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vishnu thore
कवडसे इच्छांचे जंतू जिवंत आहेत तोवर मोहाचा रोग लगडून असतो मनाच्या फांदीला आपण तोडू शकत नाही नात्यांचे करवंदी फास एका सुखासाठी फक्त टिकून असते आस गहिऱ्या श्वासांना हवी असते सहवासाची ऊब म्हणून आपण चोरू शकत नाही देहाच्या तिजोरीतले स्पर्शाचे देखणे ऐवज थोडे पाय मोकळे करत जा रात्रीच्या सारवलेल्या अंगणात चंद्राचे कवडसे तळपायांना बिलगून येतील बळेच ! -विष्णू ©vishnu thore कवडसे इच्छांचे जंतू जिवंत आहेत तोवर मोहाचा रोग लगडून असतो मनाच्या फांदीला आपण तोडू शकत नाही नात्यांचे करवंदी फास
Devanand Jadhav
°शरदाची पौर्णिमा° शरदाची पौर्णिमा, तेज रुपेरी सांडताहे नभातूनी भूवरी, दशदिशांना ओसांडूनी शरदाची पौर्णिमा ॥ १ ॥ मंद धुंद ही हवा, लेवूनी गंध गारवा तनु रोमांची बोचरा, फुलवित निलाजरा शरदाची पौर्णिमा ॥ २ ॥ ना धुक्याचे सावट, ना गर्द मेघ नभात ना ही ती ओलेती रात, टिपूर चांदणं पित शरदाची पौर्णिमा ॥ ३ ॥ तारकांची रांगोळी, शुभ्र निल नभांतरी दुर दुर क्षितिजावरी, खूणविताहे समीप शरदाची पौर्णिमा ॥ ४ ॥ रातराणी वल्लरी, ती निशब्द लाजरी डोल डोल डोलताहे, होऊनिया बावरी शरदाची पौर्णिमा ॥ ५ ॥ चंद्रही डोकावतो, स्मानी, सागरातूनी चिंब चिंब प्रतिबिंब, लहरी लहरीतूनी शरदाची पौर्णिमा ॥ ६ ॥ ✍🏻© •देवानंद जाधव• jdevad@gmail.com 9892800137 / 9594423428 ©Devanand Jadhav शरदाची पौर्णिमा म्हणजेच कोजागिरी पौर्णिमा. या रात्री चंद्राचे तेज इतर पौर्णिमेपेक्षा वेगळेच असते. ते तेज दशदिशांना पसरलेले दिसते. नुकतीच थंड
अशेष_शून्य
"हम और तुम" -Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में...) जब भी मैं तुम्हें यानी अपने अंतर्मन को लिखती हूं जो तुम्हीं हो !!....तो यकीन मानो मैं सिर्फ़ तुम्हें नहीं लिखती बल्कि ख़ुद का वो हिस्सा लि
अशेष_शून्य
कुछ इस तरह प्रकृति चुनती है संपूर्ण किरदारों को "जीवन अभिनय" के लिए और लिखती है उनके हिस्से का आधा अधूरा प्रेम जिससे जीवन "सृजन" की संभावना निरंतर इस ब्रह्मांड में सृजित होती रहे ।। -Anjali Rai __________°°°°°°°°°° (शेष अनुशीर्षक में) प्रेम देने की कला "सूर्य" से सीखी जानी चाहिए कैसे किसी रौद्र पुरूष का "अतः दहन" प्रेमी बन जाने पर विध्वंशक से प्राणदाई बन जाता है फ़िर स्वय
Divyanshu Pathak
'मैं धरा तुम धूप'-03 तुम धूप काहे कर्क रेखा चूमते हो! अक्ष पर रुकते मकर को भूलते हो। एक वक्त में एकसाथ सबके हो नहीं बंजारा बनके क्यों धरा पर घूमते हो! तुम धरा सी घूमती अपनी धुरी पर धूप सा मुझको बताकर झूमती हो मैं अड़िग स्थिर हमेशा ही रहा पर तुम मुझे लेकर ध्रुवों तक दौड़ती हो। मैं रहूँ सापेक्ष विषुवत वृत्त के ही क्यों प्रदीपन पट्ट से तुम जोड़ती हो? उत्तरी कभी दक्षिणी अयनांत पर तुम आधी रात को सूरज इसी से देखती हो। परिभ्रमण का चाब तेरा ही ग़ज़ब है। परिक्रमण से भाव ऋतु होती सजग है। उत्तरी गोलार्ध वासंती विषुभ है तो दक्षिणी गोलार्ध में होता शरद् है। मैं धरा तुम धूप'-03 तुम धूप काहे कर्क रेखा चूमते हो! अक्ष पर रुकते मकर को भूलते हो। एक वक्त में एकसाथ सबके हो नहीं बंजारा बनके क्यों धरा पर
AB
............. यह अपेक्षाएं सब उपेक्षाओं का कारण बनी हमेशा.,. और मुझे रहना था तटस्थ,. यह अल्प निर्वाण मेरे जीवन में खड़ी करता गया एक ऐसी दीवार जो
अशेष_शून्य
"पूर्णमासी ": हमारे "प्रेम " की......🍁 -Anjali Rai Read in caption.....🦋 आते हैं पुरुष अपना हृदय लेकर इक स्त्री से प्रेम करने ...; पर तुम मेरी ज़िन्दगी में प्रेम करने नहीं ख़ुद प्रेम बनकर आए ; और अपने हाथों में ली
अशेष_शून्य
मौन : संवाद (अनुशीर्षक में .....) कितना कुछ बदल रहा हम दोनों के मध्य तेजी से सच कहूं मुझे ख़ुद पता नहीं चलता कि उदयांचल से चलकर कब मेरा सूर्य ढलने को दूसरी छोर पर आ जाता अस
atrisheartfeelings
कुछ महत्वपूर्ण बातें .... Please read in caption.... बहुत मेहनत के बाद यह चिन्ह तैयार किया हैं अतः आप से निवेदन हैं कि आप इसे हर students से सहभागिता करें...*✍🏻✍🏻✍🏻 1) + = जोड़