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Shankar kamble

आल्या वळीवाच्या सरी
 माती न्हाती धुती झाली
 बीजं रुजलं काळजात
 सांज शहारून आली

 भेगाळल्या जीवा
 असं शिंपण सुखाचं
 माळ शिवारात फुलं
 आता सपान मोत्याचं

 वणव्यात वैशाखाच्या
 सुखं करपून गेलं
 करणी त्या परमेशाची
 डोळं नभाचं पाणावलं

 ठाई ठाई पांढरीत
 मेघराशी बरसल्या
 सुपाएवढं काळीज
 बळीराजा हरखला

 फुट मनाला अंकुर
 हात जोडी धरतीला
 सुखं पेरलं मातीत
 सारा भार देवा तुला

 ओटी भरली ओंजळ
 पिकं येवो मायंदळ
 सोन्या मोत्याची ही रास
 आता भरू दे हे खळ

©Shankar kamble #पाऊस 
#पाऊसधारा 
#शेतकरी 
#पेरणी
#शेती 
#वळीवाचापाऊस 
#धारा 
#पाणी_पाऊस_देगा_देवा

AMAN RAJ SINHA

धूल .... #nojotophoto

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 धूल ....

अनाहत....

धूल..... #nojotophoto

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 धूल.....

Sad Shayari in hindi

#धूल...

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 #धूल...

Rashmi singh raghuvanshi "रश्मिमते"

#धूल

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कपड़े की सिलवटे
और छत की धूल
कुछ समय बाद
ख़ुद ही ठीक हो जाती है
लेक़िन
माथे की सिकन और
जिंदगी की धूल
साफ करते नही हटती।

©rashmi singh raghuvanshi #धूल

Anjali Nigam

#धूल

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माधुरी शर्मा "मधुर"

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Parasram Arora

धूल......

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गीता और  कुरआन पर  मोटीपरत धूल की चढ़  चुकी है
किस कदर  धर्म  और ग्रंथो की धज़्ज़ीयां उड़ रही है

कई बार लगा चुके है हम  आग कभी मस्जिदों  मे कभी शिवालों मे
इबादत तो  केवल  दिखावे  की  हो  रही है

हर तरफ खून खराबा  फरेब और  जालसज़ी  हो रही है
ये  दुश्मनी भी हमें न जाने  क्या क्या रंग. दिखा रही है

ज़ो जवाब  हमने दिए... अच्छे  लगे थे जिंदगी को
फिर क्यों  जिंदगी की  रोज नए नए   सवाल पूछने की
आदत जा नहीं  रही है

हमे  जरूरत थीं  एक  अच्छी साफ सुंदर  जिंदगी की 
पर ज़ो मिली - बदरंग है वो  ईतनी कि  हमें आँख 
बंद करने की जरूरत पड़ रही है

©Parasram Arora धूल......

Himanshu garg

धूल #काफ़िर

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मेरे बेइंतहा इश्क़ की अर्जियां
और तेरी वो रोज की खुदगर्जियाँ
 कभी ना खत्म होने वाली रुशवाईया 
और तेरी वो बेवजह की मनमर्जियां
सब आज फिजूल हो चली है मेरे लिए
तू भी फक़त धूल हो चली है मेरे लिए
अब परवाह नही मुझे तेरी गुस्ताखियों की
तू सिर्फ एक भूल हो चली है मेरे लिए।
#काफ़िर धूल

SamEeR “Sam" KhAn

#धूल

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फिर दिल के आईने में उतरने लगी हो तुम
शीशे की धूल उड़ा के सँवरने लगी हो तुम 

मेरे लिये तो पंख से हल्की हो आज भी 
कुछ लोग कह रहे थे कि भरने लगी हो तुम 

ये रूप ,ये लचक ,ये चमक ,और ये नमक 
शादी के बाद और निखरने लगी हो तुम 

मैं कोएले की तरह सुलगने लगा हूँ जान 
लोबान के धुएँ सी बिखरने लगी हो तुम 

अक्सर मैं देखता हूँ कि शीशे के शहर से 
पत्थर की पालकी में गुज़रने लगी हो तुम 

किससे कहूँ  कि रूह के कागज़ पे आज कल
चिंगारियों   की तरह ठहरने लगी हो तुम

गीली है मेरी आँख तो क्या दिल के देस में 
पानी के रास्ते से उतरने लगी हो तुम ?

...

©SamEeR “Sam" KhAn #धूल
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