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Shivkumar
मां का सप्तम रूप है मां कालरात्रि का, क्षण में करती नाश दुष्ट,दैत्य, दानव का। स्मरणमात्र से भाग जाते भूत, प्रेत, निशाचर, उज्जैन से दूर हो जाते हैं पल में ग्रह-बाधा हर। उपवासकों को नहीं भय अग्नि, जल, जंतु का, नहीं होता है भय कभी भी रात्रि या शत्रु का। नाम की तरह रुप भी है अंधकार-सा काला, त्रिनेत्रधारी है माताजी सवारी है गर्दभ का। दाहिना हाथ ऊपर उठा रहता है वरमुद्रा में, बाया हाथ नीचे की ओर है अभय मुद्रा में। तीसरे हाथ में मां के है खड्ग, चौथे में लौहशस्त्र, विशेष पूजा रात्रि में मां की करते हैं तंत्र साधक। शुभकारी है दूसरा नाम मां कालरात्रि का, शुभ करने वाली है मां, है सबकी मान्यता। गुड़हल का पुष्प है प्रिय, गुड़ का भोग लगाते हैं, कपूर या दीपक जलाकर मां की आरती करते हैं। ©Shivkumar #navratri #navaratri2024 #navratri2025 #navratri2026 #navaratri #नवरात्रि मां का सप्तम रूप है मां #कालरात्रि का, क्षण में करती #नाश दु
अदनासा-
Ravishankar Nishad
Sawan Sharma
Jai shree ram घर घर नगर नगर गली मोहल्ले चौराहे पर गूंज रहा श्री राम नाम दिल से होकर जुबानो पर उत्सव जैसा लगता है कितना प्यारा लगता है हरे राम हरे कृष्ण कानो में जो पड़ता है रामलला के स्वागत में भक्तिमय सब हो गया मष्तिष्क से चित्त तक सब प्रफुल्लित हो गया राम कहीं गए नहीं राम हमारे मन में है जीव जंतु में है बसे राम बसे कण कण में है । ©Sawan Sharma घर घर नगर नगर गली मोहल्ले चौराहे पर गूंज रहा श्री राम नाम दिल से होकर जुबानो पर उत्सव जैसा लगता है कितना प्यारा लगता है हरे राम हरे कृष्ण
~Bhavi
सफ़र हर कोई कर रहा है, चाहे वह खुशियों में सफ़र कर रहा हो, या शायद किसी दुःख में।। चाहे वह मुसीबतों में सफ़र कर रहा हो, या मुसीबतों से लड़ कर।। चाहे वह अपनों के साथ सफ़र कर रहा हो, या शायद अपनों के बिना ही।। पर इस पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति, जीव जंतु, हर कोई आज अपना सफ़र तय कर रहा है।। #safar😇 ©~Bhavi सफ़र हर कोई कर रहा है, चाहे वह खुशियों में सफ़र कर रहा हो, या शायद किसी दुःख में।। चाहे वह मुसीबतों में सफ़र कर रहा हो, या मुसीबतों से ल
Nisheeth pandey
जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना। शायद पेड़ ने पत्तियों को पाठ पठाया, क्या खूब संकल्प पत्तियों ने उठाया। पेड़ और पत्तियों का जीवन अंतिम साँस तक संधर्ष से है भरा ग्रीष्म में तपती झुलसती है , अंगारों के सम जलती है। शुष्क हवा के थपेड़ों से, फिर पत्ता पत्ता दहलती है। नीले आकाश पर घनघोर बादल जब छाते हैं, पत्ते पत्ते तन मन को भीगोने से नहीं बचा पाते हैं। जीव जंतु मनुख तोड़ मेमोर जाते हैं, फिर भी नए कोपलों संग चलते जाते है। अवरोध बहुत आते हैं लेकिन, पर कभी वीर की भांति नहीं घबराते हैं। पेड़ रहता अडिग है अपने सपने के लिये चीख़ चीख़ कहता सपनों को साकार बनाने दो। संधर्ष दौर कहाँ कम होता जब आते भीषण झंझावात, तो कुछ पेड़ पत्ते फूल और फल गिर जाते हैं, नवीन सृजन को वो अपने, फिर बीज अंकुरित कर जाते हैं। ऐसा ही जीवनचक्र होता है, तूफ़ान तो आते जाते रहते हैं, नियति के तूफ़ानों से, अब जी भर के टकराने दो। अंकुरित से पेड़ तक बनने का सफर सरल न होता , पथ में अनेक विघ्न आते है। जो बाधाओं से न विचलित होते, वही पेड़ फलदायी मंज़िल पाते है। जो मानव ज़ख्म से लहूलुहान हो कर भी उठ जाते है, वह मानव इतिहास रच जाते है। इतिहास के नए कोंपल पर, एक फलदाई साख बन जाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Sukha जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनन
Ravi Shankar Kumar Akela
विश्व की सभी रचनाएं या सृष्टि की सभी मूल नियामक तथा संचालक शक्ति को ही प्रकृति कहते हैं। ऐसी सभी वस्तुएं जो इस ब्रम्हांड में मौजूद है एवं कोई भी जीव जंतु उसमें अपनी इच्छा अनुसार परिवर्तन ना ला सके उसे प्रकृति कहते हैं। ©Ravi Shankar Kumar Akela #adventure विश्व की सभी रचनाएं या सृष्टि की सभी मूल नियामक तथा संचालक शक्ति को ही प्रकृति कहते हैं। ऐसी सभी वस्तुएं जो इस ब्रम्हांड में मौजू
Ravi Shankar Kumar Akela
प्राकृतिक पर्यावरण में पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवीय एवं अजीवीय दोनों परिस्थितियों को शामिल किया जाता है! भूमि, जल, वायु, पेड़ पौधे एवं जीव-जंतु मिलकर प्राकृतिक पर्यावरण का निर्माण करते हैं! स्थलमंडल,जलमंडल, वायुमंडल एवं जैवमंडल आदि भी प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं! ©Ravi Shankar Kumar Akela #DiyaSalaai प्राकृतिक पर्यावरण में पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवीय एवं अजीवीय दोनों परिस्थितियों को शामिल किया जाता है! भूमि, जल, वायु, पेड़ प
Nisheeth pandey
पेड़ का जीवन ------------/ जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा- अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना। शायद पेड़ ने पत्तियों को पाठ पठाया, क्या खूब संकल्प पत्तियों ने उठाया। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। पेड़ और पत्तियों का जीवन अंतिम साँस तक संधर्ष से है भरा ग्रीष्म में तपती झुलसती है , अंगारों के सम जलती है। शुष्क हवा के थपेड़ों से, फिर पत्ता पत्ता दहलती है। नीले आकाश पर घनघोर बादल जब छाते हैं, पत्ते पत्ते तन मन को भीगोने से नहीं बचा पाते हैं। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। जीव जंतु मनुख तोड़ मेमोर जाते हैं, फिर भी नए कोपलों संग चलते जाते है। अवरोध बहुत आते हैं लेकिन, पर कभी वीर की भांति नहीं घबराते हैं। पेड़ रहता अडिग है अपने सपने के लिये चीख़ चीख़ कहता सपनों को साकार बनाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। संधर्ष दौर कहाँ कम होता जब आते भीषण झंझावात, तो कुछ पेड़ पत्ते फूल और फल गिर जाते हैं, नवीन सृजन को वो अपने, फिर बीज अंकुरित कर जाते हैं। ऐसा ही जीवनचक्र होता है, तूफ़ान तो आते जाते रहते हैं, नियति के तूफ़ानों से, अब जी भर के टकराने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। अंकुरित से पेड़ तक बनने का सफर सरल न होता , पथ में अनेक विघ्न आते है। जो बाधाओं से न विचलित होते, वही पेड़ फलदायी मंज़िल पाते है। जो मानव ज़ख्म से लहूलुहान हो कर भी उठ जाते है, वह मानव इतिहास रच जाते है। इतिहास के नए कोंपल पर, एक फलदाई साख बन जाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Pattiyan पेड़ का जीवन ------ जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी
Sujeet Banshiwal
जंतुओं और पक्षियों की संवेदना, प्रकृति की समझ व तर्क शक्ति,, मनुष्य के संवेदना, प्रकृति की समझ व तर्क शक्ति से कई गुना अधिक होती हैं। प्रकृति ने उन्हें असीम शक्ति व क्षमता दी है जिसका वे केवल अपने उपयोग के लिए प्रयोग करते हैं न कि किसी को हानि पहुंचाने के लिए। अपने पूर्वजों से कई बार आपने सुना होगा कि बाढ़ आने से पहले फला जानवर अपने बच्चों को उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले जा रहा था। इसका मतलब इन जीव जंतुओं व पक्षिओं में अद्भुद क्षमता होती है जिसे प्रकृति ने उन्हें उपहार स्वरूप दिया है जो मनुष्य की समझ से परे है। ©Sujeet Banshiwal #GarajteBaadal जंतुओं और पक्षियों की संवेदना, प्रकृति की समझ व तर्क शक्ति,, मनुष्य के संवेदना, प्रकृति की समझ व तर्क शक्ति से कई गुना अधिक