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Dalip Kumar 'Deep'
Shayer tera ©Dalip Kumar Deep 😔🍁🍁🍂 खिड़कियों के तुम्हारी अब पर्दे नही हिलते🥀🥀
suniti mehta
जिंदगी के ज़ख्मों पर काफी मरहम लगे हैं। पर सम्मान के पर्दे पर कई खरोचें गड़े हैं। ©suniti mehta सम्मान के पर्दे
manoj kumar jha"Manu"
वो चुप है या कि बोल रहा है। मुझको सब पता चल रहा है।। पर्दे के पीछे का खेल उजागर होगा, धीरे धीरे सब बाहर निकल रहा है।। पर्दे के पीछे......
लेखक ओझा
पर्दा और परदे की पीछे एक पर्दा राज है, जीवन पर्दो का ही साज़ है शायद इन पर्दो में छिपा कोई हमराज है। ©लेखक ओझा पर्दे के पीछे पर्दा..
बदनाम
जब तुम अपनी मंजिल को पा लेना...जहा तुम्हे बहुत से चाहने वाले हो...तुम्हारे अपने हो...तब तुम मुझे छोड़ देना दुनिया की उसी भीड़ में जो सिर्फ तुम्हे देख सकती है...तुम्हें छू नहीं सकती...क्योंकि तुम मेरा एक सपना हो...और सपने कब किसके पूरे हुए है...तुम जिद न करना मैं तुम्हारे साथ हो भी जाऊ तो दाग बनकर रह जाऊँगा... मैं नही चाहता कायनात के दूसरे चाँद में कोई दाग लगे... अपने जीवन का एक असफल इंसान,एक सफल प्रेमी कैसे हो सकता है भला...मेरी यादें जब पुरानी हो जाये तो उनपर अपने नई खुशियों के पर्दे डाल देना... ©बदनाम खुशियों के पर्दे डाल देना...
बागी विनय
किसी के जिस्म को चिथड़ा तक नहीं हासिल किसी की खिड़कियों के परदे भी मख़मल के होते हैं, किसी की खिड़कियों के परदे भी मख़मल के होते हैं
ankahe_.alfazz
हवाओं ने खिड़कियों पे दी है दस्तक दोबारा, पर्दे अकड़ के बोले 'दास' तेरा महबूब आया है। - ओमकार भास्कर 'दास' हवाओं ने खिड़कियों पे दी है दस्तक दोबारा, पर्दे अकड़ के बोले 'दास' तेरा महबूब आया है। - ओमकार भास्कर 'दास' Nishant Kumar काफ़िर_कातिब
Manmohan Dheer
गहरे काले स्याह पर्दे सियासत के उड़ रहे हैं राज़ कैसे कैसे जम्हूरियत के भी उगल रहे हैं इल्ज़ामों की हकीकत से नावाकिफ अवाम है जो भी जो कुछ बोल रहा है मानते चल रहे हैं . पर्दे
Manmohan Dheer
ये परदे चिलमन या नक़ाब नही हुस्न के ये इक़ आबादी के मुंह पे भद्दा सवाल है सच स्याह कर देने की सियासत देखिये मर्दों की बस्ती में इसपे बहुत बवाल है . ये उन्हीं गुनहगारों का कमाल है पर्दे
Geeta Sharma pranay
पर्दें ======== जब से मेरी जिंदगी में आए हो तुम, ये जिंदगी ओर भी जवाँ-जवाँ हो गई है, सब मुझे देखकर पुछने लगे हैं. इसका राज़,,,, अब उन्हें क्या बताऊ,,,,, कि किसी की मुहब्बत हमें दिन-ब-दिन खुबसुरत ख़्वाब दिखाती रहती हैं,,,, और हर वक्त बस उसके ही ख्यालों में बैचेन करती रहती हैं,,,,, यहाँ तक कि वो अब तो मेरी आँखों में ही आकर बस गये हैं,, जो नजरों को भी किसी ओर से नज़रे नही मिलाने देते हैं,, बस! शर्मो-हय्या के पर्दों से मेरी आँखों में छिप जाते हैं,, और इस दिल को जवाँ करते रहते हैं,,,, गीता शर्मा "प्रणय' पर्दे,,,