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N S Yadav GoldMine

#City सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये क्या कहा जानिए !! 👸👸 {Bolo Ji #पौराणिककथा

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सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये क्या कहा जानिए !! 👸👸
{Bolo Ji Radhey Radhey}
भगवान परशुराम की कथा :- 🌹 परशुराम रामायण काल के दौरान के मुनी थे। पूर्वकाल में कन्नौज नामक नगर में गाधि नामक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा। इस पर सत्यवती ने श्वसुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना की। सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करें और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना। फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना। 

🌹 इधर जब सत्यवती की माँ ने देखा कि भृगु जी ने अपने पुत्रवधू को उत्तम सन्तान होने का चरु दिया है तो अपने चरु को अपनी पुत्री के चरु के साथ बदल दिया। इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया। योग शक्ति से भृगु जी को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले कि पुत्री! तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है। इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगा। इस पर सत्यवती ने भृगु जी से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे। भृगु जी ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली। 
{Rao Sahab N S Yadav}
🌹 समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ। जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी थे। बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका से उनके पाँच पुत्र हुये जिनके नाम थे रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस और परशुराम। एक बार रेणुका सरितास्नान के लिये गई। दैवयोग से चित्ररथ भी वहाँ पर जल-क्रीड़ा कर रहा था। चित्ररथ को देख कर रेणुका का चित्त चंचल हो उठा। इधर जमदग्नि को अपने दिव्य ज्ञान से इस बात का पता चल गया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने बारी-बारी से अपने पुत्रों को अपनी माँ का वध कर देने की आज्ञा दी। रुक्मवान, सुखेण, वसु और विश्वानस ने माता के मोहवश अपने पिता की आज्ञा नहीं मानी, किन्तु परशुराम ने पिता की आज्ञा मानते हुये अपनी माँ का सिर काट डाला। अपनी आज्ञा की अवहेलना से क्रोधित होकर जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़ हो जाने का शाप दे दिया और परशुराम से प्रसन्न होकर वर माँगने के लिये कहा। इस पर परशुराम बोले कि हे पिताजी! मेरी माता जीवित हो जाये और उन्हें अपने मरने की घटना का स्मरण न रहे। परशुराम जी ने यह वर भी माँगा कि मेरे अन्य चारों भाई भी पुनः चेतन हो जायें और मैं युद्ध में किसी से परास्त न होता हुआ दीर्घजीवी रहूँ। जमदग्नि जी ने परशुराम को उनके माँगे वर दे दिये।

🌹 इस घटना के कुछ काल पश्चात एक दिन जमदग्नि ऋषि के आश्रम में कार्त्तवीर्य अर्जुन आये। जमदग्नि मुनि ने कामधेनु गौ की सहायता से कार्त्तवीर्य अर्जुन का बहुत आदर सत्कार किया। कामधेनु गौ की विशेषतायें देखकर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने जमदग्नि से कामधेनु गौ की माँग की किन्तु जमदग्नि ने उन्हें कामधेनु गौ को देना स्वीकार नहीं किया। इस पर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने क्रोध में आकर जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया और कामधेनु गौ को अपने साथ ले जाने लगा। किन्तु कामधेनु गौ तत्काल कार्त्तवीर्य अर्जुन के हाथ से छूट कर स्वर्ग चली गई और कार्त्तवीर्य अर्जुन को बिना कामधेनु गौ के वापस लौटना पड़ा।

🌹 इस घटना के समय वहाँ पर परशुराम उपस्थित नहीं थे। जब परशुराम वहाँ आये तो उनकी माता छाती पीट-पीट कर विलाप कर रही थीं। अपने पिता के आश्रम की दुर्दशा देखकर और अपनी माता के दुःख भरे विलाप सुन कर परशुराम जी ने इस पृथ्वी पर से क्षत्रियों के संहार करने की शपथ ले ली। पिता का अन्तिम संस्कार करने के पश्चात परशुराम ने कार्त्तवीर्य अर्जुन से युद्ध करके उसका वध कर दिया। इसके बाद उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया और उनके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में पाँच सरोवर भर दिये। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोक दिया। अब परशुराम ब्राह्मणों को सारी पृथ्वी का दान कर महेन्द्र पर्वत पर तप करने हेतु चले आये हैं।

©N S Yadav GoldMine #City सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये क्या कहा जानिए !! 👸👸
{Bolo Ji

DR. SANJU TRIPATHI

राजा प्रतीक कुरु वंश में हुए थे शांतनु उनके दूसरे पुत्र थे जब पुत्र की कामना से राजा प्रतीक गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप सौंद #yqbaba #yqdidi #myquote #YourQuoteAndMine #openforcollab #collabwithmitali #mahabharat_charitra #maharaj_shantanu

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कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें।
👇👇👇👇  राजा प्रतीक कुरु वंश में हुए थे शांतनु उनके दूसरे पुत्र थे
जब पुत्र की कामना से राजा प्रतीक गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे।

उनके रूप सौंद

नेहा उदय भान गुप्ता

नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।।1 चन्द्रवंशी शासक ये, प #yqbaba #yqdidi #नेह_की_गाथा #NUBGupta #मेरे_राघव_राजा_राम

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नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ।
आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।।
अनुशीर्षक में पढ़े...👇👇 नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ।
आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।।1

चन्द्रवंशी शासक ये, प

नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹

नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।।1 चन्द्रवंशी शासक ये, प #yqbaba #yqdidi #नेह_की_गाथा #NUBGupta #मेरे_राघव_राजा_राम

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नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ।
आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।।
अनुशीर्षक में पढ़े...👇👇 नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ।
आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।।1

चन्द्रवंशी शासक ये, प

Sunny chauhan

जो बनना हो इतिहास मुझे तो महाभारत मैं हो जाऊँ पांडव कौरव में भेद नही मैं किरदारों में ढल जाऊँ जो मोह त्याग की बात चले मैं भीष्म पितामह हो ज #विचार

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जो बनना हो इतिहास मुझे 
तो महाभारत में हो जाऊ 
पांडव कौरव में भेद नहीं
 में किरदारों में ढल जाऊ 


पढ़े अनुशीर्षक में 
⬇️

SunnychauhaN जो बनना हो इतिहास मुझे
तो महाभारत मैं हो जाऊँ
पांडव कौरव में भेद नही
मैं किरदारों में ढल जाऊँ

जो मोह त्याग की बात चले
मैं भीष्म पितामह हो ज

Amit Mishra

थोड़ा समय लेकर इत्मिनान से पढ़ियेगा🙏🙏 जो बनना हो इतिहास मुझे तो महाभारत मैं हो जाऊँ पांडव कौरव में भेद नही मैं किरदारों में ढल जाऊँ ज #Mahabharat #yqbaba #yqdidi #Amit #seekh #maun

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जो बनना हो इतिहास मुझे
तो महाभारत  मैं  हो जाऊँ
पांडव  कौरव में  भेद नही
मैं  किरदारों  में ढल  जाऊँ


पढ़ें अनुशीर्षक में थोड़ा समय लेकर इत्मिनान से पढ़ियेगा🙏🙏

जो बनना हो इतिहास मुझे
तो महाभारत  मैं  हो जाऊँ
पांडव  कौरव में  भेद नही
मैं  किरदारों  में ढल  जाऊँ

ज

नेहा उदय भान गुप्ता

उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी। अग्नि कुंड से जो उत्पन्न हुई, पांडवों के संग ब्याही गई, इंद्रप्रस् #yqbaba #yqdidi #myquote #YourQuoteAndMine #yqquotes #openforcollab #collabwithmitali #द्रौपदी_वनवास

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उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी।
अग्नि कुंड से जो उत्पन्न हुई, पांडवों के संग ब्याही गई, इंद्रप्रस्थ की थी वो पटरानी।।
एक बार की बात है, जब सम्राट युधिष्ठिर हस्तिनापुर में खेलने लगे जब वो चौसर।
मामा शकुनि की कपट चाल से, हार गए सब जो मिला था इनको अंतिम अवसर।।
कपटी भ्राता दुर्योधन ने छल के द्वारा, दिया पांडवों को फ़िर बारह बरस का वनवास।
एक वर्ष के अज्ञातवास में, लिए गए जो पहचान तो पुनः मिलेगी 12 बरस वनवास।।
पतिव्रता थी वो सत्यवती अखण्ड सौभाग्य, अग्नि सा समता तेज़ था उसके मुख पे।
निकल पड़ी वो भी अपना पत्नी धर्म निभाने, जहां रहते पति वहीं पत्नी रहती सुख में।
राहों में आएं कितने भी कांटे और पत्थर, वो तो बस कान्हा का ही नाम जपती रही।
कांटे भी लगे कृष्णे को पुष्प सम, पर अपने अपमान की क्रोधाग्नि में वो जलती रही।
पांचाल राज की थी वो राजकुमारी, इंद्रप्रस्थ की बनी पटरानी, पर वन वन में भटके।
पांच पांडवों की थी वो पत्नी, पांचों शुर वीर महारथी बलवान, पर ना उसके अश्रु रुके।
बारह बरस का उन्होंने वनवास काटा, फ़िर अज्ञातवास को काटने की अाई अब बारी।
उदय दुलारी नेह की आंखों से भी अश्रु छलक पड़े लिखते लिखते करुण कहानी सारी।
अज्ञातवास की खातिर वो, लिए विराट राज्य की शरण, अपना भेष बदल - बदल कर।
महारानी, पटरानी बन गई शैलेंद्री,  दुःखी हुआ हर कोई वनवास की कथा सुनकर।। 
उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी।
अग्नि कुंड से जो उत्पन्न हुई, पांडवों के संग ब्याही गई, इंद्रप्रस्

नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹

उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी। अग्नि कुंड से जो उत्पन्न हुई, पांडवों के संग ब्याही गई, इंद्रप्रस् #yqbaba #yqdidi #myquote #YourQuoteAndMine #yqquotes #openforcollab #collabwithmitali #द्रौपदी_वनवास

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उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी।
अग्नि कुंड से जो उत्पन्न हुई, पांडवों के संग ब्याही गई, इंद्रप्रस्थ की थी वो पटरानी।।
एक बार की बात है, जब सम्राट युधिष्ठिर हस्तिनापुर में खेलने लगे जब वो चौसर।
मामा शकुनि की कपट चाल से, हार गए सब जो मिला था इनको अंतिम अवसर।।
कपटी भ्राता दुर्योधन ने छल के द्वारा, दिया पांडवों को फ़िर बारह बरस का वनवास।
एक वर्ष के अज्ञातवास में, लिए गए जो पहचान तो पुनः मिलेगी 12 बरस वनवास।।
पतिव्रता थी वो सत्यवती अखण्ड सौभाग्य, अग्नि सा समता तेज़ था उसके मुख पे।
निकल पड़ी वो भी अपना पत्नी धर्म निभाने, जहां रहते पति वहीं पत्नी रहती सुख में।
राहों में आएं कितने भी कांटे और पत्थर, वो तो बस कान्हा का ही नाम जपती रही।
कांटे भी लगे कृष्णे को पुष्प सम, पर अपने अपमान की क्रोधाग्नि में वो जलती रही।
पांचाल राज की थी वो राजकुमारी, इंद्रप्रस्थ की बनी पटरानी, पर वन वन में भटके।
पांच पांडवों की थी वो पत्नी, पांचों शुर वीर महारथी बलवान, पर ना उसके अश्रु रुके।
बारह बरस का उन्होंने वनवास काटा, फ़िर अज्ञातवास को काटने की अाई अब बारी।
उदय दुलारी नेह की आंखों से भी अश्रु छलक पड़े लिखते लिखते करुण कहानी सारी।
अज्ञातवास की खातिर वो, लिए विराट राज्य की शरण, अपना भेष बदल - बदल कर।
महारानी, पटरानी बन गई शैलेंद्री,  दुःखी हुआ हर कोई वनवास की कथा सुनकर।। 
उदय दुलारी नेह आज लिखेगी, द्रुपद की सुता द्रोपदी के वनवास की करुण कहानी।
अग्नि कुंड से जो उत्पन्न हुई, पांडवों के संग ब्याही गई, इंद्रप्रस्

Priya Kumari Niharika

महाभारत वह अध्याय है जो धर्म का अभिप्राय है जहां धर्म न्याय का मान है, वहीं भूमि का कल्याण है विध्वंस के शुरुआत का धर्म के प्रभात का उद #Poetry #Love #story #me #maa #Shayari #कविता #myvoice

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महाभारत वह अध्याय है जो धर्म का अभिप्राय है
 जहां धर्म न्याय का मान है,  वहीं भूमि का कल्याण है
 विध्वंस के शुरुआत का धर्म के प्रभात का 
 उद्देश्य नहीं संघार का,  है धर्म के संग्राम का 
 कहीं लोभ था राज का, कहीं चिंता धर्म काज का
 था समर जीत ना हार का केवल जग के उद्धार का
 कुरुक्षेत्र के सौभाग्य का, अन्याय के दुर्भाग्य का 
 सत्य और यथार्थ का, स्वार्थ और परमार्थ का 
 कर्मों के परिणाम का, कलंक और कल्याण का 
 दर्द के उपचार का , धर्म के सुविचार का 
 कर्तव्य के निर्वाह का, सामर्थ्य के प्रवाह का 
 सत्यवती की महत्वाकांक्षा का,  शकुनी की आकांक्षा का 
 पांडु और धृतराष्ट्र का , अपराध गांधार राज का 
 गांधारी के विवाह का, सौ पुत्रों के उत्साह का 
 धर्म के साम्राज्य का ,  कौरवों के अन्याय का 
 चौसर के हर चाल का , कुरुक्षेत्र के भीषण हाल का 
 दुर्वासा के आशीर्वाद का , अखिलेश्वर के प्रसाद का 
 भीष्म के भीषण प्रण का,  द्रोपदी के वस्त्र हरण का 
 कुरु वंश के आधार का,  प्रपंच के कुविचार का 
 सत्ता के अधिकार का, भीष्म के प्रतिहार का 
 इच्छा के संताप का, संतोष के प्रताप का 
 गुरु द्रोण के दिए ज्ञान का अर्जुन के एकाग्र ध्यान का
 युधिष्ठिर के धर्म का, अर्जुन के महाकर्म का 
 सहदेव नकुल के रण का,  संग भीम के महाबल का 
 श्री कृष्ण के सामर्थ का, कौरवों के महा अनर्थ का 
 सुभद्रा के अनुदान का, वीर अभिमन्यु महान का 
 दुर्योधन के व्यभिचार का , कौरवों के अत्याचार का 
 यह कर्ण के बलिदान का,  पांचाली के अपमान का 
 कुरु वंश के अभिमान का, विध्वंस के आह्वान का 
 ग्रहण ये अंशुमान का, धर्म के विहान का 
 समर नहीं अंधकार का, अधर्म के प्रतिकार का 
 सृष्टि के नव निर्माण का, मनुष्य के कल्याण का 
 कुरु वंश के रक्तपात का,  कुकर्म के हालात का 
 यह धर्म के आह्वान का, अधर्म के अवसान का है

©verma priya महाभारत वह अध्याय है जो धर्म का अभिप्राय है
 जहां धर्म न्याय का मान है,  वहीं भूमि का कल्याण है
 विध्वंस के शुरुआत का धर्म के प्रभात का 
 उद

N S Yadav GoldMine

कुरु वन्स की उतपत्ति:- पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध, और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुर #Travel #पौराणिककथा

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कुरु वन्स की उतपत्ति:- पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध, और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुरूरवा से आयु, आयु से राजा नहुष, और नहुष से ययाति उत्पन्न हुए। ययाति से पुरू हुए। पूरू के वंश में भरत और भरत के कुल में राजा कुरु हुए। 

कुरु के वंश में शान्तनु का जन्म हुआ। शान्तनु से गंगानन्दन भीष्म उत्पन्न हुए। उनके दो छोटे भाई और थे – चित्रांगद और विचित्रवीर्य। ये शान्तनु से सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। शान्तनु के स्वर्गलोक चले जाने पर भीष्म ने अविवाहित रह कर अपने भाई विचित्रवीर्य के राज्य का पालन किया।
 
भीष्म महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। ये महाराजा शांतनु के पुत्र थे। अपने पिता को दिये गये वचन के कारण इन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। 

 एक बार हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत आखेट खेलने वन में गये। जिस वन में वे शिकार के लिये गये थे उसी वन में कण्व ऋषि का आश्रम था। कण्व ऋषि के दर्शन करने के लिये महाराज दुष्यंत उनके आश्रम पहुँच गये। पुकार लगाने पर एक अति लावण्यमयी कन्या ने आश्रम से निकल कर कहा, हे राजन् महर्षि तो तीर्थ यात्रा पर गये हैं, किन्तु आपका इस आश्रम में स्वागत है। 
 
 उस कन्या को देख कर महाराज दुष्यंत ने पूछा, बालिके आप कौन हैं? बालिका ने कहा, मेरा नाम शकुन्तला है और मैं कण्व ऋषि की पुत्री हूँ। उस कन्या की बात सुन कर महाराज दुष्यंत आश्चर्यचकित होकर बोले, महर्षि तो आजन्म ब्रह्मचारी हैं फिर आप उनकी पुत्री कैसे हईं? 
 
 उनके इस प्रश्न के उत्तर में शकुन्तला ने कहा, वास्तव में मेरे माता-पिता मेनका और विश्वामित्र हैं। मेरी माता ने मेरे जन्म होते ही मुझे वन में छोड़ दिया था जहाँ पर शकुन्त नामक पक्षी ने मेरी रक्षा की। इसी लिये मेरा नाम शकुन्तला पड़ा। 
 
 उसके बाद कण्व ऋषि की दृष्टि मुझ पर पड़ी और वे मुझे अपने आश्रम में ले आये। उन्होंने ही मेरा भरन-पोषण किया। जन्म देने वाला, पोषण करने वाला तथा अन्न देने वाला – ये तीनों ही पिता कहे जाते हैं। इस प्रकार कण्व ऋषि मेरे पिता हुये। 
 
 शकुन्तला के वचनों को सुनकर महाराज दुष्यंत ने कहा, शकुन्तले तुम क्षत्रिय कन्या हो। यदि तुम्हें किसी प्रकार की आपत्ति न हो तो मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ। शकुन्तला भी महाराज दुष्यंत पर मोहित हो चुकी थी, अतः उसने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। दोनों नें गन्धर्व विवाह कर लिया। कुछ काल महाराज दुष्यंत ने शकुन्तला के साथ विहार करते हुये वन में ही व्यतीत किया। 
 
 फिर एक दिन वे शकुन्तला से बोले, प्रियतमे मुझे अब अपना राजकार्य देखने के लिये हस्तिनापुर प्रस्थान करना होगा। महर्षि कण्व के तीर्थ यात्रा से लौट आने पर मैं तुम्हें यहाँ से विदा करा कर अपने राजभवन में ले जाउँगा।

 इतना कहकर महाराज ने शकुन्तला को अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में अपनी स्वर्ण मुद्रिका दी और हस्तिनापुर चले गये। 

 एक दिन उसके आश्रम में दुर्वासा ऋषि पधारे। महाराज दुष्यंत के विरह में लीन होने के कारण शकुन्तला को उनके आगमन का ज्ञान भी नहीं हुआ और उसने दुर्वासा ऋषि का यथोचित स्वागत सत्कार नहीं किया। दुर्वासा ऋषि ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित हो कर बोले, बालिके मैं तुझे शाप देता हूँ कि जिस किसी के ध्यान में लीन होकर तूने मेरा निरादर किया है, वह तुझे भूल जायेगा। 
 
 दुर्वासा ऋषि के शाप को सुन कर शकुन्तला का ध्यान टूटा और वह उनके चरणों में गिर कर क्षमा प्रार्थना करने लगी। शकुन्तला के क्षमा प्रार्थना से द्रवित हो कर दुर्वासा ऋषि ने कहा, अच्छा यदि तेरे पास उसका कोई प्रेम चिन्ह होगा तो उस चिन्ह को देख उसे तेरी स्मृति हो आयेगी। 
 
 महाराज दुष्यंत से विवाह से शकुन्तला गर्भवती हो गई थी। कुछ काल पश्चात् कण्व ऋषि तीर्थ यात्रा से लौटे तब शकुन्तला ने उन्हें महाराज दुष्यंत के साथ अपने गन्धर्व विवाह के विषय में बताया। इस पर महर्षि कण्व ने कहा, पुत्री विवाहित कन्या का पिता के घर में रहना उचित नहीं है। 
 
 अब तेरे पति का घर ही तेरा घर है। इतना कह कर महर्षि ने शकुन्तला को अपने शिष्यों के साथ हस्तिनापुर भिजवा दिया। मार्ग में एक सरोवर में आचमन करते समय महाराज दुष्यंत की दी हुई शकुन्तला की अँगूठी, जो कि प्रेम चिन्ह थी, सरोवर में ही गिर गई। उस अँगूठी को एक मछली निगल गई। 
 
 महाराज दुष्यंत के पास पहुँच कर कण्व ऋषि के शिष्यों ने शकुन्तला को उनके सामने खड़ी कर के कहा, महाराज शकुन्तला आपकी पत्नी है, आप इसे स्वीकार करें। महाराज तो दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण शकुन्तला को विस्मृत कर चुके थे। अतः उन्होंने शकुन्तला को स्वीकार नहीं किया और उस पर कुलटा होने का लाँछन लगाने लगे। शकुन्तला का अपमान होते ही आकाश में जोरों की बिजली कड़क उठी और सब के सामने उसकी माता मेनका उसे उठा ले गई। 
 
 जिस मछली ने शकुन्तला की अँगूठी को निगल लिया था, एक दिन वह एक मछुआरे के जाल में आ फँसी। जब मछुआरे ने उसे काटा तो उसके पेट अँगूठी निकली। मछुआरे ने उस अँगूठी को महाराज दुष्यंत के पास भेंट के रूप में भेज दिया। अँगूठी को देखते ही महाराज को शकुन्तला का स्मरण हो आया और वे अपने कृत्य पर पश्चाताप करने लगे। महाराज ने शकुन्तला को बहुत ढुँढवाया किन्तु उसका पता नहीं चला।
 
 कुछ दिनों के बाद देवराज इन्द्र के निमन्त्रण पाकर देवासुर संग्राम में उनकी सहायता करने के लिये महाराज दुष्यंत इन्द्र की नगरी अमरावती गये। संग्राम में विजय प्राप्त करने के पश्चात् जब वे आकाश मार्ग से हस्तिनापुर लौट रहे थे तो मार्ग में उन्हें कश्यप ऋषि का आश्रम दृष्टिगत हुआ। उनके दर्शनों के लिये वे वहाँ रुक गये। आश्रम में एक सुन्दर बालक एक भयंकर सिंह के साथ खेल रहा था। मेनका ने शकुन्तला को कश्यप ऋषि के पास लाकर छोड़ा था तथा वह बालक शकुन्तला का ही पुत्र था। उस बालक को देख कर महाराज के हृदय में प्रेम की भावना उमड़ पड़ी। 
 
 वे उसे गोद में उठाने के लिये आगे बढ़े तो शकुन्तला की सखी चिल्ला उठी, हे भद्र पुरुष आप इस बालक को न छुयें अन्यथा उसकी भुजा में बँधा काला डोरा साँप बन कर आपको डस लेगा। यह सुन कर भी दुष्यंत स्वयं को न रोक सके और बालक को अपने गोद में उठा लिया। अब सखी ने आश्चर्य से देखा कि बालक के भुजा में बँधा काला गंडा पृथ्वी पर गिर गया है। सखी को ज्ञात था कि बालक को जब कभी भी उसका पिता अपने गोद में लेगा वह काला डोरा पृथ्वी पर गिर जायेगा। 
 
 सखी ने प्रसन्न हो कर समस्त वृतान्त शकुन्तला को सुनाया। शकुन्तला महाराज दुष्यंत के पास आई। महाराज ने शकुन्तला को पहचान लिया। उन्होंने अपने कृत्य के लिये शकुन्तला से क्षमा प्रार्थना किया और कश्यप ऋषि की आज्ञा लेकर उसे अपने पुत्र सहित अपने साथ हस्तिनापुर ले आये। महाराज दुष्यंत और शकुन्तला के उस पुत्र का नाम भरत था। 
 बाद में वे भरत महान प्रतापी सम्राट बने और उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष हुआ।

©N S Yadav GoldMine कुरु वन्स की उतपत्ति:- पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध, और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुर
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