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Suyash
हर रोज हर पहर नुक्कड़ों पे धुंए उड़ते देखा है मैंने , एक सिगरेट से तो अनेकों लबों को छूते देखा है मैंने , अक्सर युवाओं को खुलेआम धुंए उडाते देखा है मैंने , धुंए के इस जानलेवा लत में बहुतों डूबते देखा है मैंने, कई प्रतिबंधित क्षेत्रों में भी ये धुएं उड़ते देखा है मैंने, सुट्टे जैसे नामों से भी इसे सम्बोधित करते देखा है मैंने , एक हाथ मे चाय दूसरे में सिगरेट तो अक्सर देखा है मैंने , धुंए को फ़ेफ़डे में रखने की कला अबतक ना जाना मैंने , ना जाने क्या मिलती होगी इस जहरीली धुँए अंदर लेने से , कॉलेज के इन दिनों में ऐसा अक्सर होते देखा है मैंने , यहाँ तो रोज़ नए नए लोगों को लत लगते देखा है मैंने !!😶 Part 2 कविता : हां , मैंने देखा है से 🙂 [ सभी शब्द सच्ची घटना पर आधारित ] हर रोज हर पहर नुक्कड़ों पे धुंए उड़ते देखा है मैंने , एक सिगरेट
Part 2 कविता : हां , मैंने देखा है से 🙂 [ सभी शब्द सच्ची घटना पर आधारित ] हर रोज हर पहर नुक्कड़ों पे धुंए उड़ते देखा है मैंने , एक सिगरेट #Humour #cigratte #yqlife #धूम्रपान #suyashthoughts #suyashquotes #suyashpoem
read moreParasram Arora
ये रेखाएं ही तो विभाजित करती है राष्ट्रों की ठोस सरहदों क़ो जबकि अविभाज्य धरा पर खड़े है सभी राष्ट्र अपने अपने झ डो क़ो हाथ में लिये ज़ो फैला रहे है नफ़रत के सन्देश और बो रहे है बीज़ सर्व भक्षीन्नी ज्वाला के ज़ो बजा रहे है संहार के बिगुल अपनी अपनी सरहदों पर ......यही है वे राष्ट्र ज़ो जीवन के अनुरागी चित्त क़ो विद्रोह की ज्वाला में धकेलने के लिये उत्तरदाई है बिवश्ता देखे इंसान की ज़ो सरहद के उस पार जाना चाहता है लेकिन उसे जानेनही दिया जाता और उस पार के सुरभित सुमनो की गंध क़ो. सरहद के इस तरफ आने नही दिया जाता ©Parasram Arora खींची गई रेखाएं... और प्रतिबंधित सीमाये
खींची गई रेखाएं... और प्रतिबंधित सीमाये #कविता
read moreParasram Arora
क्या तुम शांति क्षेत्रः ढूंढ रहे हो? तो अच्छा हो अगर तुम एकअदद कवि को ढूंढो चाहे वो सात समुन्द्र पार ही क्यों न रहता हो तुम उसके गीत सुनो पर तुम न कोई संदेह उठाओ न तुम्हरे होठो पर कोई प्रश्न खड़ा हो बस समझलो तुमने शांति क्षेत्र ढूंढ लिया हैँ औऱ अब तुम शांत हो निस्पंद हो हमेशा के लिए शांति क्षेत्र.......
शांति क्षेत्र.......
read moreKumar Manoj Naveen
*कंटोमेंट क्षेत्र में ड्यूटी* संक्रमित इलाके में सतत ड्यूटी, मौत का है डर, चारो तरफ मातम है पसरा, न जाने कौन और कब? चिन्तित परिवार ,पूछे कब आओगे घर, दरअसल पूछने से मतलब,हम खतरे से तो है बाहर। बात कहने में अच्छी लगती है, बीर योद्धा ने जीवन किया अर्पण, वास्तव में उनके बीवी- बच्चों से पूछो, जिनके अपने लौट के न आए घर। खैर मजबूरी ही सही, कर्तव्य पथ पर है अग्रसर, पीछे नहीं हटेंगे, अपनी जान लगा देंगे फर्ज पर। जान देने से यदि संक्रमण होती बेअसर, काश दो-चार जाने होती,बार-बार करते अर्पण। ***नवीन कुमार पाठक *** #संक्रमित क्षेत्र में ड्यूटी #