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ChittaranjanSahoo
orange string love light प्रिये ! हम गीत है और आप संगीत हो, हम मित है और आप अमित हो, हम धार है और आप उसकी आधार हो, हम हार है और आप विजय-हार हो । हम असार है और आप सार हो, हम बेकार है और आप सकार हो, हम आकार है और आप निराकार हो, हम हार है और आप विजय-हार हो । हम अतीत है और आप वर्तमान हो, हम अशक्त है और आप शक्तिमान हो, कैसे न मानें कि आप हमसे महान हो, हम हार है और आप विजय-हार हो । देवी ! हम आपके काबिल नहीं, आप के बिना हम कुछ भी नहीं, आपके सान्निध्य में ही हमारा उद्धार हो, हम हार है और आप विजय-हार हो । ©ChittaranjanSahoo कविता ♥️प्रणय-संगिनी♥️ #hunarbaaz #प्रणयसंगिनी #Love
Poet Kuldeep Singh Ruhela
ये गोल गोल लगी हुई जो घड़ियां है ये शहर के हर घंटाघर पर लगी होती हैं घडी की ये सुई चलती हुई दिन में कई बार समय देती हैं यही घंटा घर हर किसी के शहर में होता है ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #essenceoftime ये गोल गोल लगी हुई जो घड़ियां है ये शहर के हर घंटाघर पर लगी होती हैं घडी की ये सुई चलती हुई दिन में कई बार समय देती हैं यही
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
वह है जीवन संगिनी , मैं उसका संसार । आयु हमारी राम जी , कर दो तुम उपहार ।। हाथ नही तुम छोड़ना , चलना मेरे संग । प्रीति रंग बनके सदा , लिपटू तेरे अंग ।। आज हमारे बीच में , रहा न कोई भेद । हम तुम इतने पास में , रहता सबको खेद ।। करो बधाई आज तुम , मेरी भी स्वीकार । तुम हो जीवन संगिनी , मैं तेरा संसार ।। हर पल मेरे साथ का , ले लो तुम आनंद । कुछ क्षण पहले आपसे , हो ये साँसें बन्द ।। १४/०२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR वह है जीवन संगिनी , मैं उसका संसार । आयु हमारी राम जी , कर दो तुम उपहार ।। हाथ नही तुम छोड़ना , चलना मेरे संग । प्रीति रंग बनके सदा
Sawan Sharma
कहूँ अपना या ना तुमको प्रिये कहू या प्रेयसी या बन जाऊँ अनजान कोई सोचू नहीं तुम को मैं अपना दुविधा भरे मन को मेरे तुम ही कुछ सुझाव दो साथ रहो तुम बन के संगिनी स्वप्न ऐसे सजा लूं क्या या जब आए स्वप्न ऐसा तब मैं नींद से उठ जाऊँ स्वप्न देखते मन को मेरे तुम ही कुछ सुझाव दो प्रार्थनाओं में हमेशा साथ तुम्हारा मांगता हूं आस करू मैं मिलने की या आस लगाना छोड़ दु आशावादी मन को मेरे तुम ही कुछ सुझाव दो । ©pen_of_sawan कहूँ अपना या ना तुमको प्रिये कहू या प्रेयसी या बन जाऊँ अनजान कोई सोचू नहीं तुम को मैं अपना दुविधा भरे मन को मेरे तुम ही कुछ सुझाव दो साथ
shalini jha
समय का चक्र कुचक्र क्षण प्रतिक्षण सुई की नोक पर चलता रहता है। यह किसकी ओर इंगित है और इसके भंवर में कब कौन फंसे यह कोई नहीं जानता ..... ©shalini jha #GateLight समय का चक्र कुचक्र क्षण प्रतिक्षण सुई की नोक पर चलता रहता है। यह किसकी ओर इंगित है और इसके भंवर में कब कौन फंसे यह कोई नहीं ज
Kuldeep Singh Ruhela
# घड़ी की ये टीक टीक हमको ज्ञान करवाती हैं सुई जहां घूमती हैं उसकी वही समय बताती हैं चारो और का चक्कर लगाके फिर वही पहुंच जाती है ये घड़ी हम को पूरा वर्तमान बताती हैं ©Kuldeep Singh Ruhela #samay ये घड़ी की सुई हमको
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
आजादी की ही खातिर तो,सीने पर गोली खाई थी । याद करो अब उस पल को भी , गोरो ने सुई चुभाई थी । आजादी की ही खातिर तो.. बिलख-बिलख कर माँएं रोई , जब कहीं नही सुनवाई थी । पीट-पीट कर सीना हमने , तब दिल की आग बुझाई थी ।। उन बेदर्दो के जख्मों की, तो कहीं नहीं भरपाई थी ... आजादी की ही खातिर तो .... बहनें विधवा हो बैठी थी , सिंदूर माँग का बिखरा था । टूटी चूड़ी कंगन की तो , गूँजों से यह दिल दहला था ।। उन यतीम बच्चों की चीखें , कर देती दिल में खाई थी ... आजादी की ही खातिर तो .... भाषण में वीरों की गाथा , बतलाये हिन्दुस्तानी को । जो भूल गये खुद आज यहाँ , वीरो की उस कुर्बानी को ।। आओ याद इन्हें दिलवाये , जो कसमें इसने खाई थी । आजादी की ही खातिर तो .... मानवता में क्रोध भरोगे , क्या ऐसी शपथ दिलाई थी । भेदभाव सब में भर दोगे , या ऐसी शपथ दिलाई थी ।। मुँह फाड़ आज चिल्लाते हो , हमने ही खुशियाँ लाई थी ... आजादी की ही खातिर तो ... आजादी की ही खातिर तो , सीने पर गोली खाई थी । याद करो अब उस पल को भी, गोरो ने सुई चुभाई थी ।। १५/०८ २०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आजादी की ही खातिर तो,सीने पर गोली खाई थी । याद करो अब उस पल को भी , गोरो ने सुई चुभाई थी । आजादी की ही खातिर तो.. बिलख-बिलख कर माँएं रोई ,
Vickram
तेरा काजल चुरा के अपना नाम लिख लूं, तेरे होंठों की लाली प्यार में शामिल कर लूं तेरे हाथों की मेंहदी को दे दुं में रंग खुद का तेरे कंगन के संगीत को अपनी पसंद बना लूं तेरे माथे की बिंदी को बनाकर तकदीर अपनी चलो तुम्हें अपने सपनों की माला में पिरो लूं ©Vickram जीवन संगिनी,,,,