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Arohi Sharma
Arohi Sharma's Stories in 2018 #Throwback2018 Arohi Sharma की कहानियाँ 2018 में #लम्हें2018 2018 #Nojoto2018
read moreAnkit verma 'utkarsh'
झांकूं उस माधवी-कुंज में, जो बन रहा स्वर्ग कानन में; प्रथम परस की जहाँ लालिमा सिहर रही तरुणी- आनन में । जनारण्य से दूर स्वप्न में मैं भी निज संसार बसाऊँ, जग का आर्त्त नाद सुन अपना हृदय फाड़ने से बच जाऊँ । मिट जाती ज्यों किरण बिहँस सारा दिन कर लहरों पर झिल--मिल, खो जाऊँ त्यों हर्ष मनाता, मैं भी निज स्वानों से हिलमिल । पर, नभ में न कुटी बन पाती, मैंने कितनी युक्ति लगायी, आधी मिटती कभी कल्पना, कभी उजड़ती बनी-बनायी । रह-रह पंखहीन खग-सा मैं गिर पड़ता भू की हलचल में ; झटिका एक बहा ले जाती स्वप्न-राज्य आँसू के जल में । कुपित देव की शाप-शिखा जब विद्युत् बन सिर पर छा जाती, उठता चीख हृदय विद्रोही, अन्ध भावनाएँ जल जातीं । part 3 #allalone Arohi singh 🌿 anjali vinod sharma khubsurat gyaneshwar dhritlahare Vishakha Sharma
vikas thakur
┄┅════❁༺♥༻❁════┅┄ ╥────────────────━❥ ╰─💞⊰╮ ┄═❁ दिसम्बर के आख़री दिन... ┄┅════❁ हवा में बर्फ सी ठंडक... ┄═❁ इनबॉक्स में सैकड़ों मैसेज... ┄┅════❁ मगर तू ना खबर कोई तेरी.!! 💕 ┄═❁ गुजरता साल और पहला इश्क.. ┄┅════❁ और ऊपर से ये तेरी यादें... ┄═❁ कि लगता है ये जाता साल... ┄┅════❁ कलेजा लेकर ही जायेगा.!! ╭─💞⊰╯ ╨────────────────━❥ ┄┅════❁༺♥༻❁════┅┄ Arohi Tripathi
Arohi Tripathi
read morevikas thakur
┄┅════❁༺♥༻❁════┅┄ ╥────────────────━❥ ╰─💞⊰╮ ┄═❁ नवम्बर आ गयी है... ┄┅════❁ सर्दी का मौसम सर पे है... ┄═❁ चाय की चुस्कियों की... ┄┅════❁ पसंद ही नहीं रखते हम.!! 💕 ┄═❁ सुनो प्रिय क्यों ना हम... ┄┅════❁ गलतफहमियों के पत्तों को... ┄═❁ मिलजुल कर के आपस में... ┄┅════❁ एक बार फिर इकट्ठा करें... ┄═❁ और बची खुची मोहब्बत से... ┄┅════❁ उनमें आग लगाकर सेंकें.!! 💕 ┄═❁ बस कुछ दिनों की बात है... ┄┅════❁ फिर मौसम बदल ही जायेगा... ┄═❁ एक दूसरे के साथ ये... ┄┅════❁ मौसम निकल ही जायेगा.!! ╭─💞⊰╯ ╨────────────────━❥ ┄┅════❁༺♥༻❁════┅┄ Arohi Tripathi
Arohi Tripathi
read moreAnkit verma 'utkarsh'
दिव की ज्वलित शिखा सी उड़ तुम जब से लिपट गयी जीवन में, तृषावंत मैं घूम रहा कविते ! तब से व्याकुल त्रिभुवन में ! उर में दाह, कंठ में ज्वाला, सम्मुख यह प्रभु का मरुथल है, जहाँ पथिक जल की झांकी में एक बूँद के लिए विकल है। घर-घर देखा धुआं पर, सुना, विश्व में आग लगी है, 'जल ही जल' जन-जन रटता है, कंठ-कंठ में प्यास जगी है। सूख गया रस श्याम गगन का एक घुन विष जग का पीकर, ऊपर ही ऊपर जल जाते सृष्टि-ताप से पावस सीकर ! मनुज-वंश के अश्रु-योग से जिस दिन हुआ सिन्धु-जल खारा, गिरी ने चीर लिया निज उर, मैं ललक पड़ा लाख जल की धारा। पर विस्मित रह गया, लगी पीने जब वही मुझे सुधी खोकर, कहती- 'गिरी को फाड़ चली हूँ मैं भी बड़ी विपासित होकर'। part 1 part 1 #allalone Arohi singh 🌿 anjali vinod sharma khubsurat Vishakha Sharma Neelam choudhary
Ankit verma 'utkarsh'
पर, शिशु का क्या हाल, सीख पाया न अभी जो आंसू पीना ? चूस-चूस सुखा स्तन माँ का सो जाता रो-विलप नगीना। विवश देखती माँ, अंचल से नन्ही जान तड़प उड़ जाती, अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती। कब्र-कब्र में अबुध बालकों की भूखी हड्डी रोती है, 'दूध-दूध !' की कदम कदम पर सारी रात सदा होती है। 'दूध-दूध !' ओ वत्स ! मंदिरों में बहरे पाषाण यहाँ हैं, 'दूध-दूध !' तारे, बोलो, इन बच्चों के भगवान् कहाँ हैं ? 'दूध-दूध !' दुनिया सोती है, लाऊं दूध कहाँ, किस घर से ? 'दूध-दूध !' हे देव गगन के ! कुछ बूँदें टपका अम्बर से ! part 6 😍😍😍 #allalone Lipsita Palei Arohi singh 🌿 anjali vinod sharma khubsurat Vishakha Sharma
Ankit verma 'utkarsh'
निरख प्रतीची-रक्त-मेघ में अस्तप्राय रवि का मुख-मंडल, पिघल-पिघल कर चू पड़ता है दृग से क्षुभित, विवश अंतस्तल । रणित विषम रागिनी मरण की आज विकट हिंसा-उत्सव में; दबे हुए अभिशाप मनुज के लगे उदित होने फिर भव में । शोणित से रंग रही शुभ्र पट संस्कृति निठुर लिए करवालें, जला रही निज सिंहपौर पर दलित-दीन की अस्थि मशालें। घूम रही सभ्यता दानवे, 'शांति ! शांति !' करती भूतल में, पूछे कोई, भिगो रही वह क्यों अपने विष दन्त गरल में। टांक रही हो सुई चरम पर, शांत रहें हम, तनिक न डोलें, यही शान्ति, गर्दन कटती हो, पर हम अपनी जीभ न खोलें ? बोलें कुछ मत क्षुधित, रोटियां श्वान छीन खाएं यदि कर से, यही शांति, जब वे आयें, हम निकल जाएँ चुपके निज घर से ? part 4 😍😍😍 #allalone Arohi singh 🌿 anjali vinod sharma khubsurat Vishakha Sharma Ashu Kumar
Ankit verma 'utkarsh'
यह वैषम्य नियति का मुझपर, किस्मत बढ़ी धन्य उन कवि की, जिनके हित कविते ! बनतीं तुम झांकी नग्न अनावृत छवि की । दुखी विश्व से दूर जिन्हें लेकर आकाश कुसुम के वन में, खेल रहीं तुम अलस जलद सी किसी दिव्य नंदन-कानन में। भूषन-वासन जहाँ कुसुमों के, कहीं कुलिस का नाम नहीं है। दिन-भर सुमन-हार-गुम्फन को छोड़ दूसरा काम नहीं है। वही धन्य, जिनको लेकर तुम बसीं कल्पना के शतदल पर, जिनका स्वप्न तोड़ पाती है मिटटी नहीं चरण-ताल बजकर ! मेरी भी यह चाह विलासिनी ! सुन्दरता को शीश झुकाऊं, जिधर-जिधर मधुमयी बसी हो, उधर वसंतानिल बन जाऊं ! एक चाह कवि की यह देखूं, छिपकर कभी पहुँच मालिनी तट, किस प्रकार चलती मुनिबाला यौवनवती लिए कटी पर घाट part 2 🥰🥰😍 #allalone Arohi singh 🌿 anjali vinod sharma khubsurat Vishakha Sharma Ashu Kumar