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SURAJ आफताबी
पहले भी तो था कम़र आफताब से दूर अब हुये सितारें निगहबान तो क्या हुआ पहले भी तो था मिरी सूची में सूचीख़ाना अब फिर हुयी मय की बान तो क्या हुआ कभी मिरी शफ़क़ से आराई थे वो शफ़त अब फिर हुये दो लब वीरान तो क्या हुआ कब से नजरों में ही उलझी है दिल की पहेली फिर से मौन रह गई ये शाम तो क्या हुआ कहते है कभी मै मुसन्निफ़ था तिरे जमील का अब हवाओं में ढूँढ़ता तिरे निशान तो क्या हुआ पहले भी खुदा के सदके गीता पढ़ता था आफताबी अब पढूँ राम की आराधना में फुरक़ान तो क्या हुआ निगहबान- देख रेख करने वाला सूचीखाना- शराबखाना बान- आदत शफ़क- सुबह शाम की लालिमा आराई- सजे हुये शफ़त- होंठ मुसन्निफ़- लेखक जमील- सुन्दरता
Paramjeet kaur Mehra
Allah Kabir वेद शास्त्र और सभी धर्म के ग्रंथों में कबीर जी ही पूर्ण परमात्मा है जिसका प्रमाण ग्रंथों में है परमात्मा साकार है नर आकार है सह
Paramjeet kaur Mehra
Allah Kabir वेद शास्त्र और सभी धर्म के ग्रंथों में कबीर जी ही पूर्ण परमात्मा है जिसका प्रमाण ग्रंथों में है परमात्मा साकार है नर आकार है सह
Paramjeet kaur Mehra
#Real_Allah_Is_Kabirपवित्र कुरान शरीफ में प्रमाण है प्रभु सशरीर है तथा उसका नाम कबीर है। हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भी विद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपने सत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो(बैठ) गया। क़ुरान सूरह अल-फुरकान नं. 25 आयत 59 #Night पवित्र कुरान शरीफ में प्रमाण है प्रभु सशरीर है तथा उसका नाम कबीर है। हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है क
ARTI JI
White कभी न मरने वाला अल्लाह कबीर है। कुरान ज्ञानदाता हजरत मुहम्मद जी को कहता है की उस जिन्दा अल्लाहु कबीर पर भरोसा रखो जो कभी न मरने वाला है। उसकी महिमा का गुणगान निरंतर करते रहो वह अपने बंदों के गुनाहों का नाश करने वाला है। प्रमाण- सूरत फुरकान 25 आयत नं: 59 #AlKabir_Islamic #SaintRampalJi ©ARTI JI #flowers #भक्ति #voting #शायरी #कविता #मोटिवेशनल #कॉमेडी #लव कभी न मरने वाला अल्लाह कबीर है। कुरान ज्ञानदाता हजरत मुहम्मद जी को कहता है की
Sachin Ratnaparkhe
एक कविता दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगे के खिलाफ नफ़रती आग का तुम मजा लीजिए अपनी आंखो में आंसू सजा लीजिए, लाशे बिछती रही और तुम सोते रहे, मुफ्त में बंट रही वो क़ज़ा लीजिए। उनसे तुम्हारी लाचारी देखी न गई, तुमसे तुम्हारी तरफदारी पूछी न गई, तुम यह वाले हो या फिर वो वाले हो, मौत देने से पूर्व जानकारी की न गई। जो सामने आया उनके वो मरते चले, इक कौम का सफ़ाया वो करते चले, तुम सोते रहो तुमको फर्क क्या, वो मारते चले ओ तुम मरते चले। उनको कभी नहीं था तुमसे कोई वास्ता, तुमने खुद ही चुना था पतन का रास्ता, तुम संपोलो को दूध पिलाते रहे मगर, मौका पाते ही पार कर दी पराकाष्ठा। तुम उनकी नज़रों में काफ़िर ही हो, तुम अलग रास्तों के मुसाफिर ही हो, वो चलते है जब ऐसे चलते है वो, जैसे लेकर तुम्हारी मौत हाज़िर हो। यह कविता व्यंगतामक है जो कुंभकरण की नींद सोते हुए एवम् अपनी दुनिया में खोए हुए हिन्दुओं के प्रति कटाक्ष करती है जिन्हे अपनी अस्तित्व की कोई