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Niaz (Harf)
26 jan republic day 75वें गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं! आज सिर्फ एक दिन की छुट्टी या देशभक्ति का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह सोचने का समय है कि हमारे देश को महान क्या बनाता है। यह वह दिन है जब हमने अपना संविधान अपनाया था, नियमों का एक सेट जो दर्शाता है कि एक स्वतंत्र भारत का सपना क्या है। तीन रंगों वाला झंडा दिखाता है कि कैसे हम सभी अलग-अलग हैं लेकिन फिर भी एक साथ हैं, हमारी आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों को धन्यवाद। एक भारतीय के रूप में, हमें अपने संविधान में महत्वपूर्ण विचारों का पालन करना चाहिए: निष्पक्षता, स्वतंत्रता, समानता और एकजुटता। आइए उन लोगों से सीखें जिन्होंने हमारे भविष्य की योजना बनाई और एक ऐसा देश बनाने का वादा किया जहां सभी के अधिकार और सम्मान सुरक्षित हों। जय हिन्द! गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं! ©Niaz (Harf) 75वें गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं! आज सिर्फ एक दिन की छुट्टी या देशभक्ति का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह सोचने का समय है कि हमारे देश को महान
Prince_" अल्फाज़"
एयरपोर्ट पर बैठी वो नई नवेली दुल्हन जिसके हाथ मे चमक रही थी मेहंदी लाल पीली इंतेज़ार करती उसकी वो आंखे नीली नीली उसका जिसने कहा था, तुम ठहरो में बस अभी आता हूं। प्यार के रंगों में सजी थी वो प्यारी रंगीली पिया की खुश्बू थी उसमें थोड़ी भीनी भीनी इंतेज़ार करती उसका जिसने उससे कहा था, तुम थोड़ा ठहरो में अभी आता हूं। लम्हा लम्हा बोझ बनाता गया इतनी देर हो गयी ना जाने वो कहा गया? रात घिर गई आंखे इंतेज़ार में पत्थरा सी गयी उसके जिसने कहा था, तुम ठहरो में अभी आता हूं। सालो बीत गए ना वो आया न उसकी कोई खबर आई याद करते ही आंखे कर लेती है वो अब अपनी गीली गीली उसके लिए जिसने कभी उससे कहा था, तुम ज़रा ठहरो में अभी आता हूं। ©Prince~"अल्फ़ाज़" इंतेज़ार में बैठी दुल्हन . . . . . #SAD #poem #Fake #Love
Vyas Dhamali Baba
Amit Thakur
Shivam Thakur
'सपना आया रात को आखें खुली थी मेरी। बंद थी तकदीर युल्हन सजी सी थी मेरी। । जिदगी आसान तुमने और आसान बना दी। वक्त खराब हुआ तुमने नजरें छुपाली। । प्यार के वो फसले बड़ से गए। तुम मानो या ना मानो मंजिल तुम ही तो थी मेरी। । सपना आया रात को आंखे खुली सी थी मेरी। बंद थी तकदीर दुल्हन सजी सी थी मेरी । । ©Shivam Thakur #दुल्हन
damm
Wo Shaam जानते हो वो दरवाज़ा अब भी खुला है, जहां हल्की सी दुपहरी शाम हमें देखती थी तुम एक टक निहारे मुझे देखती और मैं बादलों के धुंए में गुम हो जाता था वो नीले रंग का चोला पहनकर, झूमर सा लगती थी दुल्हन सजी रात के सफर को तैयार जिसका उबटन अभी तक उतरा ना हो वो कपोल बन खिलता गुलाब मैं उसके बालो में लगा देता था हल्की हल्की ठंड में लाल सूरज खत्म होने को होता पर हमारी बात वक्त को निचोड़े रात के पहर को चुनौती देती थी ©Naveen Chauhan Wo Shaam जानते हो वो दरवाज़ा अब भी खुला है, जहां हल्की सी दुपहरी शाम हमें देखती थी तुम एक टक निहारे मुझे देखती और मैं बादलों के धुंए में ग
Dilshad Khan Deraiya
Manak desai