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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
सरसी छन्द अबकी होली सुन लो प्रियतम , मेरे मन की चाह । संग तुम्हारे खेलूँ होली , तकती तेरी राह ।। अबकी होली सुन लो प्रियतम.... ताने देती हैं सब सखियां , कहके विरहन आज । जबकी दिल पे मेरे साजन , बस तेरा ही राज ।। आओ अपने अंग लगा लो , बस इतनी है चाह । अबकी होली सुन लो प्रियतम .... माह जेष्ठ में भू ये जलती , तुम बिन जिया हमार । अबके फागुन में आ जाओ , हो मन का शृंगार ।। बिरहन बनकर कब देखूँ , मैं अब तेरी राह । अब की होली सुन .... आज विरह में तन ये काला , मल दो प्रीत गुलाल । बनकर मीरा दर-दर भटकू, आओ मेरे ग्वाल ।। आज प्रेम की मीरा प्यासी , करे मिलन की चाह । अब की होली सुन लो प्रियतम..। अबकी होली सुन लो प्रियतम , मेरे मन की चाह । संग तुम्हारे खेलूँ होली , तकती तेरी राह ।। ०७/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सरसी छन्द अबकी होली सुन लो प्रियतम , मेरे मन की चाह । संग तुम्हारे खेलूँ होली , तकती तेरी राह ।। अबकी होली सुन लो प्रियतम.... ताने देती ह
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है । मान खुदा उन्हें ये दिल पुजारी होने लगता है ।। दूर दूर के नाते थे बंधन में जो बाँधें थे । उनकी खातिर दिल अब महतारी होने लगता है ।। रूठ नही जाएं हमसे हरपल चिंता है रहती । सोंच सोंच कर दिल मेरा भारी होने लगता है ।। झुक जाता था शीश हमारा देख सामने जिनको । रिश्तों का वो यारों व्यापारी होने लगता है ।। कितने और जन्म ले लूँ बोलों मैं उनकी खातिर । हर जीवन तो उनका ही आभारी होने लगता है ।। माँग भरा शृंगार कराया अपना हर सपना भूला । मगर प्रीत माँगता तो भिखारी होने लगता है ।। दो टूके भी खिला न सकता बाते करता ऊँची । आते द्वार भिखारी भण्ड़ारी होने लगता है ।। १८/०२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है । मान खुदा उन्हें ये दिल पुजारी होने लगता है ।। दूर दूर के नाते थे बंधन में जो बाँधें थे ।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- देख-देख लुट गये , फिर हम मिट गये , भोली-भाली सजनी के , सुन लो शृंगार में । याद नहीं नूँन तेल , रहा सब कुछ झेल , माँगे क्रीम पाऊडर , वह उपहार में । डाल गले बाँह हार , करे खूब मनुहार , कहे ऐसी प्रीत पिया , मिलें न बाजार में । करें मीठी-मीठी बातें , कहे क्यूँ है छोटी रातें , लगता है काम टेढ़ा , आया है विचार में ।। -१ पूछ मत बात कुछ , याद मुझे सब कुछ , ऐसा उसने जलवा , दिखाया दीदार में । नशा ऐसा चढ़ रहा , पिये बिन झूम रहा , जिसका उतार बस , है उसके प्यार में । सुन उसकी पायल , ये दिल होता घायल , सुन लगे मीठी बोली , अब तकरार में । वह जो पसंद करे , मन में आनंद भरे , दिल का दे दूँ तोहफा , फिर इजहार में ।। ०२/११/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- देख-देख लुट गये , फिर हम मिट गये , भोली-भाली सजनी के , सुन लो शृंगार में । याद नहीं नूँन तेल , रहा सब कुछ झेल , माँगे क्
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- साजन माँग अपनी संवारे , रूप अपना निखारे भाए मन साजन के , घूंघटा उठाइये । खन-खन चूड़ी बोले , दिल धीरे-धीरे डोले , कहते क्या है साजन , हमें भी बताइये । प्रीति ये अमर रहे , जीवन सफल रहे , आप जब संग संग , जीवन बिताइये । इतनी सी न बात है , जीवन यह खास है , आप यूँ न दिल मेरा , ऐसे तो चुराइये ।।१ संग रहते साजन , प्यारा सा यह आँगन , बच्चों की है किलकारी , खुशियाँ मनाइये । साजन का प्यार यह , सूरत शृंगार यह , दिल उनका जीत ले , पलक न उठाइये । कभी बोले हीर है तू , कभी बोले नीर है तू , अंतस की प्यास को तू , मेरी बुझाइये । यही आज आस बाकी , रहे अब स्वास बाकी , संग तेरे जीवन का , आनंद उठाइये ।।२ ०७/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- साजन माँग अपनी संवारे , रूप अपना निखारे भाए मन साजन के , घूंघटा उठाइये ।
Bharat Bhushan pathak
चंडिका छंद :-यह एक सममात्रिक छंद है जिसका विधान १३ मात्राएं पदांत रा ज भा (२१२) अनिवार्य है। हिन्दी बिन्दी हिन्द की। प्राण सभी ये छंद की।। मधुर यही मकरंद है। अति दिव्य ये गन्ध है।।१ देती बल यह भाव को। भर दे सब यह घाव को।। यही तो अमृत धार है। करे हिन्द शृंगार है।।२ सभी ज्ञान की खान है। हिन्दी अति गुणवान है।। कवियों की यह काव्य है। यही भाषा अति श्लाघ्य है।।३ भाती सबके कर्ण है। सुन्दर इसका वर्ण है।। गौर नहीं ना श्याम है। जिसका हिन्दी नाम है।। ४ ©Bharat Bhushan pathak #chandikachhand चंडिका छंद :-यह एक सममात्रिक छंद है जिसका विधान १३ मात्राएं पदांत रा ज भा (२१२) अनिवार्य है। हिन्दी बिन्दी हिन्द की। प्रा
Dikesh Kanani (Vvipdikesh)
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
शृंगार छन्द काश उनसे होती अब बात । सुखद होते अपने दिन रात। लटों में फूल लगाता आज। हृदय पर उनके अपना राज।। गेसुओं में जो लगा गुलाब। हुआ है फीका अब महताब। लगी है उनकी चाल कमाल। चेहरा जैसे रंग गुलाल ।। ०९/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR शृंगार छन्द काश उनसे होती अब बात । सुखद होते अपने दिन रात। लटों में फूल लगाता आज। हृदय पर उनके अपना राज।। गेसुओं में जो लगा गुलाब।
CHOUDHARY HARDIN KUKNA
priya gupta