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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ #शायरी

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ग़ज़ल :- 
दो कदम चलकर जताना आ गया ।
आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१

होश तो आया नहीं उनको मगर ।
राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२

पायलें तुमको बजाना आ गया ।
नींद प्रियतम की उड़ाना आ गया ।।३

छुप गये डरकर वहीं हो तुम सदा ।
सामने जब भी सयाना आ गया ।।४

जुल्फ़ अपनी बाँधकर देखो कभी ।
अब इन्हें खुलकर उलझना आ गया ।।५

हर अदा तेरी मुझे कातिल लगी ।
किस तरह तुझको सताना आ गया ।।६

भटकना हमको नही है राह में ।
बाँह का तेरी ठिकाना आ गया ।।७

नाम प्रियतम का लिखो तुम हाथ में ।
अब हिना तुमको रचाना आ गया ।।८

एक ख्वाबों की यहाँ दुनिया बना ।
प्रीत का फिर हर तराना आ गया ।।९

आपकी हर बात में जादू दिखा ।
छोड़कर दुनिया दिवाना आ गया ।।१०

नील अंबर कह रहा हमसे प्रखर ।
लौटकर तेरा खिलौना आ गया ।।११
०१/०९/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- 

दो कदम चलकर जताना आ गया ।
आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१

होश तो आया नहीं उनको मगर ।
राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ #शायरी

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ग़ज़ल :- 
दो कदम चलकर जताना आ गया ।
आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१

होश तो आया नहीं उनको मगर ।
राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२

पायलें तुमको बजाना आ गया ।
नींद प्रियतम की उड़ाना आ गया ।।३

छुप गये डरकर वहीं हो तुम सदा ।
सामने जब भी सयाना आ गया ।।४

जुल्फ़ अपनी बाँधकर देखो कभी ।
अब इन्हें खुलकर उलझना आ गया ।।५

हर अदा तेरी मुझे कातिल लगी ।
किस तरह तुझको सताना आ गया ।।६

भटकना हमको नही है राह में ।
बाँह का तेरी ठिकाना आ गया ।।७

नाम प्रियतम का लिखो तुम हाथ में ।
अब हिना तुमको रचाना आ गया ।।८

एक ख्वाबों की यहाँ दुनिया बना ।
प्रीत का फिर हर तराना आ गया ।।९

आपकी हर बात में जादू दिखा ।
छोड़कर दुनिया दिवाना आ गया ।।१०

नील अंबर कह रहा हमसे प्रखर ।
लौटकर तेरा खिलौना आ गया ।।११
०१/०९/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- 

दो कदम चलकर जताना आ गया ।
आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१

होश तो आया नहीं उनको मगर ।
राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२

کوثر رضا برکاتی

सरकार गुनाहों से है बीमार मेरा दिल नया कलाम कौसर बरकाती #Poetry

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کوثر رضا برکاتی

शायर कौसर रज़ा बरकाती #Poetry

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मिलें आप जो चाय पे , कर ली फिर दो बात । इसी बहाने आप से , हो सीधी मुलाकात ।।१ बढ़ जाये फिर चाय का , स्वाद और भी खूब । आप रहे सम्मुख सुनो #कविता

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मिलें आप जो चाय पे , कर ली फिर दो बात ।
इसी बहाने आप से  ,  हो सीधी मुलाकात ।।१

बढ़ जाये फिर चाय का , स्वाद और भी खूब ।
आप रहे सम्मुख सुनो  , औ हम जाये  डूब ।।२

हर चुस्की पे चाय की , किया प्रेम की बात ।
बिन मिश्री मीठी लगी , अपनी वह मुलाकात ।।३

जूठी करके दे रही , नित्य सुबह की चाय ।
कहती दिन मीठा रहे , उत्तम यही उपाय ।।४

निर्मंल मन को देखिए , तन के क्या है हाथ ।
प्रेम -प्रीत  की डोर तो , बाँधे  जीवन  साथ ।।५

पीते थे हम भी कभी  , चाय आपके साथ ।
छुड़ा लिए  है आपने , आज  हाथ से हाथ ।।६

लौट नहीं  पाया  कभी , देखो  वह रविवार ।
अदरक वाली  चाय में , मिला आपका प्यार ।।७

चंदा भी छुपता रहे  , देख  तुम्हारा  भाल ।
रूप तुम्हारा देखकर , मन में  उठे सवाल ।।८

कहीं  और  देखा  नही , ऐसा  सुंदर  रूप ।
जन जन को वह मोह ले , रंक दिखे या भूप ।।९

देख पिया खिलने लगा , गोरी का हर अंग ।
अधरो से मिलने लगा , आज हिना का रंग ।।१०
१५/०९/२०२२     - महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मिलें आप जो चाय पे , कर ली फिर दो बात ।
इसी बहाने आप से  ,  हो सीधी मुलाकात ।।१

बढ़ जाये फिर चाय का , स्वाद और भी खूब ।
आप रहे सम्मुख सुनो

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मिलें आप जो चाय पे , कर ली फिर दो बात । इसी बहाने आप से , हो रही मुलाकात ।।१ बढ़ जाये फिर चाय का , स्वाद और भी खूब । आप रहे सम्मुख सुनो , #कविता

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मिलें आप जो चाय पे , कर ली फिर दो बात ।
इसी बहाने आप से  ,  हो रही मुलाकात ।।१

बढ़ जाये फिर चाय का , स्वाद और भी खूब ।
आप रहे सम्मुख सुनो  , औ हम जाये  डूब ।।२

हर चुस्की पे चाय की , किया प्रेम की बात ।
बिन मिश्री मीठी लगी , वहीं चाय की रात ।।३

जूठी करके दे रही , नित्य सुबह की चाय ।
कहती दिन मीठा रहे , उत्तम यही उपाय ।।४

निर्मंल मन को देखिए , तन के क्या है हाथ ।
प्रेम -प्रीत  की डोर तो , बाधे  जीवन  साथ ।।५

पीते थे हम भी कभी  , चाय आपके साथ ।
छुड़ा लिए  है आपने , आज  हाथ से हाथ ।।६

लौट नहीं  पाया  कभी , देखो  वह रविवार ।
अदरक वाली  चाय में , मिला आपका प्यार ।।७

चंदा भी छुपता रहे  , देख  तुम्हारा  भाल ।
रूप तुम्हारा देखकर , मन में  उठे सवाल ।।८

कहीं  और  देखा  नही , ऐसा  सुंदर  रूप ।
जन जन को वह मोह ले , रंक दिखे या भूप ।।९

देख पिया खिलने लगा , गोरी का हर अंग ।
अधरो से मिलने लगा , आज हिना का रंग ।।१०
१५/०९/२०२२     - महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मिलें आप जो चाय पे , कर ली फिर दो बात ।
इसी बहाने आप से  ,  हो रही मुलाकात ।।१

बढ़ जाये फिर चाय का , स्वाद और भी खूब ।
आप रहे सम्मुख सुनो  ,

Sanazhennaart

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Ankahe jazbat अनकहे जज्बात

दास्तान ए हिना Dastaane Hina https://www.youtube.com/@DastaneHina-os6xj #poem #Poet love

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Ankahe jazbat अनकहे जज्बात

आज हिना जी से बात हुई उन्होंने एक नई शुरुआत की आप सभी साथियों से गुजारिश है कि उनका सहयोग करें और चैनल को सब्सक्राइब करें दास्तान ए हिना D #Quotes #Poet #poem

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