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Chaitali Yengade
गुलाब अर्पितो बळीराजा तुमच्या चरणी तुम्हीच खरे आदरणीय मालधणी साथ तुमची लाभली आम्हा जणू निळ्याशार आकाशी सप्तरंगी इंद्रधनू.... - Chaitali Yengade _hrudaysparsh_ #आधारस्तंभ#शेतकऱ्यांची शान#बळीराजा#
Swapnil Parab
PS T
नाम अन्नदाता सब कुछ फोकट में पाता ! खाद, बीज, बीमा, कर्ज, ब्याज,कर्जमाफी सब कुछ फ्री में पाता है और अपनी फसल का दादागीरी से MSP पाता है और फिर भी अन्नदाता कहलाता है, वाह #yqdid
yogesh atmaram ambawale
वैर ना त्याचे कुणाशी,नाते फक्त मातीशी. कायदे निघतात अशी,काहीच नाही राहत हाताशी, खेळी होते राजकारण्यांची,हाल मात्र शेतकऱ्यांची. निसर्ग ही मारतो कधी,कधी मारतो अंगावरील कर्ज, स्वतःच्या मेहनतीचे चीज व्हावे इतकीच त्याची विनवणी वजा अर्ज. हक्कासाठी दिल्लीच्या वेशीवर माझा शेतकरी बसलाय उपाशी, पूर्ण व्हाव्या त्यांच्या मागण्या प्रार्थना हीच माझी देवाशी. सुप्रभात लेखक मित्र आणि मैत्रिणानों कसे आहात? दिल्लीच्या वेशीवरी माझा शेतकरी बसलाय उपाशी..... #माझाशेतकरी हा विषय Snehal Rupnawar Patil या
yogesh atmaram ambawale
अरे संसार संसार, प्रपंचात तुझ्या सुख कमी दुःख फार. जगता हे जीवन कुण्या एकास होऊ नये त्रास फार, म्हणुनी ह्या संसारात दोघांनीही एकमेकास लावावा हातभार. दिवसभर राबतो,करतो सर्वांची चाकरी, लेकरांच्या पोटासाठी मिळण्या भाकरी. सतावते चिंता,मनी नुसतेच भास, लेकरांचे भविष्य व्हावे उज्वल ही एकच आस. सुप्रभात सुप्रभात माझ्या मित्र आणि मैत्रिणीनों आज प्रसिद्ध कवयित्री बहिणाबाई चौधरी यांचा जन्मदिवस आहे. त्यानिमित्य त्यांच्याच कवितेचा एक वि
sandy
मत देण्यापूर्वी ...? काही प्रश्न स्वतःला विचारा...? नोकरी टिकविण्याची खात्री वाटते का ?पगारवाढ होते का? नोटाबंदी आणि जीएसटी नंतर तुमचा व्यवस
रजनीश "स्वच्छंद"
मैं गेंहूँ की बाली हूँ।। मैं गेंहूँ की बाली हूँ, हर खेतिहर की हरियाली हूँ। तेरी भूख मिटाने को, रोटी भरी मैं थाली हूँ। आज हरी हूँ, पर याद है मुझको, मुझको बोने से पहले, वो किसान क्यूँ रोया था। हल से हुआ श्रृंगार धरती का, पर पानी नहीं था खेतों में, कैसे उसने मुझको बोया था। गर्मी में हल पे हाथ रखे, दो बैलों के संग, धरती की मांग सजाया था। पतली उभरती क्यारियों में, डाल पसीना अपना, उसने मुझे उपजाया था। किसने उसकी बात सुनी, अर्धनग्न वो रहा मगर, कब हिम्मत उसने हारी थी। लगन लिए, निःस्वार्थ भाव, झुलसाती गर्म हवाओं में, लथपथ रोएं की क्यारी थी। साल दर साल रहे बीतते, सत्ता की सीढ़ी बन, इसने सबको सत्तासीन किया। नाम रहा नारों में इनका, इश्तेहार और कागज़ पर, सबने इनको दीनहीन किया। मेरे पालन पोषण को भी, खाद उर्वरक, कहाँ कब इसे मिले। सब्सिडी का नाम बड़ा था, इसने भी सुना, बस कागज़ पर इसे मिले। मैं बड़ी हुई, गदरायी थी, हुई कटाई, मंडी पहुंची बन्द बोरे में। दाम गिरा था, मोल नही था, बांध रहा, पसीना वो पाजामे के डोरे में। आंख का आंसू, माथे का पसीना, अद्भुत संगम, किससे कहता, क्या क्या कहता। उसकी मेहनत, बेमोल पड़ी, हर कोई, उसपे बन एक गिद्ध झपटता। लिया कर्ज़ था साहूकार से, मूल तो छोड़ो, फसल ब्याज भी दे न पायी। कर्जमाफी का शोर बड़ा था, पर सरकार, असल आज भी दे न पायी। हारा, सबसे हार गया वो, क्या करता, सब होकर भी नँगा पड़ा था। राहें बदलीं, किसी ओर चला, पेड़ में गमछा, गमछे में किसान टंगा पड़ा था। मैं एक गेंहूँ की बाली, क्या करती, मैंने पालनहार खोया था। तुम कहते इंसां ख़ुद को, तुम ही बोलो, क्या तेरा दिल ना रोया था। ©रजनीश "स्वछंद" मैं गेंहूँ की बाली हूँ।। मैं गेंहूँ की बाली हूँ, हर खेतिहर की हरियाली हूँ। तेरी भूख मिटाने को, रोटी भरी मैं थाली हूँ। आज हरी हूँ, पर याद ह
Naresh Chandra
कृपया अनुशीर्षक मे जरूर पढ़े एक टैक्स पेयर का दर्द 🙏धन्यवाद🙏 ©Naresh Chandra न्यायपालिका Supreme Court से विनम्र निवेदन *देशहित के लिए हर एक को भेजें* *तुम हमें वोट दो; हम तुम्हें-* ... लैपटॉप देंगे .. ... स्कूटी दे