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Amit Singhal "Aseemit"
अक्सर ऐसा होता है कि परवान चढ़ता है इश्क़, दो मासूम दिल आपस में बातें करते हैं मिटने मरने की। सच्चाई से सामना होते ही हो जाता नदारद इश्क़, फिर कोशिश होती है एक दूजे को नज़रंदाज़ करने की। ©Amit Singhal "Aseemit" #नदारद #इश्क़
Kranti Thakur
जिसमे ह्रदय का घाव दिखे। जो जनमानस का भाव गढ़े। जो नव चेतन का सृजन करे। जिसको सुन धीरज मन धरे। जिसमे न अर्थ का खोट रहे। जो हर कुरीति पर चोट रहे। जो स्वप्न की एक परिभाषा हो। जिसमे बस प्रेम की भाषा हो। जिसमे राष्ट्र समर्पित रीत भी हो। जो बलिदानों के गीत भी हो। जो हर मन को संबल देता हो। जो अरमानों को बल देता हो शब्द जहाँ मर्यादित हो। सुन जिसको मन आह्लादित हो। जहाँ गर्व का भाव भी हो। जो सर्व धर्म समभाव भी हो। वो कविता कहीँ नदारद है। वो कविता कहीँ नदारद है।। - क्रांति #नदारद #क्रांति
Kranti Thakur
तेरे दर से चलें हम तो कहाँ जाके पहुँचे, राश्ते तो वही हैं मगर मंजिलें हैं नदारद। है सफर भी वही ख़्वाहिशें भी तुम्ही हो, ख्वाब में भी हैं तनहा हमसफ़र है नदारद। इबादत भी तुम से दुआ में भी तुम ही, मगर अब न जाने क्यूँ असर है नदारद। कसमकस में है जीवन उलझनें है बहुत सी, ना खुशियाँ है हासिल सुकून भी नदारद। है ये कोहरे का मौसम या अमावस है छायी, आस्मां तो वहीँ है मगर चाँद है अब नदारद। - क्रांति #नदारद #क्रांति
Manjeet Sharma 'Meera'
आज महताब नदारद है बड़ी ज़ुल्मत है बाम पर अब तो चले आओ इनायत होगी। #महताब नदारद है 🌙
#महताब नदारद है 🌙
read moreसतीश तिवारी 'सरस'
डॉ. प्रकाश जी डोंगरे की पंक्तियाँ जलती सड़कों पर जो एक अकेला आदमी गुलमोहर की तलाश में नंगे पाँव जा रहा है व्यवस्था का सूरज सबसे अधिक उससे ही घबरा रहा है। ''बूढ़ा पिता और आम का पेड़'' काव्य संग्रह से साभार ©सतीश तिवारी 'सरस' #व्यवस्था
Author Harsh Ranjan
दुनिया के कानूनों ने मुझे ये सिखाया है कि घोड़ा और गधा एक है, व्यवस्था की नजर में! या कहें कि घोड़ापन अथवा है। दुनिया का गधों के लिए यही जज्बा है। सर्वत्र संसार में अकाल व्याप्त है! भूख और भूख का डर जल और वायु से भी पर्याप्त है। कमाने वालों को कम खाने के गुण बताए जा रहे हैं और लोग उनकी रसोई के आटे-दाल से भंडारे करवाये जा रहे हैं। किसी ने मेरे कानों में धीमे से कहा है, एक किसान दो फसल काटकर भी आयु में उतना कमाता है कि उसके तीन पुश्त एक भी रात भूखे न गुजारें! पर ये गांव वालों को कैसे समझाएं कि बेरोजगारी के दिन-रात बिस्तर पर न गुजारें! अगर धरती पर पड़ा होना ही अस्तित्व है तो ये व्यवस्था मानव से ज्यादा मवेशियों के निमित्त है। व्यवस्था
व्यवस्था
read moreAuthor Harsh Ranjan
दुनिया के कानूनों ने मुझे ये सिखाया है कि घोड़ा और गधा एक है, व्यवस्था की नजर में! या कहें कि घोड़ापन अथवा है। दुनिया का गधों के लिए यही जज्बा है। सर्वत्र संसार में अकाल व्याप्त है! भूख और भूख का डर जल और वायु से भी पर्याप्त है। कमाने वालों को कम खाने के गुण बताए जा रहे हैं और लोग उनकी रसोई के आटे-दाल से भंडारे करवाये जा रहे हैं। किसी ने मेरे कानों में धीमे से कहा है, एक किसान दो फसल काटकर भी आयु में उतना कमाता है कि उसके तीन पुश्त एक भी रात भूखे न गुजारें! पर ये गांव वालों को कैसे समझाएं कि बेरोजगारी के दिन-रात बिस्तर पर न गुजारें! अगर धरती पर पड़ा होना ही अस्तित्व है तो ये व्यवस्था मानव से ज्यादा मवेशियों के निमित्त है। व्यवस्था
व्यवस्था
read moresomnath gawade
प्रचलित व्यवस्थेविषयी 'व्यवस्थित' बोलले नाहीतर 'व्यवस्था' आपल्याला व्यवस्थित जागी पोहचविते. 🤣😂 #व्यवस्था
Mahesh Kumar
जब तक देश के गद्दारों को कानून का डर नहीं होगा । तब तक देश की समस्याओं का कोई भी हल नहीं होगा । कानून व्यवस्था
कानून व्यवस्था #विचार
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