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यशवंत कुमार
तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ मैं रंग-रंगीला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ, मैं छैल-छबीला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ, तु है कि जर्रे-जर्रे में समायी है; मैं भीड़ में अकेला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ!! मौज़ूदगी तेरे अक्स की हर ओर पाता हूँ, मैं पागल हवा संग बहता जाता हूँ, तु पल-पल, नए-नए स्वांग रचती है; मैं आशिक़ अलबेला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ!! अनजानी राहों पर बढ़ता जाता हूँ, कितने ही सपने मैं गढ़ता जाता हूँ, तपिश तेरी जुदाई की इतनी ज़्यादा है; मैं अंग-अंग गीला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ!! मेरी हर ख़्वाहिश का वज़ूद तु है, मेरी बढ़ती बेसब्री का राज़ तु है, चिंगारी भड़काई है तुमने शमा बनकर मुझमें; और अब मैं शोला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ!! तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ मैं रंग-रंगीला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ, मैं छैल-छबीला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ, तु है कि जर्रे-जर्रे में समायी है;
MohiniGupta
मैं समय हूँ। (poem read in caption) मैं समय हूँ, ब्रह्मांड को पहली रचना हूँ, पृथिवी की संरचना हूँ, पहले बीज का पहला कोपल हूँ, समुद्र की पहली हलचल हूँ। मैं भूत वर्त भविष्य हूँ,
Kuldeep Singh Ruhela
#ताज़ा ग़ज़ल 🌷🌿 मोहब्बत में ऐसा दिवाना हुआ दिल कि मुझसे ही मेरा बेगाना हुआ दिल ये देखे है सपना सुहाना-सुहाना चलो अब मिरा भी सुहाना हुआ दिल मोहब्बत भरे गीत है गाता फिरता बहुत आजकल आशिक़ाना हुआ दिल मोहब्बत में करने लगा शायरी भी छबीला बड़ा शायराना हुआ दिल बड़ी क़ातिलाना निगाहें हैं उसकी है जिसकी नज़र से निशाना हुआ दिल जुदाई, तड़प, रतजगे, बेक़रारी इन्हीं का तो अब ये ठिकाना हुआ दिल गया था मुझे छोड़ के पास उनके तो फिर क्यों तिरा लौट आना हुआ दिल ख़्यालों में उनके तू बेसुध पड़ा है तू है ख़ैर से या रवाना हुआ दिल कब आती थी इसको मोहब्बत समझ में लगी चोट तब ये सयाना हुआ दिल !! #Chand_tuta_tara_pighla #ताज़ा ग़ज़ल 🌷🌿 मोहब्बत में ऐसा दिवाना हुआ दिल कि मुझसे ही मेरा बेगाना हुआ दिल ये देखे है सपना सुहाना-सुहाना चलो अ
पवन कश्यप
देखे मेरी दो भाइयां में बैठा उठी तू ओल्हा कर बतलाया करिए...। काम करण जब मैं जाऊं खेत में तू मेरी चा लेकै नै आया करिए..। हाँ जाणु सूं तू फैशना की छैल छलन्दरी मैं बालक सीधे बाणे का..। तू मेरे कदमा तै कदम मिला कै नै पसीन्या की टूम सजाया करिए..। काम करण जब मैं जाऊं खेत में तू मेरी चा लेकै नै आया करिए..। यो सच है कि साँसा पे नाम तेरा भले मैं जान देऊं ना..। आली सुखी भले खाण नै पर आंख्या में आँसू आण देऊं ना..। तेरे साथ तै होवै गुजारा तू मेरा कहण पुगाया करिए..। तेरे आण तै घर होज्या रोशन तू हँसी के दीप जलाया करिए..। काम करण जब मैं जाऊं खेत में तू मेरी चा लेकै नै आया करिए..। ©पवन कश्यप देखे मेरी दो भाइयां में बैठा उठी तू ओल्हा कर बतलाया करिए...। काम करण जब मैं जाऊं खेत में तू मेरी चा लेकै नै आया करिए..। हाँ जाणु सूं तू फैशन
Anita Saini
थारै बिना म्हानै सूनो सूनो ळागै म्हारो घर आँगणों जी उड़ीका थारी बाट बेगा पधारो म्हारे हिवड़े रा हार जी सूनो आसन म्हारे हिवड़े नै तरसाव जी म्हारा छैल भंवर जी मर ज्यासी थारी गोरड़ी जी थारै बिना म्हानै सूनो सूनो ळागै म्हारो घर आँगणों जी उड़ीका थारी बाट बेगा पधारो म्हारे हिवड़े रा हार जी सूनो आसन म्हारे हिवड़े नै तरसाव जी
अवधराम गुरु
जब देवलोक से सुख की देवी- नर्तन करने पृथ्वी पर आ जाएगी, जब आसमान के सूने मस्तक पर- उल्लासों की लाली सी छा जाएगी! जब ढोलक की थापों की
कवि राहुल पाल 🔵
...................... ©कवि राहुल पाल "पनिहारन " लेखक - कवि राहुल पाल दिनांक -७ जून २०२१ **************** इक नार नवेली,छैल छबीली चली इठलाती पनघट पर , कर में कंगना ,कमर करधनी, न
भाग्य श्री बैरागी
अतरंगी दुनिया में सतरंगी सी होली है, रंग पैसों का सब पे चढ़ा ऐसे भी रंग हैं, गरीबी में कहाॅं पैसों में ही सब संग हैं। सबके हो जाने में प्यारी नारी भी रंगी है, शर्म, अनुशासन और सुहाग का भी रंग है, वो दहलीज़ न लाॅंघे तब तक सब संग हैं। घर ने भी तो कई रंगों में होली खेली है, सुख-दुःख के साथी में भी तो कई रंग हैं, धूप बरसात से बचाता बरसो से संग है। प्रकृति ने भी बरसों से कई रंग बिछाए हैं, सावन हरा,पतझड़ पीला,धनुष सात रंग हैं, बसंत बहार रंगमई कई भावनाओं संग हैं। (कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें) अतरंगी दुनिया में सतरंगी सी होली है, रंग पैसों का सब पे चढ़ा ऐसे भी रंग हैं, गरीबी में कहाॅं पैसों में ही सब संग हैं। सबके हो
अज्ञात
पेज-24 अगले दिन सुबह का सूरज उगने को है... पंछियों का कलरव कोई सुखद ख़बर आने का संकेत दे रहा है तभी कथाकार की पहली दृष्टि अचानक "बिजली" पर पड़ी.. ! बिजली.. ! कौन बिजली..? वही जो ताऊ जी के साथ सुधा के घर आ धमकी...! गांव की छोरी..छैल छबीली...आँगन में मुख चमका रही है..!अपने घर से श्रृंगार पेटी लाई है.. श्रृंगार पेटी.. एक टिन चादर की छोटी सी संदूक..! संदूक में ताला..! ताले के अन्दर बोरोप्लस, सरसों का तेल, मुरदाशंख, बड़ी कंधी, ककई, पॉन्ड्स पाउडर, मोंगरा इत्र की शीशी...! छोटा सा आईना..! मटमैले रंग की घाघरा चोली में केशरिया दुप्पटा कमर में कसा हुआ... दाहिने हाथ में गुदना गुदा... " कजरी मेरी मइया ".. बाएं हाथ में बिजली... ! नैलपॉलिस कत्थाई रंग लग रहा है ... मुख में बोरोप्लस लिपा पुता सा दिखता है.. दो चोटी लाल फीते में कान के ऊपर दो गोले बनाये हुये...बालों में मन भर सरसों का तेल चुपड़ा हुआ कानों के पास से बूंद बूंद रिस रहा है... सामने बालकनी में हमारी पुष्पा जी अपने दांतों की परवरिश में लगी बड़े गौर से बिजली का श्रृंगार देख रही हैं.. तभी इतने में जे.एल.फेमिली पुष्पा जी के घर से गुजरते हुये मंदिर की ओर बढ़ रहे हैं..पुष्पा जी बालकनी में मुखमंजन करते हुये तीनों को बड़े गौर से देखती हुई और..तभी उनका ब्रश दांतों की पकड़ से छूटकर नीचे गिर जाता है.. और अचानक पुष्पा जी के ज्ञान चक्षु जाग्रत होते ही... आगे पेज-25 ©R. Kumar #रत्नाकर कालोनी पेज-24 अगले दिन सुबह का सूरज उगने को है... पंछियों का कलरव कोई सुखद ख़बर आने का संकेत दे रहा है तभी कथाकार की पहली दृष्टि अ