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मेरे दिल में क्या है अगर तुम समझते तो रिश्ता हमारा भी कुछ और होता 122 122 122 122
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read moreAbeer Saifi
मुहौबत सज़ा है रिहाई नहीं है अगर है किसी ने निभाई नहीं है कहाँ से हो हासिल मज़ा-ए-मुहौबत मुहौबत में तेरी जुदाई नहीं है ज़हर है नशा है तबाही यही है मुहौबत मगर बेवफ़ाई नहीं है चुराया नहीं है सुकूं दिल से मेरे कि आँखों से नींदे चुराई नहीं है मुहौबत सभी के ज़बां पे लिखी है मुहौबत किसी को भी आई नहीं है सदा आशिक़ो को सताती है दुनिया यहाँ आशिक़ों की भलाई नहीं है बुरी आशिक़ी है ज़माना बुरा है मगर दिल्लगी में बुराई नहीं है कि 'सैफ़ी' अहद-ओ-वफ़ा की कहानी रक़म है जिगर पे भुलाई नहीं है 122 122 122 122 💔
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read moreZohaib Baig (Ambar Amrohvi)
परेशान एहले मुहब्बत को देखा, नज़र आये दिल भी बहुत ग़म के मारे, मुहब्बत की राहों से नज़रें बचा कर, मैं गुज़रा हमेशा किनारे किनारे.. रसीली निगाहें रंगीली अदाएं, दिल-ए-मुब्तिला को कहाँ तक बचायें, नसीम-ए-सहर ने इधर साज़ छेड़ा, उधर माह-ए-पैकर ने गेसू सँवारे.. ख़ुदा के लियें ज़िक़्र उसका ना छेड़ो, मुझे आज फिर याद आने लगा है, मुहब्बत से लबरेज़ रंगीन रातें, गुज़री हैं किस महजबीं के सहारे.. गुज़िश्ता ज़माने कि याद आ रही है, मिरे ग़म-ज़दा दिल को तड़पा रही है, छलक आये आंखों में अब अश्क़ बन कर, तुम्हारी मुहब्बत के रंगीं नज़ारे.. ये क्या बात है राज़दार-ए-मुहब्बत, किसे ये नसीम-ए-सहर छेड़ती है, ख़ुदा जाने “अम्बर” किसे झांकते है, ज़मी पर तेरी ओर से चाँद तारे..!! ©️ज़ोहेब। (अम्बर अमरोहवी) बहरे-मुतकारिब मुइज़ाफ़ी मुसम्मन सालिम 122 122 122 122 122 122 122 122
बहरे-मुतकारिब मुइज़ाफ़ी मुसम्मन सालिम 122 122 122 122 122 122 122 122
read moreAbeer Saifi
मुहौबत सज़ा है रिहाई नहीं है अगर है किसी ने निभाई नहीं है कहाँ से हो हासिल मज़ा-ए-मुहौबत मुहौबत में तेरी जुदाई नहीं है ज़हर है नशा है तबाही यही है मुहौबत मगर बेवफ़ाई नहीं है चुराया नहीं है सुकूं दिल से मेरे कि आँखों से नींदे चुराई नहीं है मुहौबत सभी के ज़बां पे लिखी है मुहौबत किसी को भी आई नहीं है सदा आशिक़ो को सताती है दुनिया यहाँ आशिक़ों की भलाई नहीं है बुरी आशिक़ी है ज़माना बुरा है मगर दिल्लगी में बुराई नहीं है कि 'सैफ़ी' अहद-ओ-वफ़ा की कहानी रक़म है जिगर पे भुलाई नहीं है 122 122 122 122 💔
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read moreपरिंदा
मिला रूह को रूह से तू कि हम मिट सकें इस जहां से ©Jitendra Verma #Travel 122 122 122
परिंदा
मैं जीवन में सब हार बैठा खुशी जो थी वो वार बैठा ©Jitendra Verma "परिंदा" 122 122 122 #udas
Md Tasleem Khan सरवर
(जब कभी फुर्सत मिले) घर की ज़िम्मेदारी से। किचन की कारोबारी से । जो भी काम ज़रूरी हो । निपटा के बारी बारी से । जब कभी फुर्सत मिले। हर आरज़ू ख्वाहिशात से। जिस्मानी नफसियात से । हमराह की हर बात से । अजीज़ों की मुलाक़ात से। जब कभी फुर्सत मिले। तुमको उसके प्यार से । उस प्यार के इज़हार से । लिबासों के अंबार से ज़ेवर ओ सिंगार से जब कभी फुर्सत मिले। ज़िन्दगी के सफ़र में। रात में या सहर में। दिन के किसी पहर में। जब कभी फुर्सत मिले। रंज ओ ग़म के मलाल में। किसी ख्वाब में ख्याल में। जवाब हो या सवाल में । एक माह में एक साल में। जब कभी फुर्सत मिले । हाय ! ये अफसोस कि उनको अब फुर्सत मिले। ये सच नही ये झूट है उनको अब मुहब्बत नहीं। तसलीम सरवर ©Md Tasleem Khan सरवर #nojoto #hindi #article # #Dark
ÅJÎT KÙMÅR
अगर जरूरत पूरा करना मोहब्बत होती तो कौवे और भैंस के बीच गजब की मोहब्बत होती. 79
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read morePrerit Modi सफ़र
शे'र- हमेशा जहां मिट्टी रौंदी गई है। वहीं आज मिट्टी इमारत हुई है।। 122 122 122 122 #shayari #yqbaba #yqdidi #gazal #quote #bestyqhindiquotes
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