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Stories related to बटेर

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Arun

बटेर

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रविन्द्र 'गुल' ek shayar

आंखें खुली रहें तेरी तीतर-बटेर सी... #शायरी

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Dear Bhupi

बहादुर बटेर _ एक रोमांचक कहानी बहादुरी की #nojotohindi #Nojotostories #nojotostory #nojotostory#MorningGossip #Love #nojotostory❤

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Vedantika

♥️ आइए लिखते हैं मुहावरेवालीरचना_66 आधा तीतर और बटेर मुहावरे का अर्थ है - अधूरा ज्ञान ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ दो लेख

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आधे तीतर आधे बटेर ने लालाजी का किया बुरा हाल
किस्सा-ए-‘वेद’ ये तब का हैं जब वे हुए बहुत बीमार
कंजूसी की आदत के मारे लालाजी ने दावत उड़ाई
बासी खाना खाकर उन्होंने अपनी तोंद फुलाई
असर ऐसा हुआ दावत का लालाजी हुए बेहोश
एक डॉक्टर था सिरहाने जब उनको आया होश
डॉक्टर कम वो फकीर था ज्यादा झाड़ फूंक करने लगा
जड़ी बूटियों को पीसकर कुछ जतन करने लगा
देखकर उसके रंग-ढंग लालाजी को चढ़ा बुखार
लेकिन पैसों का सोच कर पी गए कड़वा क्वाथ
फिर उन्हें आए चक्कर औऱ जान पर बन आई
जड़ी बूटी के फेर में विषबेल थी उन्हें खिलाई
तब पैसों का मोह छोड़ वो गए अस्पताल
जान बचाकर आये वो करते कदमताल
जानवरों का डॉक्टर था जो घर पर था आया
आधा तीतर आधा बटेर ने जीवन पर संकट लाया ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_66 

आधा तीतर और बटेर मुहावरे का अर्थ है - अधूरा ज्ञान

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

♥️ दो लेख

DR. SANJU TRIPATHI

♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_66 आधा तीतर और बटेर मुहावरे का अर्थ है - बेमेल-बेढंगा, अजीब लगने वाला कार्य, किसी कार्य का अधूरा ज्ञान, #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़

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कभी-कभी भगवान भी कोई रिश्ता आधा तीतर आधा बटेर सा बना देता है,
आधी जिंदगी समझने में आधी जिंदगी रिश्ता सम्भालने में निकल जाती है।
 ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_66 

आधा तीतर और बटेर मुहावरे का अर्थ है - बेमेल-बेढंगा, अजीब लगने वाला कार्य, किसी कार्य का अधूरा ज्ञान,

Anita Saini

आजा रे आजा रे ओ बदरा प्यारे ।।१।। तीतर बटेर,कोयल, पपीहा मोर पुकारे।।२।। तेरे दरस को, तरस रहे हैं सारे।।३।। सूरज की अग्नि में, झुलस रहे ह #feelings #yqbaba #philosophy #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #yqthoughts #ओबदरा

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आजा रे आजा रे 
ओ बदरा प्यारे ।।१।।
 तीतर बटेर,कोयल,
 पपीहा मोर पुकारे।।२।।
तेरे दरस को,
तरस रहे हैं सारे।।३।।
सूरज की अग्नि में,
 झुलस रहे हैं सारे।।४।।
ताल तैलया,नदियाँ, 
पोखर,सूख गए हैं सारे।।५।।
बिन पानी कैसे जिएं जीव,
तू ही आकर प्राण बचा रे।।६।।
हृदय इतना कठोर न कर,
रिमझिम बरखा बरसा रे।।७।।
लहलहा उठेगी धरती,भर दे
तू ताल तैलया और नदिया रे।।८।। आजा रे आजा रे 
ओ बदरा प्यारे ।।१।।
 तीतर बटेर,कोयल,
 पपीहा मोर पुकारे।।२।।
तेरे दरस को,
तरस रहे हैं सारे।।३।।
सूरज की अग्नि में,
 झुलस रहे ह

मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *

सपनों का ढेर है प्यारे, बस नज़र का फेर है प्यारे| तू ही डर, तू ही हिम्मत, तू ही ताकत, गीदड़ में छुपा शेर है प्यारे| बस नज़र का फेर है प्यारे… #Life_experience

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सपनों का ढेर है प्यारे,
बस नज़र का फेर है प्यारे|

तू ही डर, तू ही हिम्मत, तू ही ताकत,
गीदड़ में छुपा शेर है प्यारे|
बस नज़र का फेर है प्यारे…

तु ही मुसाफ़िर, तू ही कारवां, तू ही मंजिल,
फिर किस बात की देर है प्यारे|
बस नज़र का फेर है प्यारे…

कौन अपना, कौन पराया, किसका तू,
सब तेरे हैं कौन गैर है प्यारे|
बस नज़र का फेर है प्यारे…

तेरी हिम्मत से झुखेगा आसमा भी,
बस थोड़ी देर सवेर है प्यारे|
बस नज़र का फेर है प्यारे…

जो करना है कर ले आज ही ‘अंकुर’,
उम्र उडती हुई बटेर है प्यारे|
बस नज़र का फेर है प्यारे… सपनों का ढेर है प्यारे,
बस नज़र का फेर है प्यारे|

तू ही डर, तू ही हिम्मत, तू ही ताकत,
गीदड़ में छुपा शेर है प्यारे|
बस नज़र का फेर है प्यारे…

Prabha Chauhan

दर्भट- एकांत जगह, मनोरथ- इच्छा ----------------------------------------------- अब समेट कर खुद को बिखेर दिया है मैंने, डूबती रात को उजला सवे #SelfMotivation #khoyalamha #Aashayen #WritersMotive #prabhachauahan

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रजनीश "स्वच्छंद"

दुनिया सागर मैं बून्द रहा।। जो आज मैं आंखें मूंद रहा, दुनिया सागर मैं बून्द रहा। निजबल का जो अभिमान खड़ा, मूर्छित और वो कुंद रहा। अंधी नगरी #Poetry #kavita

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दुनिया सागर मैं बून्द रहा।।

जो आज मैं आंखें मूंद रहा,
दुनिया सागर मैं बून्द रहा।
निजबल का जो अभिमान खड़ा,
मूर्छित और वो कुंद रहा।

अंधी नगरी का राजा काना मैं,
दुनिया बटेर उसका दाना मैं।
कुंए का मेढक मैं बन बैठा,
है जग विस्तृत कब माना मैं।

सावन का अंधा मैं बैठा था,
दम्भ लहु अंदर पैठा था।
रस्सी तो जलती रही मगर,
तना हुआ तब भी ऐंठा था।

खून पसीना एक हुआ कब,
कर्म मेरा कहो नेक हुआ कब।
बस बांछें खिलती रहतीं थीं,
यत्न कहो तुम अनेक हुआ कब।

चींटी था पर भी निकले थे,
अहं-बर्फ़ कहाँ कब पिघले थे।
खूंटे के बल जो कूद पड़ा,
चहुये के दांत कहाँ कब निकले थे।

छाती पे मूंग मैं दलता रहा,
खोटा सिक्का पर चलता रहा।
सच से आंखें चुराईं थीं,
डूबते सूरज सा ढलता रहा।

ताश के पत्ते बन बिखरा हूँ,
कब आग चखी और कब निखरा हूँ।
पल पल घुटनों पर आता रहा,
सब जिसपे फूटे मैं वो ठीकरा हूँ।

जब आंख खुली थी सवेर नहीं,
घर था अंधेरा लगी कोई देर नहीं।
अपना बोया था काट रहा,
किस्मत का था कोई फेर नहीं।

चिड़िया बस चुगती खेत रही,
जीवन मुट्ठी से फिसलती रेत रही।
आज किनारे बैठ हूँ रोता,
कालिख बोलो कब श्वेत रही।

©रजनीश "स्वछंद" दुनिया सागर मैं बून्द रहा।।

जो आज मैं आंखें मूंद रहा,
दुनिया सागर मैं बून्द रहा।
निजबल का जो अभिमान खड़ा,
मूर्छित और वो कुंद रहा।

अंधी नगरी

N S Yadav GoldMine

#RABINDRANATHTAGORE महाभारत: स्‍त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्को #पौराणिककथा

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