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Shalini Nigam
अपने "जीवन" की "डोर" अपने "हाथों"में रखो°° क्योंकि.. ऊपरवाले ने हमें "इंसान" बनाया है, "कठपुतली" नहीं.. ©Shalini Nigam #कठपुतली #हाथों #Shayari #Love #Life #Nojoto
CHOUDHARY HARDIN KUKNA
Nandita Tanuja
Nisheeth pandey
शीर्षक-घड़ी की टिक टिक 🤔🤔🤔🤔 समय केवल घड़ी तक ही सीमित नहीं रह जाती/रह पाती। घड़ी की टिक टिक के साथ समय भिन्न भिन्न प्रकार के भाव का बीजारोपण करती है ।। तर्क से कुतर्क तक, प्रेम से घृणा तक । समय हर प्रकार के भाव का पेड़ बनाती जीवन के अंतिम छन तक।। सौंदर्य से कामवासना तक, अध्यात्म से सन्यास तक। व्यवहार से व्यभिचार तक, ज्ञान से विज्ञान तक ।। समय एक बहुत सशक्त हथियार है। समय की मार तीर तलवार से भी अधिक अचूक है ।। समय इतिहास बनाती है। लेखनी समय की लिखी इतिहास छुपा ले अगर ।। इतिहास की लेखनी मोहताज अगर कीमत की जाए तो , ऊथल पुथल मचाती है सृस्टि के धरा पर।। समय विषैला भी है। समय औषधि सा सकूँ भी है ।। समय गृहस्त का छत बनाना सिखाती है। समय सन्यास का वन भी ले जाती है ।। समय हंसाती है, गुदगुदाती भी है। समय डराती है, रातों की नींदें उड़ाती भी है ।। समय के वार बड़े कोमल, बड़े तीखे भी हो सकते हैं। समय सौम्यता है तो तीव्रता अंगार भी है ।। समय होंठों पे लाली लाती है, दिल की धड़कन धड़काती है । तो समय दिल की धड़कनें भी रोक जाती है ।। बहुत बड़ी जादूगरनी है घड़ी की टिक टिक । भांति भांति के नज़रबन्द का भ्रम पैदा करती है ।। घड़ी की टिक टिक प्रकृति का समय ही नही बताती । इंसान को कठपुतली सा टिक टिक कराती है ।। 🤔#निशीथ🤔 ©Nisheeth pandey #samay शीर्षक-घड़ी की टिक टिक 🤔🤔🤔🤔 समय केवल घड़ी तक ही सीमित नहीं रह जाती/रह पाती। घड़ी की टिक टिक के साथ समय भिन्न भिन्न प्रकार के भाव का बी
Sangeeta Kalbhor
मेरी हर धड़कन.. तुम कहाँ जानते हो मेरे अंदर की पीड़ा को तुम्हें तो मैं खुश नजर आती हूँ तुम्हें तो मैं कठपुतली सी लगती हूँ मेरा रुदन कहाँ तुम जान पाये हो उतना निकट तुम मेरे नही आये हो तुमसे नाता निभायेंगे तो कैसे निभायेंगे भरे बाजार में क्या तुम मुझे अपनाओगे लाज शरम की करती हूँ मैं रखवाली संस्कार और सभ्यता की मैं हूँ प्याली मोहब्बत तुमसे और तुमसे ही रहेगी लेकर नाम तुम्हारा मेरी हर धड़कन पुकारेगी..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #Chhavi मेरी हर धड़कन.. तुम कहाँ जानते हो मेरे अंदर की पीड़ा को तुम्हें तो मैं खुश नजर आती हूँ तुम्हें तो मैं कठपुतली सी लगती हूँ मेरा रुदन क
Arora PR
जिंदगी के पास अपना कोई वज़ूद हैँ ही नहीं वो तों 'उसकी ' अंगुलियों पर थिरकती रही हैँ हमेशा क़ी तरह ये जिंदगी खुद ही किरदार हैँ अपनी कहानी का ता उम्र वो थिरकती रही अपने किरदार के साथ एक कठपुतली क़ी तरह ©Arora PR कठपुतली.. क़ी तरह
Vickram
एक कठपुतली से ज्यादा इंसान कुछ नहीं है,, कभी तकदीर ने कभी हालातों ने खूब नचाया कयी बार टूटा भी ये कितनों के हाथों से गिर कर नचाता वही है हम तो समझ भी कहां पाते हैं ©Vickram कठपुतली ही तो है,,
Umme Habiba
Ravindra Singh
माना कि तेरी कठपुतली है हम... माना कि तेरी कठपुतली है हम , पर इतना भी क्या नचाना कि दर्द सहा ही ना जाये । तेरी जब मर्ज़ी होती है बुला लेता है हमारे अपनों को , बता हम कैसे जियें, जिनके बिन हमसे रहा ही ना जाये । अगर देनी ही है ज़िंदगी तो पूरी दिया कर ना , क्यूँ छीन कर आधी में ही मन को ख़राब करता है । मिलने को तू मिला देता और अपनों से , पर नहीं कोई रिश्ता जो उनकी यादों के घाव का भराव करता है। तू मेरे सामने ही मेरे ६ साल में ६ हम उम्र को अपने पास बुला चुका है । मैं अभी भी सिसकियाँ लेता हूँ उनकी याद में , चाहे भले ही तू उन्हें भुला चुका है । मुझसे ये तेरी पत्थर दिली सही नहीं जाती , होता होगा तू रहनुमा , पर मुझसे ये बात कही नहीं जाती। अगर वाक़ई में तू मेरे इन शब्दों को पढ़े , तो इन पर गौर फ़रमाना । होकर देखना जुदा वर्षों तक छोड़, कुछ पल के लिये ही किसी अपने से, सह जुदाई फिर मेरे पास और आना। मैं यकीनन कह सकता हूँ , तू भी टूट जाएगा , जिस तरह हम रूठते हैं तुझसे , तू भी ख़ुद से रूठ जाएगा । मुझे नहीं दुखाना तेरा दिल , आख़िर तू पूरी दुनिया चलाता है । वस इतनी सी विनती है ,देता है तो उम्र पूरी दिया कर , इससे ज़्यादा मुझे तुझसे और कुछ दुखाने तेरा दिल कहा भी ना जाये । माना कि तेरी कठपुतली है हम , पर इतना भी क्या नचाना कि दर्द सहा ही ना जाये । ©Ravindra Singh माना कि तेरी कठपुतली है हम... माना कि तेरी कठपुतली है हम , पर इतना भी क्या नचाना कि दर्द सहा ही ना जाये । तेरी जब मर्ज़ी होती है बुला लेत