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Gaurav Singh
कोई पहुँचा दे मेरा पैगाम उन तक कि वो अब जल्दी आ भी जाये, न जाने कबसे दिल्ली उदास बैठी है उनके इन्तेजार में। Gaurav Singh कब से दिल्ली उदास बैठी है कब से दिल्ली उदास बैठी है #GauravKaGyan #dilli #Delhi #
कब से दिल्ली उदास बैठी है कब से दिल्ली उदास बैठी है #GauravKaGyan #dilli #Delhi #
read moreRakesh Kumar Dogra
वो जो पुराने लोग थे न उनकी कोई न कोई निशानियां अब भी बाकी है एक हम हैं जंहा रहते थे वो बस्तियां तक बदल* गई। *मिन्टो रोड, गोल मार्केट, सरोजनी नगर ©Rakesh Kumar Dogra नई दिल्ली फिर से बदल रही है पुरानी दिल्ली लगभग पुरानी ही है #Walk
NEERAJ BAKAWLE
चाहा तो हमने भी इसी नज़र से उन्हे, हमारी नज़र भी सही थी, पर शायद उनकी नज़रो मे किसी और की नज़र थी । इंदौर से दिल्ली तक ।
इंदौर से दिल्ली तक । #अनुभव
read moreNEERAJ BAKAWLE
Alone गम तो उन्हे भी हुआ था दोस्ती तोडते वक्त पर बात इतनी सी थी कि , उस वक्त उनके साथ गम साझा करने को कोई मौजुद था, और हम अकेले थे । नीरज इंदौर से दिल्ली तक ...
इंदौर से दिल्ली तक ... #बात
read moreDHIRAJ PRIT
धर्म की आड़ में निर्दोष हिंदू मुसलमान जल रहा है, नफरत की आग में हर एक इंसान जल रहा है, हम थे भाई भाई गंगा जमुना की तहजीब वाली पहचान जल रहा है कहां उलझ गए रे मेरे दोस्त आकर देख पूरा हिंदुस्तान जल रहा है धीरज कुमार धीरू दिल में दिल्ली है,,,,,
दिल में दिल्ली है,,,,,
read moreBANDHETIYA OFFICIAL
White एक कहावत सुनी पुरानी, दिल्ली दूर है,करो यकीं, दिल्ली दूर नहीं है,अब तो - सिकुड़ा दी है जैसे जमीं, और जमीर गिरा दिया है, तौबा बुलंद आसमां, क्या दिल्ली वालों, गद्दी वालों से करना बदी बयां? ©BANDHETIYA OFFICIAL #दिल्ली दूर नहीं है
Chintoo Choubey
कुछ ऐसा होगा ये मालूम न था, ये शांति यूँ मिलेगी मालूम न था, ये चमचमाती दिल्ली को, ऐसा भी देखूंगा ये मालूम न था, दिल्ली के दिल को यूँ भी कभी देखूँगा, ये भी मालूम न था दिल्ली को ग्रहण यूँ भी लगेगा, मालूम न था, ऐ मेरी दिल्ली दुनिया की, तू जल्द लौट कर दिखा, ताकि मालूम हो सब को, ये है दिल्ली मेरी जान........2 मेरी दिल्ली खामोश है
मेरी दिल्ली खामोश है
read moreरौशन कुमार प्रिय
दंगाइयों को गोली मारो सत्ता ने हुक्म सुनाया है , पर जो दंगे की भेंट चढ़े किसी ने मौत की वजह बताया है? चंद रुपयों के मुआवजे से बस खर्चा- पानी चल सकता है पर जिस अंधे की लाठी टूटी वो कैसे चल सकता है बाप बिना वो रतन लाल का बेटा कैसे पल सकता है , अंकित बिन उसकी पत्नी का करवा चौथ कैसे मन सकता है कितनी मां ने खोए बेटे पर ये कैसा बलिदान है पत्रकारों ने खबर चलाई दिल्ली लहूलुहान है मजहवी उन्माद नहीं ये लड़ने वाला हैवान था इंसानियत का खून हुआ, मरने वाला इंसान था इतना सब होने के बाद लाशों को रोने के बाद अब दंगे की जांच होगी राज पर्दाफाश होगी सिसकियों को सुनने वाले हैं फिर भी होठ तो खामोश होगी और , बच जाएंगे गुनहगार ठीक जैसे, अब तक बचते आए हैं जो हैं बेबस , निर्दोष यहां फिर मरेंगे , जैसे अब तक मरते आए हैं #कविता:- दिल्ली लहूलुहान है
कविता:- दिल्ली लहूलुहान है
read moreKirti Goel
कहीं आज़ादी के नारे कहीं नफरत के अंगारे संप्रयादिक्ता के बीच मेरी दिल्ली जल रही है ।। फ़्री बिजली और पानी के चक्कर में मुफ्त में ज़ाने जा रही है हिन्दू मुस्लिम के चक्कर में मेरी दिल्ली जल रही है ।। कभी पत्थर कभी तेज़ाब जलते घर जलती दुकान जनता की रक्षा करते करते जाने कितने रतनलाल और अंकित मर मिटे है !! जामिया से शुरू हुआ जो दंगल शाहीन बाग़ में बड़ा हुआ जाफराबाद पहुंचते पहुंचते जाने कितनी ज़ाने लील गया । जिन सरदारों ने शाहीन बाग़ में लंगर खिलाया भूखों को उन्हीं के खून के प्यासो ने जलाकर टायर फैक्ट्री कैसा कर्ज चुकाया तुम खुद देखो। स्कूल हुए बंद, परीक्षाएं भी हो गई रद्द जलते पेट्रोल पंप के बीच दिल्ली कैसे जल रही है गन्दी पॉलिटिक्स के बीच दिल्ली देखो जल रही है। ये कोई नई बात नहीं है सियासत बरसो से ऐसी ही है पर कब तक मासूम चड़ेंगे बली बात बस इतनी सी है बीजेपी, कांग्रेस, आप के चक्कर में दिल्ली देखो जल पड़ी है!! जल रही है दिल्ली !!
जल रही है दिल्ली !! #poem
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