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Author Rupesh Singh
Ravendra
Niwas
तालिबान और अफगानिस्तान पर मेरे विचार तालिबान और अफगानिस्तान ऐसा नहीं की तालिबान पहली बार सत्ता में आया हो या अचानक सत्ता पक्ष पर हावी हो गया हो।इसकी जड़ें बेहद गहरी हैं,अस्सी के
Poonam Suyal
खेल वक्त का (अनुशीर्षक में पढ़ें) खेल वक्त का स्वप्न के शव पर खड़े हो मांग भरती हैं प्रथाएं कंगनों से तोड़ हीरा खा रहीं कितनी व्यथाएं दिल हैं बेरहमी से तोड़े गए
Poetry with Avdhesh Kanojia
गुणवान वही कहलाता है - - - - - - - - - - - परपीड़ा से द्रवित, व्यथित होने वाला मानव असली कहाता है। जो सबको हो प्रिय, सबका दिल जीते गुणवान वही कहलाता है।। देश पर सर्वस्व समर्पण, को रहे तैयार जो हिंदुस्तानी वही कहाता है। कल्याण समाज का, खूब करे जो प्रेम की धार बहाता है। गुणवान वही कहलाता है।। एकता के सूत्र में, पिरोए सबको जो सबको गले लगता है। दुर्भाग्यपूर्ण प्रथाओं को,भेदभाव की लताओं को हो निर्भीक हटाता है। गुणवान वही कहलाता है।। नारी का सम्मान करे, आदर करे बड़ों का बातें जो सत्य बताता है। मिलता है जिसे, प्रेम हर एक का धनवान वही कहलाता है। गुणवान वही कहलाता है।। साहित्य संगीत कला, से जिसका जुड़ाव प्रतिभाशाली वो कहाता है। चारों दिशाओं में, विश्व भर की हवाओं में भारत का ध्वज लहराता है। गुणवान वही कहलाता है।। परपीड़ा से द्रवित, व्यथित होने वाला मानव असली कहाता है। जो सबको हो प्रिय, सबका दिल जीते गुणवान वही कहलाता है।। ✍️अवधेश कनौजिया© #humanity #human #मानवता #मानव #गुण #behaviour #duty गुणवान वही कहलाता है - - - - - - - - - - - परपीड़ा से द्रवित, व्यथित होने व
AK__Alfaaz..
रात, बिछौने पर, बिछायी गयीं, उसकी चुप्पियां, सिलवटों की लहरों मे, डूबकर कराह रही थीं, और..नैनों की कोरों से, बहे उसके दो मोती, तकिए के गिलाफ पर पड़े, अपने घर का, पता पूछ रहे थें उससे, उसकी आँखों पर सजी, काजल की काली सरिता, पलकों के बंध तोड़, उम्मीद की बहती, बाढ़ मे बहकर, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #सावन_की_साँझ रात, बिछौने पर, बिछायी गयीं, उसकी चुप्पियां,
AK__Alfaaz..
काशी की गलियों से हो, मणिकर्णिका पहुंची, उसकी निःष्प्राण देह, जलती चिता की, चिताग्नियों के मध्य, उसे स्मरण कराती है, सप्तपदी की, पावन वेदिका, और..उसके, चारों ओर घूमकर, लिए सातों वचन, व..समर्पण की गांठों मे, बँधा उसका जीवन, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #मन_का_मसान काशी की गलियों से हो, मणिकर्णिका पहुंची, उसकी निःष्प्राण देह, जलती चिता की,
AK__Alfaaz..
कल रात में, उससे पहले की अमावस को, दो रातों पहले, आये चंदा की चाँदनी में, और..हफ्ते भर पूर्व, आये रात के तीसरे पहर में, सपनों का अर्थ ढूँढ़ती वो, व..मस्तिष्क के प्रश्नपत्र में, हर बार आते, प्रश्न बनकर, उसके हृदय की उत्तर पुस्तिका मे, उत्तर ढूँढ़ती श्वांसें उसकी, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #दुर्गा_का_देश कल रात में, उससे पहले की अमावस को, दो रातों पहले, आये चंदा की चाँदनी में,
AK__Alfaaz..
जेठ की, तपती भूमि पर, आषाढ़ मे गिरी, उसके नैनों से, विश्वास की बूंद, भाप बनकर उड़ गई, पीड़ाओं की चलती लू मे, उन बिखरे दिनों की, इक टूटी साँझ को, उसकी हथेलियों पर, इक तिरछी लकीर उभर आयी, आशाओं की, जिसे..काटकर आगे बढ़ी थी, उसके हिस्से की, समर्पण की लकीर, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #अहिल्या जेठ की, तपती भूमि पर, आषाढ़ मे गिरी, उसके नैनों से,
AK__Alfaaz..
सोलह सोमवार की, इक साँझ को, दिल की, दहलीज पर अपनी, बैठी वो, गिन रही थी, अँगुलियों के पोरों पर, अपने सत्रहवें सावन मे, बरसी बारिश की उन बूँदों को, जो मन के अहाते में, सोते समय, गिरी थीं, इच्छाओं की टूटी खपरैल से, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #अपराजिता सोलह सोमवार की, इक साँझ को, दिल की, दहलीज पर अपनी,