गोर मन करिया भेंटाई फूटल क
Shree
आकाशगंगाओं के परे जब सितारों का मिलन होगा, तब हम मिलेंगे। निर्वासित पुष्पों का जब चयन होगा और वो खिलेंगे, तब हम मिलेंगे। सर्वेसर्वा संसार में सकल जब सृष्टि पुकारेगी हमको, तब हम मिलेंगे। क्षितिज की धारी पर जब दिन-रात हमें साथ में ढूंढ़ेंगे, तब हम मिलेंगे। जिन आक्षांशों को किसी देश की सीमाएं न लांघती हो, वहां हम मिलेंगे। निस्तेज निराधार निरंतर अपेक्षित इच्छाएं जहां नहीं हो, वहां हम मिलेंगे। मुस्कानों की मासूमियत को ओढ़नी से ना ढंकना पड़े, वहां हम मिलेंगे। इससे बेहतर और सुघर तुम्हें कुछ समझ आये तो कहो, वहां हम मिलेंगे। ~~ हम मिलेंगे~~ Shree आकाशगंगाओं के परे जब सितारों का मिलन होगा, तब हम मिलेंगे। निर्वासित पुष्पों का जब चयन होगा और वो खिलेंगे, तब हम मिल
लफ्ज़-ए-राज...
कितना रूप राग रंग कुसुमित जीवन उमंग! अर्ध्य सभ्य भी जग में मिलती है प्रति पग में श्री गणपति का उत्सव, नारी नर का मधुरव! श्रद्धा विश्वास का
राजेश कुशवाहा 'राज'
------!! बसंत बहार !!------ लो आ गई बसंत बहार, प्यार का लेकर रंग हजार। मुस्काई हर पेड़ की डार,भर के प्यार का रंग हजार।। पतझड़ की हुई है भरमार, लो आ गई बसंत बहार। दिया बसंत ने पंख पसार, पड़ गई रंगों की फुहार।। है लाल हरा पीला तरुवर,है लग गई रंगों की अंबार। ये तो रंगो का है उपहार,है आगम होली का त्यौहार।। बढ़ रही मधुमास रफ्तार, तरूवर लिए यौवनाकार। चटकी कलियाँ हुई तैयार,भवरों को करती अंगीकार।। टपके फूलन रस चहुँओर, महके बाग बगीचा पोर। पशु पंक्षी हर्षित भें सुन्दर, धरती रूप धरी है मनहर।। ये मधुमास बना सुखकर, देता है नवजीवन का वर। सूरज की मद्धिम रफ्तार, करे सुहावन ऊष्म बौछार।। जब चलती है सुघर बयार, तन मन करती तार तार। लो आ गई बसंत बहार, प्यार का लेकर रंग हजार।। ✍राजेश कुमार कुशवाहा "राज" ©राजेश कुशवाहा ------!! बसंत बहार !!------ लो आ गई बसंत बहार, प्यार का लेकर रंग हजार। मुस्काई हर पेड़ की डार,भर के प्यार का रंग हजार।। पतझड़ की हुई है भरमा
Chanchal Jaiswal
ना जाने कितनी शालाएँ ना जाने कितने सभागार जाग्रत वाणी थी तूर्य हुई हुई कभी तूणीर बाण हुआ कभी गाण्डीव प्रखर पाञ्चजन्य का नाद शिखर। पुलकित मेधा सौरभ भर-भर फड़कता शौर्य साहसी भुजदल। केशर सा जगमग भाल भानु उत्तुंग हिमालय सा सीना हरियाला हृदय भावभीना कण्ठ-कण्ठ जयघोष विपुल स्पंदन-स्पंदन राष्ट्रवन्दन। गौरवशाली इतिहास प्रवर प्रेरित होते जनगण सुनकर नन्हें-नन्हें से बाल नवल विकसेगा इनमें भारत कल। (शेष कविता caption में...) ना जाने कितनी शालाएँ ना जाने कितने सभागार जाग्रत वाणी वो तूर्य हुई हुई कभी तूणीर बाण हुआ कभी गाण्डीव प्रखर पाञ्चजन्य का नाद शिखर। पुलकित मे