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Divyanshu Pathak

ऋग्वेद काल 1500- 1000 ई.पूर्व से लेकर उत्तर वैदिक काल 1000 - 600 ई पूर्व तक हमने- दुनिया को - ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद जैसे चार ग् #Collab #YourQuoteAndMine #तुमतक #पाठकपुराण

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मेरे देश की आत्मा उत्साह और शौर्य का ऊर्जा पुंज है।सभ्यताओं की जननी है।संस्कारों की खान है।त्याग,तपस्या,प्रेम, भक्ति और शक्ति का भण्डार है।हमें ज्ञात है कि- मोहन जोदड़ो,हड़प्पा, धौलावीरा,कालीबंगा, राखीघड़ी और गनवेरीवाला वृहत्तर भारतबर्ष की प्राचीनतम सभ्यताओं में सुमार हैं।1. सार्गोन अभिलेख - 2600 - 1800 ईसा पूर्व का बताते हैं।2. जॉन मार्शल इसे - 3200 - 2750 ईसा पूर्व का।3. माधोंस्वरूप वत्स - 3500 - 2700 ईसा पूर्व कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि दुनिया में सबसे पहले हम आए।

कैप्शन- में पढ़ें ऋग्वेद काल 1500- 1000 ई.पूर्व से लेकर उत्तर वैदिक काल 1000 - 600 ई पूर्व तक हमने- दुनिया को - ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद जैसे चार ग्

N S Yadav GoldMine

#Rajkapoor {Bolo Ji Radhey Radhey} 'सनातन धर्म' एवं 'भारतीय संस्कृति' का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय 'वेद' माना #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
'सनातन धर्म' एवं 'भारतीय संस्कृति' का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय 'वेद' माना गया है। मानव जाति के लौकिक (सांसारिक) तथा पारमार्थिक अभ्युदय-हेतु प्राकट्य होने से वेद को अनादि एवं नित्य कहा गया है। अति प्राचीनकालीन महा तपा, पुण्यपुञ्ज ऋषियों के पवित्रतम अन्त:करण में वेद के दर्शन हुए थे, अत: उसका 'वेद' नाम प्राप्त हुआ। ब्रह्म का स्वरूप 'सत-चित-आनन्द' होने से ब्रह्म को वेद का पर्यायवाची शब्द कहा गया है। इसीलिये वेद लौकिक एवं अलौकिक ज्ञान का साधन है। 'तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये'- तात्पर्य यह कि कल्प के प्रारम्भ में आदि कवि ब्रह्मा के हृदय में वेद का प्राकट्य हुआ।

आत्मज्ञान का ही पर्याय वेद है।

1 वेदवाड्मय-परिचय एवं अपौरुषेयवाद

2 मनुस्मृति में वेद ही श्रुति

3 वेद ईश्वरीय या मानवनिर्मित

4 दर्शनशास्त्र के अनुसार

5 दर्शनशास्त्र का मूल मन्त्र

6 वेद के प्रकार

7 टीका टिप्पणी और संदर्भ

8 संबंधित लेख

श्रुति भगवती बतलाती है कि 'अनन्ता वै वेदा:॥' वेद का अर्थ है ज्ञान। ज्ञान अनन्त है, अत: वेद भी अनन्त हैं। तथापि मुण्डकोपनिषद की मान्यता है कि वेद चार हैं- 'ऋग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदो ऽथर्ववेद:॥'[5]इन वेदों के चार उपवेद इस प्रकार हैं—

उपवेदों के कर्ताओं में

1.आयुर्वेद के कर्ता धन्वन्तरि,

2.धनुर्वेद के कर्ता विश्वामित्र,

3.गान्धर्ववेद के कर्ता नारद मुनि और

4.स्थापत्यवेद के कर्ता विश्वकर्मा हैं।

©N S Yadav GoldMine #Rajkapoor {Bolo Ji Radhey Radhey}
'सनातन धर्म' एवं 'भारतीय संस्कृति' का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय 'वेद' माना

वेदों की दिशा

.।। ओ३म् ।।

प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्‌ तन्मयो भवेत्‌ ॥

ॐ (प्रणव) है धनुष तथा आत्मा है बाण, और 'वह', अर्थात् 'ब्रह्म' को लक्ष्य के रूप में कहा गया है। 'उसका' प्रमाद रहित होकर वेधन करना चाहिये; जिस प्रकार शर अर्थात् बाण अपने लक्ष्य में विलुप्त हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य को 'उस' में (ब्रह्म में) तन्मय हो जाना चाहिये।

OM is the bow and the soul is the arrow, and That, even the Brahman, is spoken of as the target. That must be pierced with an unfaltering aim; one must be absorbed into That as an arrow is lost in its target.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.४ ) #मुण्डकोपनिषद् #mundakopanishad #उपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #वह #him

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

ब्रह्मैवेदममृतं पुरस्ताद्‌ ब्रह्म पश्चाद्‌ ब्रह्म दक्शिणतश्चोत्तरेण।
अधश्चोर्ध्वं च प्रसृतं ब्रह्मैवेदं विश्वमिदं वरिष्ठम्‌ ॥

यह सब कुछ अमृतस्वरूप 'ब्रह्म' ही है, इसके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं; 'ब्रह्म' ही हमारे सम्मुख है, 'ब्रह्म' ही पश्चात् है, हमारे दक्षिण में भी हमारे उत्तर में भी४, हमारे नीचे तथा हमारे ऊपर भी, यह सर्वत्र व्याप्त है। यह सम्पूर्ण अद्भुत विश्व केवल 'ब्रह्म' ही है।

All this is Brahman immortal, naught else; Brahman is in front of us, Brahman behind us, and to the south of us and to the north of us4 and below us and above us; it stretches everywhere. All this is Brahman alone, all this magnificent universe.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.१२ ) #मुण्डकोपनिषद् #upnishad #brahma #सर्वव्यापी #Iternal

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः।
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ॥

वहां न सूर्य प्रकाशित होता है और चन्द्र आभाहीन हो जाता है तथा तारे बुझ जाते हैं; वहां ये विद्युत् भी नहीं चमकतीं, तब यह पार्थिव अग्नि भी कैसे जल पायेगी? जो कुछ भी चमकता है, वह उसकी आभा से अनुभासित होता है, यह सम्पूर्ण विश्व उसी के प्रकाश से प्रकाशित एवं भासित हो रहा है।

There the sun shines not and the moon has no splendour and the stars are blind; there these lightnings flash not, how then shall burn this earthly fire? All that shines is but the shadow of his shining; all this universe is effulgent with his light.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.११ ) #मुण्डकोपनिषद् #upnishad #he #sun #moon #आभा #प्रकाश

वेदों की दिशा

।। ओ३म्  ।।

हिरण्मये परे कोशे विरजं ब्रह्म निष्कलम्‌।
तच्छुभ्रं ज्योतिषां ज्योतिस्तद्‌ यदात्मविदो विदुः ॥

उस परम हिरण्मय कोश में निष्कलंक, निरवयव 'ब्रह्म' निवास करता है 'वह' 'शुभ्र-भास्वर' है, वह 'ज्योतियों' की 'ज्योति' है, 'वही' है जिसे आत्म-ज्ञानी जानते हैं।

In a supreme golden sheath the Brahman lies, stainless, without parts. A Splendour is That, It is the Light of Lights, It is That which the self-knowers know.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.१० ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #स्वयं #self #brahman

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः।
क्शीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन्‌ दृष्टे परावरे ॥

हृदय की सारी ग्रथियाँ खुल जाती हैं, समस्त संशय छिन्न-भिन्न हो जाते हैं, तथा मनुष्य के कर्मों का क्षय हो जाता है, जब उस 'परतत्त्व' का दर्शन हो जाता है, जो एक साथ ही अपरा सत्ता एवं 'परम सत्ता' है।

The knot of the heartstrings is rent, cut away are all doubts, and a man's works are spent and perish, when is seen That which is at once the being below and the Supreme.

( मुण्डकोपनिषद २.२.९ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #हृदय #मुक्ति #परतत्व #परमात्मा #ईश्वर

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

मनोमयः प्राणशरीरनेता प्रतिष्ठितोऽन्ने हृदयं सन्निधाय।
तद्‌ विज्ञानेन परिपश्यन्ति धीरा आनन्दरूपममृतं यद्‌ विभाति ॥

वह मनोमय है, प्राण एवं शरीर का नेता है, जिसने जड़तत्त्व (अन्न) में हृदय को स्थापित कर दिया है, जो स्वयं जड़तत्त्व (अन्न) में सुप्रतिष्ठित है। उसे जानने से ज्ञानीजन (धीर पुरुष) अपने चारों ओर 'उस' (आत्मतत्त्व) का दर्शन करते हैं जिसकी ज्योति सर्वत्र भासित होती है, जो 'आनन्दरूप' एवं अमृत-स्वरूप है।

A mental being, leader of the life and the body, has set a heart in matter, in matter he has taken his firm foundation. By its knowing the wise see everywhere around them That which shines in its effulgence, a shape of Bliss and immortal.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.८ ) #मुण्डकोपनिषद् #upnishad #मन #जीवात्मा

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

यः सर्वज्ञः सर्वविद्‌ यस्यैष महिमा भुवि।
दिव्ये ब्रह्मपुरे ह्येष व्योम्न्यात्मा प्रतिष्ठितः ॥

जो 'सर्वज्ञ' है 'सर्वविद्' है जिसकी पृथ्वी पर यह सब महिमा है यह 'आत्मा' ही है जो इस दिव्य ब्रह्मपुरी में, इस व्योम में प्रतिष्ठित है।

The Omniscient, the All-wise, whose is this might and majesty upon the earth, is this self enthroned in the divine city of the Brahman, in his ethereal heaven.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.७ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #गुरु

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

अरा इव रथनाभौ संहता यत्र नाड्यः स एषोऽन्तश्चरते बहुधा जायमानः।
ओमित्येवं ध्यायथ आत्मानं स्वस्ति वः पाराय तमसः परस्तात्‌ ॥

रथ के चक्र की नाभि में जुडे़ हुए अरों की भाँति जहाँ नाड़ियाँ एकत्रित हो जाती हैं, 'वह' ही है जो अन्तर में विचरण करता है,- 'वही' बहुविध रूप में जन्म लेता है। 'आत्मा' का 'ओम्', के रूप में ध्यान करो, तथा अन्धतमस् से परे उस पार जाने का तुम्हारा मार्ग मंगलमय (स्वस्ति) हो।

Where the nerves are brought close together like the spokes in the nave of a chariot-wheel, this is He that moves within, -there is He manifoldly born. Meditate on the Self as OM and happy be your passage to the other shore beyond the darkness.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.६ ) #मुण्डकोपनिषद् #upnishad #चक्र #chakra #आत्मा #soul #ईश्वर #परमात्म
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