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Shivkumar
ब्रह्माण्ड में चारों तरफ़ सिर्फ अंधकार था व्याप्त। चौथे रुप में माता ने तब किया अण्ड निर्माण।। सभी जीवों और प्राणियों में है मां का तेज। माता के कृपा बिना हो जाते हैं सब निस्तेज।। सारा चराचर जगत है मां के ही माया से मोहित। मां के ही प्रेरणा से होता है जगत में सबका हित।। दिव्य प्रकाश जगत में मां कुष्मांडा फैलाती। ममतामई, करुणामई, कल्याणकारी कहलाती।। सौम्य स्वभाव वाली है मेरी मां अष्टभुजाओंवाली। भक्तों की सारी विपदा दूर करती है महामाई।। जो कोई श्रद्धा भक्ति से मां के शरण में आता। सुख, समृद्धि,धन, सम्पदा बिन मांगे मिल जाता।। ©Shivkumar #navratri #navratrispecial #नवरात्रि #navratri2024 #ब्रह्माण्ड में चारों तरफ़ सिर्फ #अंधकार था व्याप्त । चौथे रुप में माता ने तब किया
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जानिए श्री लक्ष्मी को जन्म क्यों लेना पड़ेगा? **************************************** मालूम है आपको श्री लक्ष्मी ने जन्म क्यों लेना पड़ेगा। वो भी जन्म चार हाथ के साथ प्रमाण के साथ इस कलयुग में ? हमारे समस्त ब्रह्माण्ड की एक विशेष शक्ति होती है। जिसको एक श्री रुप में अर्थात श्री लक्ष्मी रूप में जाना जाता है। अगले कुछ वर्षों के बाद श्री लक्ष्मी को चार हाथ के साथ, गोस्वामी कुल में जन्म लेना पड़ेगा यह मैं 100% दावा करता हूं। समस्त पृथ्वी वासियों क्योंकि विष्णु भगवान स्वयं, मेरे भाई पुत्र रूप में लड़का बनकर आ चुके हैं 23/12/23 =23:00 भारतीय समयानुसार क्योंकि लक्ष्मी के बिना देव लोक सम्पूर्ण अधुरा- अधुरा सा है। इसलिए समस्त ब्रह्माण्ड के देवताओं की शादी कारण भी मैं स्वयं श्रीकृष्ण भगवान ही हुं। सबसे पहले मेरे भक्तों की शादी करवाना भी अनिवार्य है, संसार में इसके हमारी लीला भी अहिंसा पर शुरू हो रही है। 04/07/2025 से इस पृथ्वी पर हमें दिखाना और बोलना नहीं। केवल हमारी कुछ समय की चुप्पी ही एक, समस्त ब्रह्माण्ड को हिलाकर रखने वाली है। समस्त संसार वासियों व पृथ्वी वासियों । क्योंकि एक लड़के का जन्म ही इसी पृथ्वी पर इतिहास , बनकर रह जाने वाला हो जाएगा आपके ही बीच-बीच। यहीं क्रिया की विवशता का कारण बनेगा लीला हमारी । श्री लक्ष्मी को चार हाथ के साथ जन्म का कारण भी बन जाएगा । समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त नारी शक्ति के आगे। सुह्रदय से धन्यवाद जी ©GRHC~TECH~TRICKS( मैं भगवान श्री कृष्ण हूं शत् प्रतिशत) #grhctechtricks #New #माढ़ा #कुलदीपगोस्वामी #विष्णु श्री लक्ष्मी को जन्म क्यों लेना पड़ेगा? **************************************** म
Ravi Shankar Kumar Akela
दुनिया की क्या परिभाषा है? दुनिया यदपि अरबी शब्द है परन्तु हिन्दी में धड्ल्ले से प्रयोग होता है। यह एक संज्ञा शब्द है तथा स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होता है। इसके समानार्थक शब्द हैं जगत ; संसार ; आलम, जीव समष्टि, पृथ्वी तथा ब्रह्माण्ड आदि के लिये प्रयुक्त होता है। वस्तुत: दुनिया: इस पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणियों; जिनमें मनुष्य भी शामिल है को मिलाकर इस ग्रह की कुल प्राकृति दुनिया कहलाती है। दुनिया शब्द संसार का पर्यायवाची है। दुनिया का अर्थ संसार से ही है तथापि दोनों में भिन्नता है। संसरति इति संसार: 'संसरति इति संसारः'—अर्थात जो लगातार गतिशील है, वही संसार है। भारतीय चिंतनधारा में जीव, जगत और ब्रहम पर पर्याप्त विचार किया गया है। संसार का सामान्य अर्थ विश्व, इहलोक, जीवन का जंजाल, गृहस्थी, घर-संसार, दृश्य जगत आदि है। वस्तुत: संसार के अर्थ में कर्म व पुनर्जन्म की अवधारणा है। किन्तु दुनिया शब्द मे ऐसा नहीं है क्योंकि वे लोग अरबी लोग कर्म व पुनर्जन्म मेम विश्वस नहीं करते हैं। यहूदी और उनसे निकले धर्म पुनर्जन्म की धारणा को नहीं मानते। मरने के बाद सभी कयामत के दिन जगाए जाएंगे अर्थात तब उनके अच्छे और बुरे कर्मों पर न्याय होगा। ©Ravi Shankar Kumar Akela #chandrayaan3 दुनिया की क्या परिभाषा है? दुनिया यदपि अरबी शब्द है परन्तु हिन्दी में धड्ल्ले से प्रयोग होता है। यह एक संज्ञा शब्द है तथा स्त
Ravi Shankar Kumar Akela
इसके समानार्थक शब्द हैं जगत ; संसार ; आलम, जीव समष्टि, पृथ्वी तथा ब्रह्माण्ड आदि के लिये प्रयुक्त होता है। वस्तुत: दुनिया: इस पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणियों; जिनमें मनुष्य भी शामिल है को मिलाकर इस ग्रह की कुल प्राकृति दुनिया कहलाती है। दुनिया शब्द संसार का पर्यायवाची है। ©Ravi Shankar Kumar Akela #chandrayaan3 इसके समानार्थक शब्द हैं जगत ; संसार ; आलम, जीव समष्टि, पृथ्वी तथा ब्रह्माण्ड आदि के लिये प्रयुक्त होता है। वस्तुत: दुनिया: इस
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प्रथम श्रवण विधा की 9 अवधारणाएं ******************************** 1.केवल श्रवण विधा से ही एक अधर्म को धर्म रूप मानना का मुल कारण है वर्तमान काल के आधुनिक युग में समस्त पृथ्वी पर । 2.एक श्रवण विधा से अपुर्ण ज्ञान को पुर्ण ज्ञान द्वारा से न जानना का मुल कारण भी है। 3. स्पष्टता से श्रवण विधा की सात कलाऔ से अवलोकन नहीं करना उनका घोर अंधकार को । अज्ञान रूप से इसे पुर्ण प्रकाश रूप में समझना का मुल कारण है । 4.पाखण्ड रूपी तुच्छ अनुभूति को वास्तविक रूप में न समझना एक अधर्मी रुपी अवधारणाएं पैदा करती रहती है निरंतर। 5.अपने आपको शैतान जानना और दुसरे को श्रेष्ठता से समझते चलना खुद के विश्वास अनुभव को खत्म करके एक चलन से पुर्ण अन्धविश्वास में बदलने का मुल कारण एक पुर्ण भ्रम की जड़ ही है। हर पल पुरुषार्थ शक्ति और नारी शक्ति आज़ अपने हृदय में समस्त पृथ्वी पर। 6. आपके पुरुषार्थ शक्ति/नारी शक्ति के सम्पुर्ण शरीर में ही समस्त ब्रह्माण्ड का ज्ञान आन्तरिक पृवति में अच्छी तरह संजोए रखा है । इस युग में आपका ज्ञान ही समस्त पृथ्वी पर भौतिक जीवन में बाहरी पृवति खोजने से तुच्छ साहस से खोजते जा रहे है। निरंतर दिन-प्रतिदिन। 7.अपने अनुभव को खत्म करके औरौ की संस्कृति और प्रकृति से अनुभव प्रस्तुत कर रहा है /रहे है अपने ग्रहस्थजीवन काल में। इसलिए स्वयं का शत्रु खुद हो रहे है निरंतर अभ्यास के तुच्छ ज्ञान से। 8. माता और पिता को केवल जन्मदाता मानकर धीरे- धीरे संस्कार रूपी पवित्र मोक्षदायिनी मार्ग को त्यागकर जाने से। अपने तुच्छ गुरुऔ के पाखण्ड को अपनाकर अधोगति मार्ग को स्वयं खोजकर ला रहे है अपने ग्रहस्थजीवन काल मैं। 9. स्वय ही अपना उद्धार कर सकते है तुम सभी , यही उद्धार आपके माता-पिता, पितृऋण से मुक्त कर देगा। आपकों एक दिन अन्धकार रूप संसार वृक्ष से इस पथ पर भटकने से रुप एक अवधारणाएं पैदा करना है यही भुल आपकी अधोगति का रुप है। यह मेरी वाणी श्री गीता जी गुप्त रहस्य भाव है। ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #tereliye प्रथम श्रवण विधा की 9 अवधारणाएं ******************************** 1.केवल श्रवण विधा से ही
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दिमाग की गति **************** आज तक सम्पूर्ण पृथ्वी पर और इतिहास में सबसे तीव्र गति मन की बताया गया है। और इस संसार के डाक्टरों ने इस आत्मा के, शरीर में दिमाग की गति को इस इससे भी अर्थात मन की गति से भीअधिक बताया गया है। मेरे परिवार वालों को साल 2011 में । इस गति का अनुभव आपको भी देखने को मिल सकता है । 25 मई 2023 को शाम 4 बजे के शो में। इस आत्मा के पास समस्त इतिहास के समस्त ब्रह्माण्ड के , प्राचीन समस्त बाणों की सम्पूर्ण प्रकृति से, मिला ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा है। यह मेरी आत्मा की एक सत्य प्रतिज्ञा है ? हर बात का उचित समय होता है ? वह उचित समय पर ही कहीं जाती है? धन्यवाद जी ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #kitaabein #New #treanding #viral #Real दिमाग की गति ****************
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प्रथम संस्कार ******************* हे समस्त पृथ्वी पर समस्त धर्मों के परमत्तव अंशों। आपकी सोच से हर इंसान का प्रथम संस्कार को, अपनी दृष्टि से आपकी अलग-अलग संरचना हैं। ये केवल इस पृथ्वी पर अहम्,वहम और अज्ञान , होने का पुर्ण स्वरूप भी है- आपमें? जानिएगा कैसे? जब से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है ,तब से अब तक और आगे भी भविष्य में जब- तक सृष्टि का स्वरूप रहेगा। सभी धर्म के मानव का प्रथम संस्कार लुप्त नहीं होगा। ज्यों का त्यो था भी ?और रहने वाला भी है? आन्तरिक पृवति के रूप में ये और आज जो इसे लुप्त हुआ?मानते होतो आप ? हे परमत्तव अंश ये केवल बाहरी पृवति का मुढ़ भाव है? आपका हमारा संस्कार लुप्त नहीं हो गया /जाता है। क्या है वास्तविक में हमारा प्रथम संस्कार? करुणा और दया के संगम से मिलकर बना हुआ होता है। गर्भजन्म के साथ से ही अंतिम पल तक साथ चलता । ये संस्कार भी इस संसार में हर धर्म में। इस पृथ्वी पर हर धर्म का मानव का यह प्रथम संस्कार है। जिसमें करूणा -पिता का प्रतीक है । और दया- माता प्रतीक है । इसलिए दोनों के संयोग को ही इस समस्त ब्रह्माण्ड में । भगवान का स्वरूप भी कहा जाता है इस संसार में । हर धर्म और हर जाति में ,समस्त पृथ्वी वासियों। अब बताओ आप प्रथम संस्कार लुप्त हुआ है। (हां या नहीं) इस संसार में से आपकी सोच से हे परमत्तव अंश । ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #New #Reels #viral #HumptyKavya #Ne #Trading #reading
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***ज्ञान*** ज्ञान के स्वरूप के कितने रुप व कारण है ? सबसे पवित्र ज्ञान क्या है ? (जानिए) समस्त पृथ्वी पर समस्त परमत्तव अंशों समस्त ज्ञान का रुप नाशवान और जड़वर्ग का ज्ञान का इतिहास प्रकृति के स्वरूप में समाया हुआ है उनमें प्रमुख प्रकृति के ही 28 गुण है । समस्त देव और मनुष्य के तो केवल (सत,रज,तम) तीन गुणों को अपनाकर भी अपना उद्धार नहीं कर सकते हैं । जब तक प्रकृति के प्रथम गुण निस्वार्थ भाव को नहीं अपनाएगें पुर्ण ज्ञान के स्वरूप में प्रकृति के 28गुण हद्रय 4वेद(4वाल) और अपने ह्रदय में जन्म से ही मिलता है। और दो उपहार रुपी घड़े भरे हुए विरासत रुप में भी मिलते हैं। 1.एक विष रुपी ज्ञान 2.एक अमृत रुपी ज्ञान जन्म से ही हर धर्म के इन्सान को मिलता है यहां अपने हृदय में। यह उपहार भगवान व प्रकृति का आपको भेंट रुप मिला हुआ है । एक विष रुपी घड़े को लुटाते -लुटाते आपकी जिन्दगी गुजर जाती है । हे परमत्तव अंश इस संसार में केवल करोड़ों में । एक ही इन्सान ह्रदय में से विष रुपी घड़ा ही खत्म कर पाता है। ऐसा प्रकृति पर दृढ़ विश्वास से लिखता हूं । उसके बाद दुसरे घड़े का अमृत सागर रुपी ज्ञान से उत्पन्न । ज्ञान ही इस धरा का सबसे पवित्र ज्ञान भी कहा जाता है । अमृतसागर की गहराई से निकला ही अमृत सागर रुपी । ज्ञान ही ज्ञान के स्वरूप में समा जाता है। जैसे की-श्री गीता जी का उद्गम इसी का एक सबसे बड़ा उदाहरण है। हमारी प्रकृति का इस ब्रह्माण्ड में। यही ज्ञान आपके ह्रदय में आज भी जीवित है। हे परमत्तव अंश ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #New #viral #treanding #Flower Create By Heart Alka Pandey Miss khan teachershailesh Anshu writer आजयपाल बरगी कमल कांत S
Vedantika
अभिव्यक्ति-27 वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। ‘दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! “रामधारी सिंह दिनकर” वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या