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Rimpi chaube
ना समय की सीमा नापते है, ना खाने का रहता होश हमे। कभी भूखे भी सो जाते है, सपनों की उम्मीद लिए।। किताबें सिरहाने रखकर, जेहन में दुनिया के ताने रखकर। रातों की नींद गवाते है हम, सपनों की उम्मीद लिए।। ©Rimpi chaube #सपनों_की_उम्मीद_लिए 🧑💻📚 ना समय की सीमा नापते है, ना खाने का रहता होश हमे। कभी भूखे भी सो जाते है, सपनों की उम्मीद लिए।। किताबें सिरहाने रख
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White दोहा :- संतो की वाणी सुनो , सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।। प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान । तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।। अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान । अंग-अंग रखकर खुला , कहता ऊँची शान ।। बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार । वह भी फैशन में छिने , हमसे सब अधिकार ।। मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास । भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली आस ।। जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात । अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR संतो की वाणी सुनो , सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव
neelu
White किसी और के ख्यालों में बनने की चाहत से बुरी चाहत क्या हो सकती है गिरकर खुद की नज़र में किसी और की नज़र में उठने की चाहत क्या हो सकती है नज़र आसमान पर रखकर आंखों में मिट्टी डालने की ख्वाहिश क्या हो सकती है जो खुली आंखों से नहीं देखा है उसे बंद आंखों से देखने की राहत क्या हो सकती है जो ना ख्वाब है ना हकीकत है उसे खोने में मुश्किल क्या हो सकती है जो न1 कल था.. ना कल होगा उसकी आज की चाहत क्या हो सकती है ©neelu #Lake किसी और के ख्यालों में बनने की चाहत से बुरी चाहत क्या हो सकती है गिरकर खुद की नज़र में किसी और की नज़र में उठने की चाहत क्या हो स
AJAY NAYAK
जिस बच्चे को मां नौ महीने कोंख में रखकर जन्म देती है वही बच्चा आगे चलकर स्त्री को समाज में कैसे रहना चाहिए इसका ज्ञान देने लगता है! –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #Women जिस बच्चे को मां नौ महीने कोंख में रखकर जन्म देती है वही बच्चा आगे चलकर स्त्री को समाज में कैसे रहना चाहिए इसका ज्ञान देने लगता है!
jai shankar pandit
White सारी की सारी ख्वाहिशें इक तरफ़ , तेरे काँधे पर सर रखकर सोने का तसव्वुर इक तरफ़ ..!! ©jai shankar pandit #Couple सारी की सारी ख्वाहिशें इक तरफ़ , तेरे काँधे पर सर रखकर सोने का तसव्वुर इक तरफ़ ..!! ad sanjay kumar prajapati NS बादल सिंह 'कलमगा
ʀᴏʏᴀʟ.यादववंशी.
Manish Jakhmi
कुछ सच ऐसे होते है जिनके परिणाम बारे में हमें पता होता है परंतु हम तब भी उसके विपरीत कार्य करने की कोशिश करते है, चलिए अपनी जगह किसी और को रखकर देखते है क्यूंकि लोग इस तरह के उदाहरण दूसरों पर सुनना ही पसंद करते है, परंतु यह पसंद और न पसंद करने का सवाल नहीं उठता क्योंकि कुछ इस तरह की अनगिनत चीजे व्यक्ति के जीवन हो जाती है जिससे भिड़कर वह अपने आप के एक आदमी बनाता है, अब एक आदमी कैसा हो ये प्रश्न भी बनता है, परंतु यह तो अक्सर नियती पर निश्चित होता है क्यूंकि परिस्थिति तो मात्र श्रेणी बदलती है, जीवन में पड़ावों को पार करते करते ही कुछ इस तरह (कविता में दिए गए) के निर्णय लेने होते है, जिनका ख्याल मात्र दो बार आता है एक निर्णय लेते वक्त और दूसरा उस परिस्थिति के अंत में परिणाम के वक्त। मनीष जख्मी ©Manish Jakhmi कुछ सच ऐसे होते है जिनके परिणाम बारे में हमें पता होता है परंतु हम तब भी उसके विपरीत कार्य करने की कोशिश करते है, चलिए अपनी जगह किसी और को र
Manish Jakhmi
वास्तविकता में अगर वासना को एक तरफ रखा जाए, तो ये काव्य लिपि बहुत ही सटीक साबित होती है। एक संतुष्टिजनक भाव जरूरी नहीं की मात्र वासना के वशीभूत होकर प्राप्त किए जाए, समक्ष जीवन को हर समय अपने संज्ञान में रखकर चलते हुए आपको इतना प्रफुल्लित महसूस होगा की अगर आप किसी इंसान की मात्र आंखों में भी देखो तो आपको आनंद की अनुभूति होगी जिसमें उसे पाने और ना पाने की चाह उस इंसान की प्रकृति पर निर्भर करती है, कि वह अभी भी वासना में वशीभूत है या नहीं। ©Manish Jakhmi आंखे ।। aankhe by manish jakhmi।।वास्तविकता में अगर वासना को एक तरफ रखा जाए, तो ये काव्य लिपि बहुत ही सटीक साबित होती है। एक संतुष्टिजनक भा
Irfan Saeed
अगर कहो तो मैं दुनियां बदल भी सकता हूं तेरे कहे हुए वादों पे चल भी सकता हूं तुम ही क्या मुझको दगा दोगी इश्कबाजी में हालाते मजनू से हटकर संभल भी सकता हू तुमने जाना ही नहीं अब भी मुझको जानेमन तुमने पत्थर समझा मैं पिघल भी सकता हू अना को गोद में रखकर मुझे दिखाते हो हकीर समझों नही मैं बदल भी सकता हू तेरे जालों के इन हालों से अजी बचना है कफस ए इश्क से वाहिद निकल भी सकता हूं ©Irfan Saeed अगर कहो तो मैं दुनियां बदल भी सकता हूं तेरे कहे हुए वादों पे चल भी सकता हूं तुम ही क्या मुझको दगा दोगी इश्कबाजी में हालाते मजनू से हटकर सं
Poet Maddy
ख़्वाब तुम्हारे अपने सिराहने, अक्सर रखकर सोता हूं मैं......... हर रात सिसक-सिसक कर, तुम्हारी यादों में रोता हूं मैं.......... अपनी हर महफ़िल में तुम्हारी, बेहिसाब तारीफ़ें करता हूं मैं....... तुम्हें ऐसे बदनाम करने वाला, आखिर कौन होता हूं मैं............ ©Poet Maddy ख़्वाब तुम्हारे अपने सिराहने, अक्सर रखकर सोता हूं मैं......... #Dreams##Sobbing#Night#Memories#Gathering#Praise#Defame........