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Asif Hindustani Official
Asif Hindustani Official
VATSA
अपनी नज़रों को चुराते क्यूँ हो तुम मुझे छोड़ कर जाते क्यूँ हो भूल गै जब अपने पैरों से मुझे सताते थे तुम्हारे नाखुनो से मोजे भी खुरच जाते थे मैं तो मान जाता था अक्सर जब मनाते थे सुब्कियाॅ लेकर मेरी गोदी में सो जाते थे मुझे सपनों से जगाते क्यूँ हो हँसा कर आज रुलाते क्यूँ हो तुम मुझे छोड़ कर जाते क्यूँ हो #चलेआओ #yqbaba #yqdidi #yqhindi #हिंदी #vatsa अपनी नज़रों को चुराते क्यूँ हो तुम मुझे छोड़ कर जाते क्यूँ हो भूल गै जब अपने पैरों से मुझे सत
सुसि ग़ाफ़िल
तमाम गलियां कच्ची है मैं बिना मोजे के चलना चाहता हूं तलवे छू ले मिट्टी को मैं ठंडा होना चाहता हूं पांव पर आए धूल की चादर रेत का घाघर होना चाहता हूं आए खुशबू कण-कण से मैं रेगिस्तान होना चाहता हूं बहे कोई नदी गहरी फिर उसमें सिमटना चाहता हूं बनकर सरीखे सा शुष्क मुसाफिर टीलों में खोना चाहता हूं राहत भरी सांस से आए मुझे मैं मिट्टी होना चाहता हूं तेरी गिरे कोई एक बूंद माथे पर मैं फूल रोहिड़ा होना चाहता हूं देखे समंदर आंख उठाकर मैं गुलाबी रेगिस्तान होना चाहता हूं | तमाम गलियां कच्ची है मैं बिना मोजे के चलना चाहता हूं तलवे छू ले मिट्टी को मैं ठंडा होना चाहता हूं पांव पर आए धूल की चादर
Asif Hindustani Official
Like, Comment and Re-post ©Asif Hindustani Official जब से तुम हो मिली जिंदगी मिल गई, अब समझिए मुझे हर खुशी मिल गई, प्यार का ये भी एक मोजेज़ा देखिए, तीरगी में मुझे रोशनी मिल गई ! jab se tum h
अशेष_शून्य
ये गले लगना भी कितना जरूरी है न ?! ~©Anjali Rai — % & सुबह से सांझ तक सिर्फ सूरज माथे पर नहीं चलता एक गृहणी भी उसके साथ दौड़ लगाती है पौं फटने से पहले उठकर पूरा घर आंगन हथेलियों पर रख लेती
Rajan Girdhar
**मजे में हूँ ( बुढ़ापा )** घुटने बोलते हैं लड़खड़ाता हूँ छत पर रेलिंग पकड़कर जाता हूँ दाँत कुछ ढीले हो चले रोटी डुबा कर खाता हूँ
Kulbhushan Arora
एक दूजे की इज़्ज़त सीख गए करना अगर हम तो रिश्तों का तवाज़न खुद ब खुद बनता चला जाएगा, कैसा यह समाज का अजीब सा बोलबाला है पुरुष कमाता है इसलिए शहंशाह है स्त्री घर में रहती है इसलिए कोई खास मोल नहीं.... चलो करते हैं बराबर दो
Consciously Unconscious
(लड़कियां) मेरा जन्म लेना भी यहां पर पाप माना जाता है, मेरी सांसों को तो माटी की तरह बेचा जाता है। रुलाया जाता है मुझको और फिर मुझे, कह कर पराया धन ठुकराया जाता है। मुझे मार देते हैं मेरे जन्म से पहले, लालछन लगाए जाते हैं जब कदम घर से भरा जाता है। कुछ ऐसी ही है जिंदगी मेरी की दूजे के घर हुई तो पूजते, खुदके घर पर मुझे, मेरे अस्तित्व को ललकारा जाता है। ब्याहदी जाती हुं मैं बलिक होने से भी पहले, मुझे एक घर से दूसरे को भेजा जाता है। मां बाबा का आंगन छोड़ देखो व्यथा हाय, गैर की चोखट पर मुझे सजाया जाता है। (लड़के) होते ही बड़ा मैं यूं झुकने लगता हूं, अपनी ही आंखों में खुदको चुभने लगता हूं। बेरोजगारी का दौर तो देखो साहब जरा, मैं खुदकी ही खुदकी चीता को बुनने लगता हूं। जाना होता है घर से दूर मुझको भी तो आखिर, फर्क इतना की मैं दूजे परिवार नहीं किसी कार्यालय की चौखट पर मिलता हूं। रोना भी चाहता हूं पर आसूं बजाए नहीं जाते मुझसे, खुदके हृदय में अंतर ही अंतर मरते रहता हूं। कभी मरती है मुझे महंगाई की और कभी आ लगती गले मार मुफलिसी की, दर्द रातों में पूछो मेरे फटे मोजे से किस्तर एक ही काज में दो उंगली रखता हूं। लगता हूं गलत मैं ही की मेरी ही गलती है होती, अरे तुम्हें मारा जाता एक बार मैं हर बार मरता हूं। पत्थर हृदय नहीं है मेरा की शीशा तो आखिर वो भी है, देखो कभी आकर कैसे टूटे कांच संजो के रखता हूं। अरे ना पूछो की आखिर कैसे है जिंदगी मेरी, सर्द रातों में मैं खुद जलकर आंच बनता हूं। ©Consciously Unconscious #Hope (लड़कियां) मेरा जन्म लेना भी यहां पर पाप माना जाता है, मेरी सांसों को तो माटी की तरह बेचा जाता है।