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Lalit Bhasod
एक पेड़ के नीचे एक भिखारी लेटा हुआ था कोढ़ होने के कारण उसके शरीर पर जगह जगह घाव बने हुए थे जिन पर बहुत सारी मक्खीयां भिनभिना रहीं थीं आने जाने वाले उससे बचकर ही निकल रहें थें उस पेड़ के नीचे उसके अलावा कोई और नहीं था की तभी एक कोमल हृदय का व्यक्ति वहां से गुजर रहा था पर जब उसने देखा की एक कोढ़ी पेड़ के नीचे लेटा हुआ है व उस पर बहुत सारी मक्खीयां बैठी हैं और बहुत सारी उस पर भिनभिना भी रहीं हैं दया भाव के चलतें उसने उस कोढ़ी पर बैठी व भिनभिना रही मक्खीयो को अपने परनें से उड़ा दिया और उस पर अपने परने से ही हवा करने लगा दयावश पर यह क्या उस कोढ़ी ने उठतें ही गुस्से से तमतमाते हुए पूछा की मेरे शरीर से मक्खीयां किसने उड़ाई यह कहतें हुए उसका पूरा शरीर बुरी तरहा से कांप रहा था व एक सास में ही ना जाने कितने अपशब्दों का इस्तेमाल कर रहा है वह राहगीर भी जिसने उसके शरीर पर से मक्खीयों को उडाया था हैरान परेशान था की यह कोढ़ी ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है...? पर कुछ सोचकर उसने बड़ी विन्रमता से कहा की भाई आप परेशान ना हो आपके ऊपर जो यह मक्खीयां बैठी थी उसे मैने उड़ाया है वह आपको परेशान कर रही थीं इतना सुनना था की कोढ़ी ने उस राहगीर को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया थप्पड़ की आवाज इतनी जोरदार थी की राहगीर के साथ अन्य वहा से गुजरने वालो को भी साफ साफ सुनाई दी राहगीर सदमे मे था की यह क्या हुआ ..? उस राहगीर के साथ साथ सभी हैरान परेशान हो गयें थें तभी एक सज्जन पुरुष ने आगें बढ़ कर उस कोढ़ी से पूछा जो अभी भी राहगीर को गंदी गंदी गालियां बक रहा था इतना ही बीच बीच में वह उसे मारने के लियें भी दौड़ रहा था पर राहगीर चुप था वह मन ही मन सोच रहा था की क्या यहीं है आज के जमाने में भलाई करने का सिला ...तुमने इसे थप्पड़ क्यों मारा इसने तो तुम्हारी मदद की थी तुम्हारे ऊपर जो मक्खीयां बैठी थी वह तुम्हें नोच रही थीं तुम्हें खा रहीं थीं इसने उसे उड़ा कर तुम पर उपकार किया हवा की तुम्हारे जख्मों पर ताकि तुम्हें कुछ राहत मिले पर तुमने तो उसे सी थप्पड़ मार दिया क्या यही इंसानियत हैं तुम्हारी.... इतना सुनना था की कोढ़ी अपने आपे से बाहर हो गया उसने चीखतें हुए कहा चुप हो जाओ सालों इसने मुझ पर कोई उपकार नहीं किया है उल्टा मेरा नुकसान ही किया है ...सभी भौचक्के रह गयें थें की वह कोढ़ी क्या कह रहा है हैरान परेशान हो गयें थें गुस्से से कोढ़ी को मारने के लिये आगे बढ़ते उस राहगीर ने कहा वह कैसे तब तक भीड़ में से कुछ लोगों ने उसे रोक लिया था ...कोढ़ी बोला साले यह जो मक्खीयां मेरे ऊपर बैठी हुई थी वह आज से नहीं अनेकों वर्षों से बैठी हुई थी और अब उनका पेट भर चुका था वह सिर्फ बैठी ही मेरे ऊपर मुझे खा या नोच नहीं रहीं थीं और तूने उनको उड़ा दिया अब जो दूसरी नई मक्खीयां आयेगीं वह भूखी होगीं जो मुझ पर बैठेगीं नहीं वरन मुझे नोचेगीं खायेगी मुझे और नोचेगीं और कितना नोचेगीं यह सोच सोच कर परेशान हो रहा हूँ और बुड़बुड़ाते हुए वह कोढ़ी वहा से चला गया किसी ने उसे रोकने की भी कोशिश नहीं की बस सबके के दिमाग में यहीं बात चल रहीं थी वह अब मुझे खायेगीं..  ©Lalit Bhasod अब यह मुझें खायेगीं #OneSeason
अब यह मुझें खायेगीं #OneSeason
read moremanoj kumar jha"Manu"
मोघमन्नं विन्दते अप्रचेता: सत्यं ब्रवीमि वध इत्स तस्य। नार्यमणं पुष्यति नो सखायं केवलाघो भवित केवलादी।। ऋग्वेद १०/११७/६ वह व्यक्ति पापी है, जो न तो देवों को भोजन देता है एवं न अपने मित्रों को। केवल अपना ही पेट भरता है। भोजन बांट कर खायें
भोजन बांट कर खायें
read moreKAMLESH KUMAR
दर्द-ए-दिल इश्क़ में, चोट खायें बैठें हैं.. आज भी उनकी याद में, हम पलकें बिछाये बैठें हैं.. 06.11.2021 ©KAMLESH KUMAR इश्क़ में चोट खायें बैठें हैं.. #safar
YashMehta
जब हम घर पहुँचे तो बीवी दरवाजे पर खड़ी थी समझ गए हम, अब मुसीबत आन पड़ी थी पर बीवी ने हमको दिया बड़ा प्यार अरे ये अपना ही घर हैं न यार सुबह जब उतरी भांग बीवी के व्यवहार से हम थे हैरान बीवी बोली आप कल देर से आये और मेरे लिए आई फोन लाये कल मुझ पर इतना प्यार कैसे आ गया मुझे लगा जैसे मेरा पति भांग खा गया हमको कुछ याद ना आता था कैसे हुआ ये सब समझ नहीं आता था फिर हम पहुँचे उस दुकान पर दुकानदार ने स्वागत किया पहचान कर हमने पूछा क्या कल हम आये थे अजी साहब, आप तो बहुत शरमाए थे अपनी गर्ल फ्रेंड के लिए अपने आई फोन लिया एकमुश्त अपने एक लाख रुपया कैश दिया फिर हमको समझ आया कि हमने खीचड़ा पकाया चलो बीवी ने आई फोन पाया लौट के बुद्धु घर को आया फिर कसम खाई अब भांग नहीं खायेंगे और खा भी ली तो क्रेडिट डेबिट कार्ड नहीं चलायेंगे ©YashMehta अब भांग नहीं खायेंगे-३ #BuildingSymmetry
अब भांग नहीं खायेंगे-३ #BuildingSymmetry
read moreYashMehta
अब तो हयो रब्बा हयो रब्बा चिल्लाने लगे हर जगह हमको भूत नजर आने लगे सड़के उल्टी हो गयी थी गाड़ियां पुल्टी हो गयी थी मोबाइल फोन हमने निकाला न जाने किसको कुत्ता कमीना बक डाला अबे यार मेरा क्या कसूर हैं तेरा कसूर कि तु हमारा ससुर हैं अपनी अग्नि मिसाइल आपने मुझ पर छोड़ दी मेरी अच्छी भली जिंदगी नर्क की तरफ मोड़ दी कभी तो समझो मुझे कितना दर्द हैं ससुर बोले, बेटा हम भी मुसीबत के मारे मर्द हैं बेटा तुम क्यों इतना घबराते हो क्या मेरी बेटी को शॉपिंग नहीं कराते हों हम तो बस चावल की फटी बोरी से बिखर गए क्रेडिट कार्ड हमारे सारे बीवी की भेंट चड़ गए वो बोले, बेटा अब घर को जाओ दाल रोटी खाओ, चुपचाप सो जाओ बीवी की गुलामी हर पति का धर्म हैं शॉपिंग के बिल भरना हम सबका कर्म हैं ©YashMehta अब भांग नहीं खायेंगे -२ #Phone
अब भांग नहीं खायेंगे -२ #Phone
read moreYashMehta
इक दिन हमको ऐसी खुमारी छायी जब हमने भांग की गोली खायी भूले खुद को और भूले अपनी लुगाई घर जब पहुँचे तो खूब हुई कुटाई यूँ तो हम बड़े भोले भाले हैं नई दिल्ली के रहने वाले हैं अपनी बीवी की पूजा करते हैं उसकी आवाज़ से भी डरते हैं थोड़ी सी बदमाशी फिर भी करते हैं कभी कभी बाहर की घाँस चरते हैं चरित्र हमारा थोड़ा सा ढीला हैं और अंदाज़ हल्का सा रसीला हैं उस दिन मौसम बड़ा रंगीन था दिल किसी की याद में गमगीन था हमने भांग की गोली मंगवाई ले भोले का नाम अंदर टपकाई दो घंटे हमको कुछ भी नहीं हुआ भाई फिर एकदम से भांग ने सर पर करी चढ़ाई कभी हँसते थे कभी घबराते थे फालतू में ही बोले चले जाते थे दिल की धड़कन सुरसा सी बढ़ी जाती थी सामने बीवी गदा लिए नजर आती थी काफी मजे भी आ रहे थे पैर से हम सर खुजा रहे थे मन हुआ अब दरियागंज जायेंगे सुलेमान की मच्छी खायेंगे फिर यूँ लगा जैसे हाथ गायब हो गए अजब से गजब हम अजयाब हो गए ©YashMehta अब भांग नहीं खायेंगे -१ #Phone
अब भांग नहीं खायेंगे -१ #Phone
read moreBabu Qureshi
हश्र मेरी शायरी का यूँ न कर, कि टूटकर बिखर जाऊं तूने भी कर दिया पहचानने से इन्कार मुझे अब और कोई नहीं मेरा बता दे किधर जाऊं शायर - बाबू कुरैशी #तनहाई खाये जाती है