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Santosh Khirwadkar
ये तो शतरंज की बाजी है बिछाई उसकी तू तो इस खेल में मुहरा सा नज़र आता है ~संतोष
Shravan Goud
विवेकवान समझ को संजोकर रखता है। जब समझदारी की बात उछाली जाती है फिर समझौते की बुनियाद बिछाई जाती है; #समझौता #समझदारी #काशतुमसमझपाते #yourquote #अधूरापन
kanta kumawat
कलम की सुवावणी बातां सगळा क मन म भावणी बातां। दिल को अहसास गहराई सूं जूङगो आख्यां नीन्द नही ले पाई। जो सो नहीं पाया सुकून सूं बाके लिए म्हारी कलम आज खुद की पलका बिछाई। iamkanuk.r.d 😘✍️ ©kanta kumawat #lonely कलम की सुवावणी बातां सगळा क मन म भावणी बातां। दिल को अहसास गहराई सूं जूङगो आख्यां नीन्द नही ले पाई। जो सो नहीं पाया सुकून सूं बाके
Nanki Patre
बावरी सी गुमसुम बैठी अनिमेष, जैसे शशि -चकोर रीत अपनाई हो। मनभावन मधुप है वो पथिक , किस सोच में अँखियन बिछाई हो। ©Nanki Patre बावरी सी गुमसुम बैठी अनिमेष, जैसे शशि -चकोर रीत अपनाई हो। मनभावन मधुप है वो पथिक , किस सोच में अँखियन बिछाई हो। #alone
Samir Samrat
Poet Kuldeep Singh Ruhela
Jai Shri Ram #बन गया है देखो मंदिर मेरे प्रभु श्री राम का कितने सालों में ये खुश खबर आई है स्वागत में प्रभु जी के हमने पलके बिछाई है शिया राम की जोड़ी फिर से अवध में आई है शिया राम की जोड़ी फिर से अवध में आई है ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #jaishriram #बन गया है देखो मंदिर मेरे प्रभु श्री राम का कितने सालों में ये खुश खबर आई है स्वागत में प्रभु जी के हमने पलके बिछाई है
Raahul Kant
तुमने आस तो लगाई होगी, राहों में पलकें भी बिछाई होगी। वक़्त लौट कर आएगा तुम्हारा, इस उम्मीद में आंखें भी सूजाई होगी।। - राहुल कांत तुमने आस तो लगाई होगी, राहों में पलकें भी बिछाई होगी। वक़्त लौट कर आएगा तुम्हारा, इस उम्मीद में आंखें भी सूजाई होगी।। - राहुल कांत #raahulkan
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त