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S ANSHUL'यायावर'
घात प्रतिघात, सृजन नाश। प्रकृति के है ये सिद्धांत अविनाश। काल चक्र, का फेरा गहरा, लीलता ये जीवन का पहरा। मनुष्य बंधा इस दुष्चक्र में, पिसता जैसे कोल्हू का बैला। फिर भी नहीं टूट ती उसकी, सुनहरी स्वप्न बेला। नाचता हैं वो, बनके कठपुतला। जीवन उसका मिट्टी का ढेला। ©S ANSHUL'यायावर' ढेला
Kulbhushan Arora
जो खोया वो मेरा नहीं था जो पाया वो भी मेरा नहीं है इदम न मम इदम न मम क्या तेरा है क्या मेरा है एक फूंक का बस ढेला है माटी काया राख की होगी चार दिनों का बस खेला है -मीनू
अबोध_मन//फरीदा
एक बेला खिला अकेला, श्वेत वर्ण अनुरागी काया, महका ख़ुद, आँगन महकाया। निर्झर ख्यालों की झील में उतराता सा आस का ढेला। भोर संग बेला मुसकाया। ना चित न पट चैन, उद्विग्न मन ये कैसा झमेला। ख़ुद सीखा मुझे भी सिखाया। हाँ.. सिखाता है ये बेला खिलना तब भी तुम जब हो मन अकेला जैसे ‘बेला’...’अलबेला’। .. ©अबोध_मन//फरीदा एक बेला खिला अकेला, श्वेत वर्ण अनुरागी काया, महका ख़ुद, आँगन महकाया। निर्झर ख्यालों
नरेश होशियारपुरी
सावन का इतराना जायज़ है। ये बारिश लाये ना लाये लेकिन साथ अपने बारिश की उम्मीद तो लाता है।। ये तो सच बात है , बिना बरसात के सावन ..... सावन नहीं लगता । बिना बरसात के सावन.... मात्र एक महीना सा जान पड़ता है , बल्कि मौसम नहीं....। ऐस
Adbhut Alfaz
ज़िन्दगी ने बहुत ज़ख्म हमको दिए, सबने छूकर उन्हें फिर हरा कर दिया.. एक मिट्टी का ढेला था जीवन मेरा, तुमने छूकर के सोना खरा कर दिया.. हमने चाहा ही क्या था तुम्हारे सिवा, तुमको पाने के सारे जतन भी किए.. तुमको कविता बनाकर भी गाया बहुत, रोज ना जाने कितने सृजन भी किए.. दर्द को तो ज़रा दर्द भी ना हुआ, तुमने छूकर उसे मसखरा कर दिया.. ज़िन्दगी ने बहुत ज़ख्म हमको दिए... साथ रहना ना रहना अलग बात है, एक दूजे के ही वास्ते हम बने.. एक होकर भी हम एक हो ना सके, एक दूजे के बस रास्ते हम बने.. राह कांँटो भरी थी अकेले थे जब, तुमने चलकर गुलों से भरा कर दिया.. ज़िन्दगी ने बहुत ज़ख्म हमको दिए... हमने चाहा तुम्हे आईने की तरह, इक तुम्हारा ही हम सिर्फ साया बने.. तुमने ठुकरा दिया तोड़कर यूंँ हमें, एक झटके में हम फिर पराया बने.. साथ थे तो मुकम्मल थे हम हर घड़ी, तुमने फिर छोड़कर अधमरा कर दिया.. ज़िन्दगी ने बहुत ज़ख़्म हमको... तुम हमे ना मिले इसका कुछ गम नहीं, हमने तुमको बनाया है धड़कन प्रिये.. दूर जाओगे फिर पास आओगे तुम, सह ना पाओगे विरह की तड़पन प्रिये.. जब मिले राह में अपना मुंँह फेर कर , तुमने सारा मजा किरकिरा कर दिया.. ज़िन्दगी ने बहुत ज़ख़्म हमको दिए सबने छूकर उन्हें फिर हरा कर दिया.. एक मिट्टी का ढेला था जीवन मेरा तुमने छूकर के सोना खरा कर दिया.. © चीनू शर्मा 'अद्भुत'✍️ #विश्व_कविता_दिवस ज़िन्दगी ने बहुत ज़ख्म हमको दिए, सबने छूकर उन्हें फिर हरा कर दिया.. एक मिट्टी का ढेला था जीवन मेरा, तुमने छूकर के सोना खरा
Shilpi Signodia
जी ले, जी ले, तू जी ले, जी ले बंदे कब तक यूँ मरता रहेगा, ख्वाबों से यूँ डरता रहेगा । जी ले, जी ले, तू जी ले, जी ले बंदे जी ले, जी ले, तू जी ले, जी ले बंदे कब तक यूँ मरता रहेगा, ख्वाबों से यूँ डरता रहेगा । जी ले, जी ले, तू जी ले, जी ले बंदे बंद आंखो से तार
pri
क्या लेके आया बन्दे क्या लेके जायेगा, दो दिन की ज़िन्दगी है दो दिन का मेला... ( Full caption me pde..) क्या लेके आया बन्दे, क्या लेके जायेगा, दो दिन की जिन्दगी है, दो दिन का मेला॥ ईस जगत सराऐ में, मुसाफीर रहना दो दिन का, क्यों विर्था करे गुमा
mummy_s_prince
क्या होता हैं काम और कैसा होता हैं ये काम कब होता हैं काम, अरे जरा कोई इनसे पूछो जो हमारी गंद को अपने हाथों में उठाते हैं। हम तो बस अपने शरीर और घर को साफ़ करने को ही मानते हैं काम, पर इन लोगों को काम के नाम पर भी सिर्फ गालियां ही मिलती हैं। To all working people on this earth, जो लोग कोई ना कोई मज़बूरी या फिर किसीके दबाव में आकर काम करता हैं यह उनके लिए समर्पित हैं, वैसे तो मैं
Priya Kumari Niharika
बद्री पांडे ने राजू चमार से दोस्ती करनी चाही तो राजू ने कहा - हम तुम कितने भिन्न है प्यारे, अलग अलग घर द्वार रे हम दोनों के अलग ही बबुआ, धर्म जात परिवार रे हम रहते झुग्गी बस्ती में, तुम्हरा है दरबार रे तुम पढ़ते कालेज में बबुआ, हम तो भए गवार रे हम तो हंटर खाते प्यारे, तुम्हरा हों सत्कार रे तुम्हरे घर तो भये उजाले, हमरा घर अंधकार रे हम तो पाथर जइसन प्यारे, तुम तो हों सुकुमार रे हम तो खाये रूखी सूखी, तुम छप्पन प्रकार रे तुम ठहरे बाभन के बेटे, हम तो भये चमार रे तुम हों प्यारे प्रेम पिता का, हम तो है धिक्कार रे हम तो साहब दास तुम्हारे, दो आदेश हजार रे पर विनती तुम सुन लो प्यारे, करो न ये उद्धार रे बोझ तले तेरे दब जाएंगे,होके हम लाचार रे देने को इक ढेला न है, बदले में उपहार रे हमरे तुम क्या मित्र बनोगे, हम तो है बेकार रे हम माटी तुम कुंदन प्यारे,करो न तुम उपकार रे तब बद्री पांडे ने क्या कहा सुनियेगा - तुम जो मेरे मित्र बने तो,अंतर ये मिट जाएगा अमर दोस्ती रहे हमारी, गीत जहाँ ये जाएगा फर्क करेगा जो दोनों में, राम कसम पीट जायेगा संग तेरे सूखी रोटी, बाभन का बेटा खायेगा मित्र नहीं घबराना तुम हम तुमको ना ठुकराएंगे स्वार्थ नहीं ये प्रेम है मेरा तुमको गले लगाएंगे मानवता सीखलाने प्यारे, जगत से हम टकराएंगे भेदभाव को इस माटी से, मिलकर हम मिटाएंगे भेदभाव को इस माटी से, मिलकर हम मिटाएंगे ©Priya Kumari Niharika बद्री पांडे ने राजू चमार से दोस्ती करनी चाही तो राजू ने कहा - हम तुम कितने भिन्न है प्यारे, अलग अलग घर द्वार रे हम दोनों के अलग ही बबुआ, धर