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Nitin Kr Harit
जय श्री राम हे राम तू तो अनन्त है, नहीं तेरा कोई अन्त है। जल में है तू, थल में है तू, अचल में तू, चल में है तू। भक्त के लिए हे राम तू, कई बार धरती पे आ
नितिन कुमार 'हरित'
हे राम तू तो अनन्त है, नहीं तेरा कोई अन्त है। जल में है तू, थल में है तू, अचल में तू, चल में है तू। भक्त के लिए हे राम तू, कई बार धरती पे आ
HINDI SAHITYA SAGAR
तू ही पर, तू ही परवाज़ है, तू ही मोह, तू ही मोहताज़ है, तू ही मन, तू ही मनराज है, तू ही हम, तू ही हमराज़ है। ©HINDI SAHITYA SAGAR #MainAurMaa तू ही पर, तू ही परवाज़ है, तू ही मोह, तू ही मोहताज़ है, तू ही मन, तू ही मनराज है, तू ही हम, तू ही हमराज़ है।
HINDI SAHITYA SAGAR
तू ही सुर, तू ही साज है, तू ही तख़्त, तू ही ताज है, तू ही अंत्य, तू ही आगाज़ है, तू ही ज़ुबाँ, तू ही आवाज़ है। ©HINDI SAHITYA SAGAR #Gulaab तू ही सुर, तू ही साज है, तू ही तख़्त, तू ही ताज है, तू ही अंत्य, तू ही आगाज़ है, तू ही ज़ुबाँ, तू ही आवाज़ है।
HINDI SAHITYA SAGAR
तू ही बसंत, तू ही बहार है, तू ही घर, तू ही घरबार है, तू ही जमीं, तू ही संसार है, तू ही दर, तू ही दरबार है। ©HINDI SAHITYA SAGAR तू ही बसंत, तू ही बहार है, तू ही घर, तू ही घरबार है, तू ही जमीं, तू ही संसार है, तू ही दर, तू ही दरबार है। #Hindi #hindisahityasagar
HINDI SAHITYA SAGAR
तू ही हया, तू ही नाज़ है, तू ही दया, तू ही लाज है, तू ही कल, तू ही आज है, तू ही दुआ, तू ही नमाज़ है। ©HINDI SAHITYA SAGAR तू ही हया, तू ही नाज़ है, तू ही दया, तू ही लाज है, तू ही कल, तू ही आज है, तू ही दुआ, तू ही नमाज़ है। #hindi #hindisahityasagar
HINDI SAHITYA SAGAR
तू ही सुर, तू ही साज है, तू ही तख़्त, तू ही ताज है, तू ही अंत्य, तू ही आगाज़ है, तू ही ज़ुबाँ, तू ही आवाज़ है। ©HINDI SAHITYA SAGAR तू ही सुर, तू ही साज है, तू ही तख़्त, तू ही ताज है, तू ही अंत्य, तू ही आगाज़ है, तू ही ज़ुबाँ, तू ही आवाज़ है। #Hindi #hindisahityasagar #poem
Mohan raj
Shivank Shyamal
नज़्म- ‘तू’ हसरत भी तू, तू ही दिललगी, तू चाहत भी है, तू ही हमनशी, तू ही रात है, तू ही शाम है, बारिश भी तू, तू ही कपकपी। तू भंवर है, तूफ़ान भी है, समुद्र तू, तू ही है नदी। तू भूख है, तू ही प्यास है, तू ही जीत है तू ही ख़ुदख़ुशी। तू धूप है, तू ही छांव है, बदली भी तू, तू ही गुनगुनी। तू शहर है, तू ही गांव है, लहज़ा भी तू, तू ही लखनवी। तू सुई है, कतरन भी तू, धागा भी तू, तू ही रेशमी। तू तड़प है, तू ही तलब है, तू आरज़ू, तू ही तिश्नगी। तू सोच है, तू विचार है, आंसू भी तू, तू ही शगुफ़्तगी। तू नर्म है, तू ही सुर्ख है, लब भी तू, तू ही शबनमी। तू एक है, तू ही ख़ास है, तू प्रेम है, तू ही आशिकी। तू मीत है, तू ही प्रिय है, मेरा साथ तू, तू ही है ख़ुशी। तू जिस्म है, तू ही रूह है, मेरी राह तू, तू ही बंदगी। तू ज़िक्र है, तू ही फ़िक्र है, चिंता भी तू, तू ही दिलबरी। तू हींग है, हल्दी भी है, शरबत भी तू, तू ही चाशनी। तू अकाश है, तू पाताल है, तू ये जहां, तू ही तुग़लकी। तू शांत है, तू ही शोर है, मंज़र भी तू, तू कयामती। तू रंग है, तू ही रूप है, मेरी नज़्म तू, तू ही शायरी। तू मैं भी है, मैं तुम भी हूं, श्यामल भी तू, तू ही श्यामली। ©Shivank Shyamal नज़्म- ‘तू’ हसरत भी तू, तू ही दिललगी, तू चाहत भी है, तू ही हमनशी, तू ही रात है, तू ही शाम है, बारिश भी तू, तू ही कपकपी। तू भंवर है, तूफ़ान