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Dear Bhupi
Vedantika
आधे तीतर आधे बटेर ने लालाजी का किया बुरा हाल किस्सा-ए-‘वेद’ ये तब का हैं जब वे हुए बहुत बीमार कंजूसी की आदत के मारे लालाजी ने दावत उड़ाई बासी खाना खाकर उन्होंने अपनी तोंद फुलाई असर ऐसा हुआ दावत का लालाजी हुए बेहोश एक डॉक्टर था सिरहाने जब उनको आया होश डॉक्टर कम वो फकीर था ज्यादा झाड़ फूंक करने लगा जड़ी बूटियों को पीसकर कुछ जतन करने लगा देखकर उसके रंग-ढंग लालाजी को चढ़ा बुखार लेकिन पैसों का सोच कर पी गए कड़वा क्वाथ फिर उन्हें आए चक्कर औऱ जान पर बन आई जड़ी बूटी के फेर में विषबेल थी उन्हें खिलाई तब पैसों का मोह छोड़ वो गए अस्पताल जान बचाकर आये वो करते कदमताल जानवरों का डॉक्टर था जो घर पर था आया आधा तीतर आधा बटेर ने जीवन पर संकट लाया ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_66 आधा तीतर और बटेर मुहावरे का अर्थ है - अधूरा ज्ञान ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ दो लेख
DR. SANJU TRIPATHI
कभी-कभी भगवान भी कोई रिश्ता आधा तीतर आधा बटेर सा बना देता है, आधी जिंदगी समझने में आधी जिंदगी रिश्ता सम्भालने में निकल जाती है। ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_66 आधा तीतर और बटेर मुहावरे का अर्थ है - बेमेल-बेढंगा, अजीब लगने वाला कार्य, किसी कार्य का अधूरा ज्ञान,
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
सपनों का ढेर है प्यारे, बस नज़र का फेर है प्यारे| तू ही डर, तू ही हिम्मत, तू ही ताकत, गीदड़ में छुपा शेर है प्यारे| बस नज़र का फेर है प्यारे… तु ही मुसाफ़िर, तू ही कारवां, तू ही मंजिल, फिर किस बात की देर है प्यारे| बस नज़र का फेर है प्यारे… कौन अपना, कौन पराया, किसका तू, सब तेरे हैं कौन गैर है प्यारे| बस नज़र का फेर है प्यारे… तेरी हिम्मत से झुखेगा आसमा भी, बस थोड़ी देर सवेर है प्यारे| बस नज़र का फेर है प्यारे… जो करना है कर ले आज ही ‘अंकुर’, उम्र उडती हुई बटेर है प्यारे| बस नज़र का फेर है प्यारे… सपनों का ढेर है प्यारे, बस नज़र का फेर है प्यारे| तू ही डर, तू ही हिम्मत, तू ही ताकत, गीदड़ में छुपा शेर है प्यारे| बस नज़र का फेर है प्यारे…
Anita Saini
आजा रे आजा रे ओ बदरा प्यारे ।।१।। तीतर बटेर,कोयल, पपीहा मोर पुकारे।।२।। तेरे दरस को, तरस रहे हैं सारे।।३।। सूरज की अग्नि में, झुलस रहे हैं सारे।।४।। ताल तैलया,नदियाँ, पोखर,सूख गए हैं सारे।।५।। बिन पानी कैसे जिएं जीव, तू ही आकर प्राण बचा रे।।६।। हृदय इतना कठोर न कर, रिमझिम बरखा बरसा रे।।७।। लहलहा उठेगी धरती,भर दे तू ताल तैलया और नदिया रे।।८।। आजा रे आजा रे ओ बदरा प्यारे ।।१।। तीतर बटेर,कोयल, पपीहा मोर पुकारे।।२।। तेरे दरस को, तरस रहे हैं सारे।।३।। सूरज की अग्नि में, झुलस रहे ह
Prabha Chauhan
रजनीश "स्वच्छंद"
दुनिया सागर मैं बून्द रहा।। जो आज मैं आंखें मूंद रहा, दुनिया सागर मैं बून्द रहा। निजबल का जो अभिमान खड़ा, मूर्छित और वो कुंद रहा। अंधी नगरी का राजा काना मैं, दुनिया बटेर उसका दाना मैं। कुंए का मेढक मैं बन बैठा, है जग विस्तृत कब माना मैं। सावन का अंधा मैं बैठा था, दम्भ लहु अंदर पैठा था। रस्सी तो जलती रही मगर, तना हुआ तब भी ऐंठा था। खून पसीना एक हुआ कब, कर्म मेरा कहो नेक हुआ कब। बस बांछें खिलती रहतीं थीं, यत्न कहो तुम अनेक हुआ कब। चींटी था पर भी निकले थे, अहं-बर्फ़ कहाँ कब पिघले थे। खूंटे के बल जो कूद पड़ा, चहुये के दांत कहाँ कब निकले थे। छाती पे मूंग मैं दलता रहा, खोटा सिक्का पर चलता रहा। सच से आंखें चुराईं थीं, डूबते सूरज सा ढलता रहा। ताश के पत्ते बन बिखरा हूँ, कब आग चखी और कब निखरा हूँ। पल पल घुटनों पर आता रहा, सब जिसपे फूटे मैं वो ठीकरा हूँ। जब आंख खुली थी सवेर नहीं, घर था अंधेरा लगी कोई देर नहीं। अपना बोया था काट रहा, किस्मत का था कोई फेर नहीं। चिड़िया बस चुगती खेत रही, जीवन मुट्ठी से फिसलती रेत रही। आज किनारे बैठ हूँ रोता, कालिख बोलो कब श्वेत रही। ©रजनीश "स्वछंद" दुनिया सागर मैं बून्द रहा।। जो आज मैं आंखें मूंद रहा, दुनिया सागर मैं बून्द रहा। निजबल का जो अभिमान खड़ा, मूर्छित और वो कुंद रहा। अंधी नगरी
N S Yadav GoldMine
महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्कों, मणियों, अंगदों, के यूरों और हारों से समरांगण विभूषित दिखाई देता है। कहीं वीरों की भुजाओं से छोड़ी गयी शक्तियां पड़ी हैं, कहीं परिध, नाना प्रकार के तीखे खग और बाणसहित धनुष गिरे हुए हैं। कहीं झुंड के झुंड मांस भक्षी जीव-जन्तु आनन्द मग्न होकर एक साथ खड़े हैं, कहीं वे खेल रहे हैं और कहीं दूसरे-दूसरे जन्तु सोये पड़े हैं। 📚 वीर। प्रभो। इस प्रकार इन सबसे मरे हुए युद्धस्थल को देखो। जनार्दन। मैं तो इसे देखकर शोक से दग्ध हुई जाती हूं। मधुसूदन। इन पान्चाल और कौरव वीरों के मारे जाने से तो मेरे मन में यह धारणा हो रही है कि पांचो भूतों का ही विनाश हो गया । उन वीरों को खून से भीगे हुए गरूड़ और गीध इधर - उधर खींच रहे हैं। 📚 सहस्त्रों गीध उनके पैर पकड़ - पकड़ कर खा रहे हैं, इस युद्ध में जयद्रथ, कर्ण, द्रोणाचार्य, भीष्म और अभिमन्यु- जैसे वीरों का विनाश हो जायेगा, यह कौन सोच सकता था? जो अवध्य समझे जाते थे, वे भी मारे गये और अचेत एवं प्राणशून्य होकर यहां पड़े हैं। गीध, कंक, बटेर, बाज, कुत्ते और सियार उन्हें अपना आहार बना रहे हैं। 📚 दुर्योधन के अधीन रहकर अमर्ष के वशीभूत हो ये पुरुष सिंह वीरगण बुझी हुई आगे के समान शान्त हो गये हैं। इनकी ओर दृष्टिपात तो करो। जो लोग पहले कोमल बिछौनों पर सोया करते थे, वे सभी आज मरकर नंगी भूमि पर सो रहे हैं। 📚 जिन्हें सदा ही समय-समय पर स्तुति करने वाले बन्दीजन अपने वचनों द्वारा आनन्दित करते थे, वे ही अब सियारिनों की अमंगल सूचक भांति - भांति की बोलियां सुन रहे हैं। जो यशस्वी वीर पहले अपने अंगों में चन्दन और अगुरू चूर्ण से चर्चित हो सुखदायिनी शययाओं पर सोते थे, वे ही आज धूल में लोट रहे हैं। 📚 उनके आभूषणों को ये गीध, गीदड़ और भयानक गीदडियां बारबार चिल्लाती हुई इधर -उधर फेंकती हैं । ये सभी युद्धाभिमानी वीर जीवित पुरुषों की भांति इस समय भी तीखे बाण, पानीदार तलवार और चमकीली गदाऐं हाथों में लिये हुए हैं। 📚 सुन्दर रूप और कान्तिवाले, सांडों के समान हष्ट-पुष्ट तथा हरे रंग के हार पहने हुए बहुत से योद्धा यहा सोये पड़े हैं और मांसभक्षी जन्तु इन्हें उलट-पलट रहे हैं। परिध के समान मोटी बाहों वाले दूसरे शूरवीर प्रेयसी युवतियां की भांति गदाओं का आलिंगन करके सम्मुख सो रहे हैं। जनार्दन। बहुत से योद्धा चमकीले योद्धा चमकीले कवच और आयुध धारण किये हुए हैं, 📚 जिससे उन्हें जीवित समझकर मांसभक्षी जन्तु उन पर आक्रमण नहीं करते हैं। दूसरे महामस्वी वीरों को मांसाहारी जीव इधर-उधर खींच रहे हैं, जिससे सोने की बनी हुई उनकी विचित्र मालाएं सब ओर बिखर गयी हैं। यहां मारे गये यशस्वी वीरों के कण्ठ में पड़े हुए हीरों को ये सहत्रों भयानक गीद़ड़ खींचते और झटकते हैं। 📚 बृष्णिसिंह। प्रायः प्रत्येक रात्रि के पिछले पहर में सुशिक्षित बन्दीजन उत्तम स्तुतियों और उपचारों द्वारा जिन्हें आनन्दित करते थे, उन्हीं के पास आज ये दु:ख और शोक से अत्यन्त पीडि़त हुई सुन्दरी युवतियां करूण विलाप कर रही हैं। केशव। इन सुन्दरियों के सूखे हुए सुन्दर मुख लाल कमलों के समूह की भांति शोभा पा रहे हैं। ©N S Yadav GoldMine #RABINDRANATHTAGORE महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्को