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Vedantika
अच्युथ भव: यश धन रिद्धि सिद्धि के दाता। प्रथम पूज्य की है यह एक गाथा। माता पार्वती के मन में पुत्र की इच्छा ने जन्म लिया। अपने मैल से उन्होंने निर्जीव मूरत को साकार किया। प्राण प्रतिष्ठा की उसमें और उसको जीवन दिया। एक सुंदर से बालक ने माता शब्द का उद्घोष किया। उसके मुख से माता सुन माता का हृदय झूम उठा। क्या आज्ञा हैं मेरे लिए ये सुनकर ध्यान था टूटा। सखियों संग मैं अपने कक्ष के भीतर जाती हूँ। कोई न आने पाए भीतर तुम्हें रक्षक बनाती हूँ। निश्चिंत हो स्नान कीजिए कोई त्रुटि न होने दूंगा। चाहे प्राण चले जाए पर अंदर किसी को न आने दूंगा। एक बालक अपनी माता के कक्ष के बाहर दे रहा था पहरा। आने वाले समय का कुचक्र होने वाला था कुछ गहरा। भोलेनाथ शिव शंकर लौट कर कैलाश पर्वत पर आए थे। उमा से भेंट करने के लिए वे हृदय से अकुलाए थे। (अनुशीर्षक में……) अच्युथ भव: यश धन रिद्धि सिद्धि के दाता। प्रथम पूज्य की है यह एक गाथा। माता पार्वती के मन में पुत्र की इच्छा ने जन्म लिया। अपने मैल से उन्ह
Jai Bhim
CM Chaitanyaa
" श्री चैतन्य महाप्रभु " श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य सन् 1486 में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के नवद्वीप (नादिया) नामक गाँव में हुआ। यह स्वयं श
Shree
दिखे ना कोई उद्गम, ना विराम! अनुशीर्षक प्रेम .... प्रेम के कई प्रारूप होते हैं, कई चरण होते हैं, ऐसा कहते हैं। पर, जब चरम आता है, प्रेम का तो ना कोई रूप, ना कोई चरण, ना आंसू, ना म
lalitha sai
कादंबरी.. एक ऐसा नाम.. ये नाम से मेरा रूह जुड़ा है क्योंकि इस नाम से कुछ यादें जुड़े है! कादंबरी... एक ऐसा नाम.. इस नाम से मेरा अस्तित्व जुड़ा है! #lalithasai #mypenname #newnameoflife #myworld कादंबरी... एक काले रंग का पक्षी जिसकी आवाज सुरीली होती है विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री देवी
Sunita D Prasad
#शब्दों का कौमार्य..... यह शब्दों का सौंदर्य रहा कि हर नए वाक्य पर उनका कौमार्य यथावत रहा। इधर मैं कविता की वे अंतिम पंक्तियाँ रही जिन्होंने उसके प्रारब्ध के संग पूर्ण निर्वाहन किया। मैंने इच्छाओं की उर्वरक भू पर पाँव जमाते हुए स्नेह की दृंढ़ता को थामना चाह पर इच्छाएँ वजनी निकलीं। मेरे मुखमंडल पर विग्रह वेदना का प्रतिबिंब ठहरता इससे पूर्व एक समृद्ध संतुष्टि का आवरण स्वेच्छा से ओढ़ लिया दुःख की तुलना में सुख अकिंचन रहे पर अस्तित्वहीन नहीं जीवन में प्रेम तब उद्धृत हुआ जब वह लगभग परिभाषा विहीन हो चुका प्रतीक्षित अनुभूतियाँ भाषा के अभाव में अनर्थ सिद्ध हुईं पूरे नाट्यक्रम में अपने संवादों को कंठस्थ कर नेपथ्य में प्रविष्टि की प्रतीक्षा करती रही परंतु हम सभी अस्थाई दृश्यों के अस्पष्ट पात्र ही साबित हुए। जीवन अपनी गति में चला दृश्यों संग पात्र बदलते गए पर कुछ प्रतीक्षाएँ कभी समाप्त नहीं हुईं जहाँ दुनिया वृताकार रही वहीं प्रेम सरल रेखा समान संभवतः तभी वृत की गोलाई कभी नाप ही नहीं पाई!! #शब्दों का कौमार्य..... यह शब्दों का सौंदर्य रहा कि हर नए वाक्य पर उनका कौमार्य यथावत रहा।
Dharm Desai
आज का युवा बस धुँआ ही धुँआ (Full piece in the caption ✍️🤹) ये मेरा हिंद और में इसका युवा यहाँ खलबली है बलशालीओ की जो रिसते है राजनीति का धुँआ इसी धुंध के बस मे मैं भी महंगी शिक्षा महंगी दवा एक साथ अ
SURAJ आफताबी
दिल सुबकेगा ताउम्र तो इसकी तुष्टि कौन करेगा जो कर जाओगे लकीरों की लकीरों से बिछड़न फिर बताओ इस विग्रह प्रेम की पुन: पुष्टि कौन करेगा! मरू जंगल से होंगे सारे प्रेमपत्र इन पर निगाह वृष्टि कौन करेगा जो लूट ले जाओगे सबकी निगाहें हमसे दिलबर फिर बताओ इस परित्यक्त सी रूह पर दृष्टि कौन करेगा! तुमने तो बाँध ली बछल गठरी, मेरी तो मुष्टि भी कौन भरेगा ये जो तुम एक क्षण भर में कल्पों तक अकल्प कर रहे हो मुझे तो ये भी बताते जाओ इस अवस्था में मेरी विष्टि कौन करेगा ! अनुग्रह माँग कर रहा "आफताबी" तेरे रूष्ट चन्द्र वदन से जब राख हो जायेगी ये पंक्तियाँ तो सृष्टि कौन रचेगा अभी बसंत के माकूल उर्वर है कागज पर मेरा तेरा अंकन अब बताओ जब हो गई जमीं ये ऊसर तो फिर शब्द-कृष्टि कौन करेगा! तुष्टि- प्रसन्न पुष्टि- दृढ़, मजबूत विग्रह- टुकड़ा, विभक्त वृष्टि - बारिश बछल- प्रेम, वात्सल्य मुष्टि- मुट्ठी कल्प- युग अकल्प - कमजोर, क्षीण
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey. 🎇 ब्रह्माजी ने कहा- महाभाग्यशाली श्रेष्ठ महर्षियों! अब मैं तुम लोगों से रजो गुण के स्वरूप और उसके कार्य भूत गुणों का यथार्थ वर्णन करूँगा। 🎇 ध्यान देकर सुनो संताप, रूप, आयास, सुख दु:ख, सर्दी, गर्मी, ऐश्वर्य, विग्रह, सन्धि, हेतुवाद, मन का प्रसन्न न रहना, सहनशक्ति, बल, शूरता, मद, रोष, व्यायाम, कलह, ईर्ष्या, इच्छा, चुगली खाना, युद्ध करना, ममता, कुटुम्ब का पालन, वध, बन्धन, क्लेश, क्रय-विक्रय, छेदन, भेदन और विदारण का प्रयत्न, दूसरों के मर्म को विदीर्ण कर डालने की चेष्टा, उग्रता, निष्ठुरता, चिल्लाना, दूसरों के छिद्र बताना, 🎇 लौकिक बातों की चिन्ता करना, पश्चात्ताप, मत्सरता, नाना प्रकार के सांसारिक भावों से भावित होना, असत्य भाषण, मिथ्या दान, संशयपूर्ण विचार, तिरस्कार पूर्वक बोलना, निन्दा, स्तुति, प्रशंसा, प्रताप, बलात्कार, स्वार्थ बुद्धि से रोगी की परिचर्या और बड़ों की शुश्रूषा एवं सेवावृत्ति, तृष्णा, दूसरों के आश्रित रहना, व्यवहार कुशलता, नीति, प्रमाद (अपव्यय), परिवाद और परिग्रह ये सभी रजोगुण के कार्य हैं। ©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey. 🎇 ब्रह्माजी ने कहा- महाभाग्यशाली श्रेष्ठ महर्षियों! अब मैं तुम लोगों से रजो गुण के स्वरूप और उसके कार्य भूत गुणों का
Vikas Sharma Shivaaya'
🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🚩 🙌🚩🔱 मां जगदम्बे🔱 हमेशा हमारा -आपका मार्गदर्शन करती रहें..., 📖✒️जीवन की पाठशाला 📙 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 मां दुर्गा का स्वरूप: माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है-नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है- इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है..., बीज मंत्र : ‘ऐं श्रीं शक्तयै नम:’ लोकवेद के अनुसार माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं- ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं..., मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है, इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है-इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है-इनके दस हाथ हैं- इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं- इनका वाहन सिंह है, इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है..., श्लोक: पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता || Affirmations: 61.मेरी आय निरंतर बढ रही है..., 62.मेरे पास अनंत संभावनाएं हैं.. , 63.मै स्वयं को वतॅमान में पूणॅतया प्रेम करता हूं.. , 64.मै अपने आंतरिक शिशु को प्रेम से गले लगाता हूं..., 65.मै प्रतिदिन कुछ नया सीखता हूं.. , बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गई की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....! 🙏सुप्रभात 🌹 आपका दिन शुभ हो विकास शर्मा'"शिवाया" 🔱जयपुर -राजस्थान 🔱 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🚩 🙌🚩🔱 मां जगदम्बे🔱 हमेशा हमारा -आपका मार्गदर्शन करती रहें..., 📖✒️जीवन की पाठशाला 📙 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल