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Rajesh rajak
हम क्या कर रहे हैं,रोज जीने की आस में तिल तिल मर रहे हैं, आओ कुछ नया करें,हम भी क्यों जिएं मरने के लिए, जीने के लिए तो सभी मर रहे हैं, बो कर जाएं कुछ बीज अच्छाइयों,केजिनसे निकलें,नवांकुर के फूल नफ़रत तो सभी बो रहे हैं,, नवांकुर
Mohan Sardarshahari
रात भर इक चांद का साया रहा मैं उसके साये में जैसे नहाता रहा तारों में चंचल चमक आकाश गंगा जैसे चांदी का खनन रात की कोमलता जैसे रेशमी आंचल यही है वजह जिससे रात में फूटते हैं नवांकुर।। ©Mohan Sardarshahari फूटते हैं नवांकुर
Yashi Goel
मंज़िलें अपनी अपनी पाने अब यहाँ से भीड़ निकल पडी है, सही ही लिखा है यहाँ की ये "आम रास्ता नहीं है" ! "वनस्थली विद्यापीठ" #GraduationCompleted #Biddingfarewell #MissThisPlace
Ek villain
इन दिनों में गंज तत्वों का शिकार हो रहा है इमानदारी से तो हो रहा है हूं कहकर भी मैं अपने इस हताशा को जीतने की कोशिश कर रहा हूं जो बालों के लगातार बढ़ते देख पैदा हुई है सच्ची बात यह है कि सिरका वैभव कमोबेश लूट ही चुका है पूरी शीशे क्षेत्र में इतना ही बाल बचे हैं जितने से राजनीति में विचारधाराओं के प्रति प्रतिबंध लगे जिस तरह इमानदार लोग से लोकतंत्र की नार आगरा में कायम ठीक उसी से मन तेवर बची दो हुई चार जुल्फों के दम पर खड़ा बता रहे हैं इस इमारत बुलंद थी आदमी अपने दिल को बहलाने के लिए क्या-क्या नहीं करता जवानी के जिन दिनों में मेरे सिर पर लंबी और घनी जुल्फें हुआ करती थी मैं उन्हीं के सवारने में घंटों गुजार देता था वह दिन बेरोजगारी के थे लेकिन किसी ना किसी मुझे यह बात नहीं था कि बेरोजगारी बहुत खतरनाक होती है इसलिए मैंने नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा देता था और पढ़ाई के बाद के समय में अपनी जुल्फें सवाल करता था जिस से मिलने जाने के लिए ना जाने कितने महीनों तक अपनी जुल्फों को संवारा वही प्रेमिका तो कई सालों पहले किसी और के लिए शैंपू खरीद के ले उसकी का आंगन बन गई अब उसकी याद में जुल्फें भी किनारे कर लिया करें आदमी को यह बात बहुत आसानी से समझ नहीं आती की दोस्ती के दावे और जुल्फों के साए कभी भी साथ छोड़ सकते हैं ©Ek villain #मैं गंज तत्व और सुख #adventure
Bilal Aabid
मो. बेलाल सारनी #नवांकुर साहित्य में प्रकाशित मेरी ग़ज़ल