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Sangeeta Patidar
कवि सा मन सोचे जब तुम्हारे लिए तहरीर बन जाती है, यादों में यूँही डूबके अक्सर तुम्हारी तस्वीर बन जाती है। याद तुम्हीं को करती हूँ जब-जब लिखना भूल जाती हूँ, आड़ी-तिरछी लकीरों से भी जैसे तक़दीर बन जाती है। तन्हा लम्हों में ख़ुद को बहलाती हूँ ख़यालों के शोर से, मुश्किल ख़ुद-ब-ख़ुद जैसे उम्दा तदबीर बन जाती है। तुम्हारी बे-ख़याली से भी जाने क्यों दिल रूठता नहीं, होती नहीं है मुलाक़ात, फिर भी तशहीर बन जाती है। कुछ न कुछ ख़ास तो ज़रूर होगा हमारे दरम्याँ 'धुन', यूँ ही तो नहीं बे-वजह ये ग़ज़ल शब्बीर बन जाती है। तदबीर- तरकीब तशहीर- रुसवाई शब्बीर- सुन्दर ♥️ Challenge-671 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :)
अज्ञात
पेज-78 अगले दृश्य में दिखता है- दिव्या पहुंची सुधा के घर-दीदी मैंने स्टोरी लिखने के चक्कर में शॉपिंग ही नहीं की.. मेरी मदद करिये ना... शायद कुछ चाहिए था दिव्या को मगर शॉपिंग तो सुधा ने भी नहीं की थी... कुछ श्रृंगार के सामांन की आवश्यकता सुधा को भी थी. इसलिये दोनों पहुंची राखी जी के घर ... वहाँ ढूंढा तो मिला नहीं क्यूंकि राखी जी भी अभी तो मायके से आये थे.. और शॉपिंग उन्होंने भी नहीं की.... फिर तीनों अपने अंतिम और निश्चित ठिकाने पर पहुंचे और सीधे दरवाज़े से होते हुये कमरे में दाखिल हुआ सबकी नज़र पुष्पा जी पर... बच्चों को तैयार कर करके Ac में बिठाते जा रहे हैं....पुष्पा जी के साथ असिस्टेंट बनी शिल्पा, बच्चों को ड्रेस-अप करती आयशा.. और अगली मेक अप गर्ल तान्या.. सबने देखा तो पुष्पा को तकलीफ देना उचित नहीं समझा... आगे कैप्शन में.. 🙏 ©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी पेज-78 दिव्या और सुधा पुष्पा जी की ड्रेसिंग उठा लाईं... और खुल गया खजाना... अपने अपने अनुसार साड़ी पिन, लिपस्टिक,मैचिंग के
अज्ञात
पेज -32 कथाकार ने देखा, राकेश ने अपना प्रस्ताव रखा और वर पक्ष से इजाज़त लेकर लौटने लगा.. तभी विशाल जी यशपाल जी के साथ उनसे अकेले में कुछ जरूरी बात करने बाहर आये और यशपाल जी ने कहा-" राकेश जी यूँ तो आपकी बात में काफ़ी दम है, पर आपको नहीं लगता ये सब बहुत जल्दी हो रहा है..? राकेश-जी यशपाल जी, मैं आपकी भावनाओं को समझ सकता हूं और आप जिस ओर इशारा कर रहे हैं वहाँ तक भी पहुंच रहा हूं लेकिन आप पूरा विश्वास रखें इससे बेहतर जोड़ी कोई और हो ही नहीं सकती..! मानक के परिवार ने सारी जबाबदारी नोजोटो परिवार को सौंप दी है मानक की इतनी सारी बहनों को सौंपी है विवाह की बागडोर.. और हम रत्नाकर कालोनी के लोग हैं जो सबसे बढ़िया होगा उसे ही अंजाम देंगे..! विशाल जी-वो तो ठीक है जनार्दन,, मान गए तुम्हारी इस बात को लेकिन.. इतनी जल्दी सब कुछ कैसे हो पायेगा.. शाम को सगाई एक सप्ताह में शादी.. आखिर कुछ तैयारियां भी तो करनी होती हैं...? राकेश-मित्र जॉन, यथार्थ से बाहर निकलिए.. ! कल्पनाओं में आइये.. भावों में आइये..! यशपाल जी-कमाल है ना..!, अब तक तो लोगों को कहते सुना है.. यथार्थ में आओ.. कल्पनाओं से निकलो.. मगर ऐसा तो पहली बार सुना स्ट्रेंज.. बट.. लवली.. ! राकेश- आपकी गरिमामयी उपस्थिति से हम धन्य होंगे यशपाल जी.. साँझ को पधारिये पलकें बिछाये आपकी राह देखूंगा..🙏 विशाल जी- अर्रे जनार्दन.. कैसी बातें करते हो याररर.. पलकें तो हम बिछाएंगे वधू पक्ष के स्वागत में.. ! बस थोड़ी सी फिक्र हो रही थी. कैसे सब कुछ कल्पनाओं में मेनेज हो पायेगा, कहीं आनन फानन में कोई त्रुटि ना रह जाये..! राकेश - मेरे सरताज़.. आप भूल रहे हैं ये विवाह नोजोटो पर हो रहा है,, ये विवाह नोजोटो रचनाकारों का एक दूसरे पर अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक और उदाहरण है.. ये "भाव प्रधान विवाह" है ना मित्र..! और फिर रही तैयारियों की बात तो जहाँ आप हो. यशपाल जी हैं A.k.शर्मा जी, जे पी लोधी साहब, हिसाम जी, संदीप शब्बीर जी, देवेश जी, सुमित जी, सुब्रो जी,आनंद झा, हिमांशु, जी हैं वहाँ चिंता जैसा कुछ कहां हो सकता है, विवाह की तैयारियों के लिये हमारे अर्श जी,साधना बहन, चंद्रवती बहन चंद्रमुखी जी, सुधा पुष्पा, दिव्या, राखी जी, महाकाल भक्त शालिनी जी, प्राजक्ता, शिल्पा, पारिजात,आयशा,तान्या और जो अभी रह गये हैं वो सब भी मानक के विवाह में आकर जब एक जुट होकर आगे आयेंगे तो ये विवाह अपने आप में यादगार बन जायेगा..! यही तो इस विवाह की विशेषता होगी..! यशपाल जी-कैसी विशेषता राकेश जी..! राकेश-मित्र..! विशेषता ये कि रक्त संबंधी ना होते हुये भी एक दूसरे से कभी मिले नहीं फिर भी.. हम सभी एक दूसरे के लिये कितने विश्वासी और समर्पित हो सकते हैं.. ये विवाह सबको प्रेरित करेगा.. कि अगर हृदय में निःस्वार्थ प्रेम भावना हो तो फिर कुछ करने के लिये किसी और रिश्ते की आवश्यकता नहीं होती..! ये हम रचनाकारों का काव्यकारों का जो परिवार है.. ये भावनिर्मित जो कालोनी है केवल और केवल हमारे विशुद्ध प्रेम की परिचायक है जहां हम एक दूसरे के सुख दुःख के सच्चे साथी हैं..! फिर आप सब हो तो सब सम्भव है.. वक़्त पड़ा तो पंडाल भी हम ही बनाएंगे.. भोजन भी हम ही बनाएंगे.. परोसेंगे भी हम और सबकी पत्तल भी हम उठाएंगे...क्यूंकि हम आत्मनिर्भर हैं. और अपने परिवार के लिये कुछ भी करने से पीछे नहीं हटेंगे..! यशपाल जी-तब तो खूब मज़ा आयेगा जनार्दन जी..! विशाल जी- जाने क्यूँ पर मुझे लगता है हम सबका पिछले जन्मों का कोई अधूरा रिश्ता इस जन्म में पूरा होकर रहेगा..! राकेश-बिलकुल पूरा होगा मित्र.. चलिए आप भी तैयारी करिये मैं भी वहाँ व्यवस्थाएं देखता हूं..! और शाम को जॉन के साथ जॉनी होना ही चाहिए ये भार आप पर रहा मित्र..! विशाल जी-वादा.., ! 👍👍 यशपाल जी-तो फिर शाम का इंतजार है प्रिय मित्र. 🙏 राकेश-अहोभाग्य.. आपकी मित्रता सर आखों पर.. अब जय सियाराम..! विशाल जी+यशपाल जी- जय सियाराम 🙏🙏 पेज-33 ©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी पेज -32 कथाकार ने देखा, राकेश ने अपना प्रस्ताव रखा और वर पक्ष से इजाज़त लेकर लौटने लगा.. तभी विशाल जी यशपाल जी के साथ उनसे
अज्ञात
पेज-4 उनको सलाम कर कथाकार आगे चला तो संदीप जी के निवास पर ध्यान जा पहुंचा.. जहाँ संदीप जी सूर्यनमस्कार की प्रतीक्षा में आसमान की ओर निहार रहे थे हाथ में कागज़ कलम शोभायमान थी, मानो कोई रचना की प्रेरणा हो रही हो... आगे बढ़ते हुये कथाकार ने देखा जे पी साहब जो अपनी प्रकृतिवादी कविताओं के लिये नोजोटो में ख़ासी पहचान रखते हैं वो प्रकृतिप्रेम में निमग्न अपने आँगन की फुलवारी में लगे पुष्पगुच्छों को संवार रहे हैं, कथाकार आगे चला तो चंद्रवती जी सुबह सुबह देव आराधना में निमग्न "राम रक्षा स्त्रोत" का पाठ कर रहे थे जो बरबस ही कथाकार के पैरों को बढ़ने नहीं दे रहा था, किन्तु समयाभाव के कारण कथाकार ने दूर से ही प्रभु वंदना कर आगे बढ़ चला.. वहीं साधना जी अपने टेबल पर शैक्षणिक गतिविधियों में रत दीख पड़ीं.. अब कथाकार अपने राजदुलारे मानक के घर तक आ पहुंचा.. मानक जो गऊ सेवा में तत्लीन रहता है, जिसे अपने घर में ही वैकुण्ठ नज़र आता है सुबह उठते ही अपने घर को चमकाते हुये बार बार अपना चन्द्रमुख शीशे में देख रहा है.. कहीं कोई पिम्पल तो नहीं आ गया, शायद वैवाहिक स्वप्न अब मानक को सताने लगे हों...! कथाकार जोर से हंस पड़ा और आगे बढ़ता चला..एक के बाद एक अपने सभी अपनों हिमांशु ,आनंद,संदीप जी शब्बीर,शाम्भवी,अर्श जी, रूह जी, प्रिया गौर, प्रिया दुबेके साथ नवागंतुक रचनाकार जिन्होंने भी इस कॉलोनी में अपना निवास चयन किया उन तमाम रचनाकारों के फ्लेट से विचरण/ निरीक्षण कर अंततः कथाकार अपनी कालोनी का दिव्य आनंद लेते हुये अपने निवास तक आ पहुंचा। अब आगे-5 ©R. Kumar #रत्नाकर कालोनी पेज-4 उनको सलाम कर कथाकार आगे चला तो संदीप जी के निवास पर ध्यान जा पहुंचा.. जहाँ संदीप जी सूर्यनमस्कार की प्रतीक्षा में आसम
pinkcity voice
Shaikh Shabbir
खुशी क्या होती है इस पेड़ से पूछो जब तक इसके पास हरियाली थी तब तक ये भी हरा भरा था आज देखो सुख कर जमीन का बोझ बना पड़ा है इस पेड़ से हमे एक बात मालूम पड़ती है जिंदगी में हर इंसान से मोहब्बत करो सबसे मिलते जुलते रहो आप अगर किसी को रोज कोसेंगे क्या पता वो भी अंदर से टूट जाए और आपको पता तक ना चले जब तक वो पेड़ हरा था अपने आस पास को हरियालियो से भरा पड़ा था वैसे ही जिस इंसान से आप मोहब्बत करते हो उसे मत कोसो क्या पता कभी वो भी आपको छोड़ जाए इसलिए हर इंसा की कद्र करनी चाहिए ©Shaikh Shabbir शब्बीर शेख
Tammar Naqvi Rizwan
شبّیر کے خیمے میں اک شور قیامت ہے دل غم سے نہ پھٹ جائے عبّاس کی رخصت ہے رضوان حیدر تمّار . ©Tammar Naqvi Rizwan शब्बीर के ख़ेमे में इक शोर ए क़यामत है दिल ग़म से ना फट जाए अब्बास की रुख़सत है
Shaikh Shabbir
क्यू कि तू अपनी खुबिया ढूंढ खामियां निकाल ने केलिए लोग है ना अगर कदम रखना है तो आगे रख पीछे खींचने केलिए लोग हैं ना सपने देखना है तो ऊंचा देख नीचा दिखाने के लिए लोग है ना तू अपने अंदर की चिंगारी भड़का जलने केलिए लोग है ना प्यार करना है तो खुद से कर नफरत करने केलिए लोग है ना जिंदगी को आगे बढ़ाते चल कब्र में लेजाने केलिए लोग हैं ना शब्बीर शेख ©Shaikh Shabbir I am शब्बीर बाबा #Mic