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Raj Purohit ji Bateshwar Dham Bah (Agra)
Nisheeth pandey
पेड़ का जीवन ------------/ जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा- अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना। शायद पेड़ ने पत्तियों को पाठ पठाया, क्या खूब संकल्प पत्तियों ने उठाया। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। पेड़ और पत्तियों का जीवन अंतिम साँस तक संधर्ष से है भरा ग्रीष्म में तपती झुलसती है , अंगारों के सम जलती है। शुष्क हवा के थपेड़ों से, फिर पत्ता पत्ता दहलती है। नीले आकाश पर घनघोर बादल जब छाते हैं, पत्ते पत्ते तन मन को भीगोने से नहीं बचा पाते हैं। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। जीव जंतु मनुख तोड़ मेमोर जाते हैं, फिर भी नए कोपलों संग चलते जाते है। अवरोध बहुत आते हैं लेकिन, पर कभी वीर की भांति नहीं घबराते हैं। पेड़ रहता अडिग है अपने सपने के लिये चीख़ चीख़ कहता सपनों को साकार बनाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। संधर्ष दौर कहाँ कम होता जब आते भीषण झंझावात, तो कुछ पेड़ पत्ते फूल और फल गिर जाते हैं, नवीन सृजन को वो अपने, फिर बीज अंकुरित कर जाते हैं। ऐसा ही जीवनचक्र होता है, तूफ़ान तो आते जाते रहते हैं, नियति के तूफ़ानों से, अब जी भर के टकराने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। अंकुरित से पेड़ तक बनने का सफर सरल न होता , पथ में अनेक विघ्न आते है। जो बाधाओं से न विचलित होते, वही पेड़ फलदायी मंज़िल पाते है। जो मानव ज़ख्म से लहूलुहान हो कर भी उठ जाते है, वह मानव इतिहास रच जाते है। इतिहास के नए कोंपल पर, एक फलदाई साख बन जाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Pattiyan पेड़ का जीवन ------ जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी
Zara Sogra
Nisheeth pandey
जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना। शायद पेड़ ने पत्तियों को पाठ पठाया, क्या खूब संकल्प पत्तियों ने उठाया। पेड़ और पत्तियों का जीवन अंतिम साँस तक संधर्ष से है भरा ग्रीष्म में तपती झुलसती है , अंगारों के सम जलती है। शुष्क हवा के थपेड़ों से, फिर पत्ता पत्ता दहलती है। नीले आकाश पर घनघोर बादल जब छाते हैं, पत्ते पत्ते तन मन को भीगोने से नहीं बचा पाते हैं। जीव जंतु मनुख तोड़ मेमोर जाते हैं, फिर भी नए कोपलों संग चलते जाते है। अवरोध बहुत आते हैं लेकिन, पर कभी वीर की भांति नहीं घबराते हैं। पेड़ रहता अडिग है अपने सपने के लिये चीख़ चीख़ कहता सपनों को साकार बनाने दो। संधर्ष दौर कहाँ कम होता जब आते भीषण झंझावात, तो कुछ पेड़ पत्ते फूल और फल गिर जाते हैं, नवीन सृजन को वो अपने, फिर बीज अंकुरित कर जाते हैं। ऐसा ही जीवनचक्र होता है, तूफ़ान तो आते जाते रहते हैं, नियति के तूफ़ानों से, अब जी भर के टकराने दो। अंकुरित से पेड़ तक बनने का सफर सरल न होता , पथ में अनेक विघ्न आते है। जो बाधाओं से न विचलित होते, वही पेड़ फलदायी मंज़िल पाते है। जो मानव ज़ख्म से लहूलुहान हो कर भी उठ जाते है, वह मानव इतिहास रच जाते है। इतिहास के नए कोंपल पर, एक फलदाई साख बन जाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Sukha जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनन
#__PARMAR__PRAVIN_
खामोशी और दस्तक
पुरुष की आकाँक्षा काम की है । सुन्दर स्त्री की आकाँक्षा बड़े गहरे में अर्थ की है धन—पद की जरूरत है भोगने के लिए । बिना धन के भोगेंगे कैसे ? बिना धन के अच्छी स्त्री भी न पा सकेंगे । बिलकुल निर्धन हुए तो स्त्री भी न पा सकेंगे । स्त्रियाँ आमतौर से धन में उत्सुक होती हैं । यह हमने खयाल किया । धनी को सुन्दरतम स्त्री मिल जाती है । चाहे धनी सुन्दर न हो । ना भी हो धनी, तो भी युवा स्त्री मिल जाती है । ओनासिस को जैकी मिल जाती है । धन हो ! तो थोड़ा सोचने जैसा है कि स्त्री को धन में इतनी उत्सुकता क्या है ? स्त्री काम है । धन के बिना काम के खिलने की सुविधा नहीं । धन तो ऐसे ही है जैसे पौधे में पड़ी खाद है । बिना खाद के फूल न खिल सकेगा । इसलिए स्त्री की सहज आकाँक्षा धन की है । वह बलशाली आदमी को खोजती है । महत्वाकाँक्षी को खोजती है । धनी को खोजती है । पद वाले को खोजती है । स्त्री सीधे—सीधे चेहरे पर नहीं जाती । चेहरे—मोहरे से स्त्री बहुत हिसाब नहीं रखती । इसलिए कभी—कभी आश्चर्य होता है, सुन्दरतम स्त्री कुरूप आदमी को खोज लेती है । मगर उसकी जेबें भरी होंगी । वह बड़े पद पर होगा । राष्ट्रपति होगा । प्रधान मन्त्री होगा । सुन्दर स्त्री की आकाँक्षा बड़े गहरे में अर्थ की है । क्योंकि वह जानती है अगर अर्थ होगा, तो ही वह खिल पायेगी, तो ही उसका सौन्दर्य निखर पायेगा । धन सुविधा है । पुरुष की आकाँक्षा काम की है । पुरुष अर्थ है । इसे हम समझें । पुरुष महत्वाकाँक्षा है, वह अर्थ है । वह धन तो कमा सकता है । धन तो उसकी मुट्ठी की बात है । हाथ का मैल है । लेकिन सुन्दर स्त्री को कैसे कमायेगा ? सुन्दर स्त्री तो हो तो हो, न हो तो सौन्दर्य को पुरुष पैदा नहीं कर सकता । इसलिए उसकी नजर सौन्दर्य पर है । सुन्दर स्त्री हो, तो वह और तेजी से दौड़ कर कमायेगा । आचार्य रजनीश एस धम्मो सनन्तनो–भाग–6 फोटो ओल्ड वुमन ब्यूटीफुल से ली गई है ©खामोशी और दस्तक #Likho पुरुष की आकाँक्षा काम की है । सुन्दर स्त्री की आकाँक्षा बड़े गहरे में अर्थ की है धन—पद की जरूरत है भोगने के लिए । बिना धन के भोगेंगे