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Shivank Shyamal
ढूंढता हूं मैं तुझे, और तू मिल रही है धूल में। छोटी छोटी ख़्वाहिशें भी खिल रहीं हैं धूल में।। है! ये लंबा रास्ता, जो चुटकियों में नप रहा। कामगारों की ये किस्मत छिल रही है धूल में।। Shivank Srivastava 'Shyamal' ढूंढता हूं मैं तुझे, और तू मिल रही है धूल में। छोटी छोटी ख़्वाहिशें भी खिल रहीं हैं धूल में।। है! ये लंबा रास्ता, जो चुटकियों में नप रहा। क
ढूंढता हूं मैं तुझे, और तू मिल रही है धूल में। छोटी छोटी ख़्वाहिशें भी खिल रहीं हैं धूल में।। है! ये लंबा रास्ता, जो चुटकियों में नप रहा। क #Hindi #Shayari #yqbaba #urdu #labour #Labourday #lockdown #lockdowndiary
read moreMahfuz nisar
शीर्षक:::::शब्द शब्द की बात ना करियो, ये निर्मल है, निश्चल है, इसकी धरा मजबूत है, जिसपे टिका संसार, मामूली अंतर पर आ जाता है इनमें विकार, शब्द है, जैसे कोई बाण, क्या नहीं है,शब्द, शब्द शीप के भीतर की मोती है, चमचमाति विभूति है, वो जो चरणों में ला दे राक्षस को, वो जो कर दे सफ़ल जीवन को, वो जो निर्धन की भी है उतनी, जितनी की धनिक सेठों की, मज़दूरों की,कामगारों की, उतनी ही किसानों की,नेताओं की, वो जो सबको जोड़े, वो जो पल में बन जाए कारण युद्ध का, शब्दों की बात ना करियो, कहीं लिखे, कहीं पढ़ें, कहीं बोलें, हर धरातल पर है इसके अर्थ, मानव, शब्दों का ही तो कर्ज़दार है, जिनको जाप मिले है,उसको स्वर्ग, और ग़लत इस्तेमाल पर अभिशाप, उन्मत,उध्रित,शब्दों से, कल्पित,यथार्थ,शब्दों से, किरणों की माला, बरगद की छाया है शब्द, शब्दों में बड़ी चुनौती है, शब्दों में कई नीति है, शब्दों से ही संविधान, शब्दों का ही ज़मीं-आसमान, शब्द अतीत था, आज है और कल भी होगा। ✍mahfuz nisar © #message शीर्षक:::::शब्द शब्द की बात ना करियो, ये निर्मल है, निश्चल है, इसकी धरा मजबूत है, जिसपे टिका संसार, मामूली अंतर पर आ जाता है इनमे
Abdullah Qureshi
नज़्म: दुनिया हमारी। दुनियाभर के कामगारों को समर्पित एक नज़्म। #arzhai #NojotoFilms #nojotonews #nazm #majdoor #labour Pawan Rajput @
read moreRajnish Shrivastava
गुनगुनी धूप मे सब कुछ खिला खिला सा नजर आता है हर कोई अपने अंदाज़ मे धूप का आनंद लेता दिख जाता है अंदाज होता है जाड़े की धूप मे लोगो का अलग अलग कोई धूप सेकता तो कोई आँखे चार करता नजर आता है गुनगुनी धूप में ज़िंदगी के रंगों को अपने शब्दों में क़ैद करें लोगों के क्रिया कलाप फूल-पौधों, तितलियों, पंछियों के रंग-ढंग कामगारों के जोश
गुनगुनी धूप में ज़िंदगी के रंगों को अपने शब्दों में क़ैद करें लोगों के क्रिया कलाप फूल-पौधों, तितलियों, पंछियों के रंग-ढंग कामगारों के जोश #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #गुनगुनीधूप
read moreRakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त
आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त
read moreAnuj Ray
खुशबू चरित्र की" खुशबू चरित्र की, हीरे सी चमकती है, फूलों सी महकती है। खुशबू चरित्र की, जीवन के आईने में, सूरज सी दमकती है। खुशबू चरित्र की, आदर्श भी गढ़ती है, इतिहास भी रचती है। ©Anuj Ray # खुशबू की चरित्र की"
# खुशबू की चरित्र की" #कविता
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