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karthikey poems
कुछ यादें बचपन की सुहानी थी लौट कर उन यादों में जी लूं खुद को ...... हर रोज एक नई कहानी थी झूला झूल कर दोस्तों के संग हर बात निराली थी चेहरे पर मुस्कान लिए बचपन की....... वह यादें सुहानी थी कुछ यादें बचपन की
ika
बीता हुआ पल पुरानी कॉपी के पन्नें बहोत उदास हैं इन दिनों सुना है अब बच्चे काग़ज़ की नाव नहीं बनाते ख़ाली छत और गलियां भी परेशान सी हैं ज़रा पतंगे भी कटकर गिरती नहीं हैं आजकल ... मोहल्ले में कोई खिड़की गिल्ली से नहीं टूटती बगल वाली चाची भैया की शिकायत भी नही करती बगीचे के आम खुद ही टूट कर गिर जाते हैं आजकल माली काका अब डण्डा लेकर किसी को नहीं दौड़ाते अब गुड़िया की चोटी खींचकर भी कोई नहीं भागता दीदी की गुल्लक से पैसे चुराकर आइस क्रीम की दुकान पे नहीं भागता कोई मेज खींचकर आल्मारी की ऊपरी दराज़ में रखे लड्डू भी ख़त्म नहीं होते दादी अब कहानी नहीं सुनाती दादा के साथ बगीचे में सैर को भी नहीं जाते हम अब गुब्बारे वाले के पीछे भी नहीं भागते हम बुड्ढी के बाल वाला भी नहीं आता मोहहल्ले में अब गांव मेरा बहोत बदला बदला सा लगता है मुझे वो बीता दौर बहोत याद आता है मुझे.... कुछ यादें बचपन की🙂
Anupama Jha
यादें (कविता कैप्शन में) #यादें#recall#YoPoWriMo #YQbaba#YQdidi यादें किस पन्ने से शुरू करूँ यादों का किस्सा, सब यादों की अपनी जगह सब यादों का अपना हिस्सा।
Lalit Rajput
वो टियुवल पर नहाना, कोशो तक पैदल जाना। खेतों की हरियाली, वो पेड़ों की डाली। वो मस्त हवायें, पेड़ों की ठंडी छाँव। वसंत का आना, पेड़ों पे जवानी छाना। मुझे पागल सा कर देता है। खेतों की कटाई, ये पेड़ों की छटाई। ये कोयल की कुहू - कुहू, ये चिड़ियो की चु-चु। ये बारिश की बुदें, ये मिट्टी की खुशबु। ये गर्मी का आना, पेड़ों के नीचे टाइम बीताना। मुझे पागल सा कर देता है। खेतों में जाकर पानी लगाना, पानी के लिए वो गुलें बनाना। ताजी मिट्टी में पैरों को दबाना, मिट्टी के घर बनाना। पेड़ों पर आमों का आना, आंधी में झड जाना। उन आमों को उठाने, खेतों में जाना। मुझे पागल सा कर देता है। दूसरों के खेतों से तरबूज चुराना, कुएं में डाल ठंडा कर खाना। भरी दोपहरी में वो साइकिल का चलाना, कुछ लडकों को उसके पीछे दौड़ना। चारे की गठरी को सिर पर ले जाना, बीच राह में उसे गिराना। वो यादें फिर जी पाना, और सोच कर मुस्कराना। मुझे पागल सा कर देता है। कुछ बचपन की यादें...
Kumawat Gopal
चलो, आज कुछ बचपन की बात करते हैं जो एक गुजरा कल बन गया पता नहीं वो खेल, वो मस्तियां वो कागज की जहाज, वो कंचियो का खेल आज वो शाम बन कर रह गया चलो,आज बचपन की बात करते हैं।। कहां मिलती है वो रोटियां जिसमे मां के प्यार की महक आती है अक्सर कभी भूखा ही सोना पड़ता है क्योंकि वो सूखी रोटी नसीब नहीं होती हैं पता है आज अकेले ही सोना पड़ता है नींद नहीं आती, फिर भी आंखे बंद कर लेते हैं पता नहीं आज बचपन की बात करते हैं जो मांगा था सबकुछ मिल गया पर इस जिंदगी की हेरा फेरी में मेरा बचपन, छीन गया वो किताबों को खुशबू भी अच्छी थी सायद किताबें पुरानी हो गई है हम भी पन्नों पर स्याही की तरह फैल गए चलो, बचपन की बात करते हैं "पंथ" हैं कुछ बचपन की यादें
बिंदास मुंडा
मुझे याद है आज भी वो बाते वो बचपन का पल छोटी छोटी बातों पर झगड़ना, फिर थोडी देर बाद साथ में ही खेलना। वो स्कूल से सैचलाय के लिए निकालना, और २,२-३,३ घंटे बाहर अहरा पे घूमना। मुझे याद है आज भी वो बाते वो बचपन का पल वो छठी से अठमी की मस्तीया, सीनियर होने का वो भरपू फ़ायदा उठाना , टीचर को परेशान करना, छरी तोड़ के फेकना। आज भी हमें वो बाते याद है, जो हमे बचाने केलिए पूरी क्लास मार खाई थी। मुझे याद है आज भी वो बाते वो बचपन का पल वो स्कूल की आखरी समय 8 के फाइनल, और अतिम होली जो हम पूरे 2 हप्ते खेले थे। .......................... बचपन की कुछ यादें #बचपन #BoneFire