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Maroof alam
गजल अब हंसते खेलते रहने का हुनर छोड़ दिया उसने सूख गया दरिया बहने का हुनर छोड़ दिया उसने सच्चाई की सोहबत मे रहा न जाने फिर भी क्यों कहते कहते सच कहने का हुनर छोड़ दिया उसने और कब तक सहता मार प्यार,वफ़ा एहसानों की धीरे धीरे ये सब सहने का हुनर छोड़ दिया उसने उस खंण्डहर मकान मे परिंदों के बसेरे क्या हुए की जर्जर होकर भी ढहने का हुनर छोड़ दिया उसने बहुत उठाया एक तरफा नुकसान शायद इसलियें ही अब दिल देकर दिल लेने का हुनर छोड़ दिया उसने मारूफ आलम सोहबत-साथ, संग हुनर छोड़ दिया उसने/गजल
हुनर छोड़ दिया उसने/गजल #शायरी
read moreGULAM MOHMAD
बीते पल वापस ला नहीं सकते, सूखे फूल वापस खिला नहीं सकते, कभी कभी लगता है आप हमें भूल गए, पर दिल कहता है कि आप हमें भुला नही सकते. 💔 😢 ©GULAM MOHMAD गजल गजल #NojotoTurns5
गजल गजल Turns5 #शायरी #NojotoTurns5
read moreMonika Tigraniya
प्यार के इस शहर की ऐसी रीत क्यों हर दफा क्यों मैं ही हारूँ हर दफा तेरी जीत क्यों स्वाति झा @गजल#गजल@dost
स्वाति झा @गजलगजल@dost #poem
read moreNilam Agarwalla
White आँखों में ख़्वाहिशों के सितारे लिए! क्या-क्या सोचा था मैंने हमारे लिए! ए सितमगर! नहीं छोड़ी तुमने कसर, रो रही हूँ क्यों फ़िर भी तुम्हारे लिए? तुमको सारे ज़माने ने जो ग़म दिए, उनके बदले मुझ ही से क्यों सारे लिए? न ही कन्धे, न मय, न धुआँ, न दवा, सह गई सब, बिना कुछ सहारे लिए! तुमने तोड़ा भरोसे को क्यों इस कदर? फैसले दिल ने कुछ, डर के मारे लिए! "भावना" की तो पहचान आसान है, हँस रही आँखों में अश्क़ खारे लिए! ~ भावना आरोही - #kavyitri #kavita ✍️ #word ©Nilam Agarwalla #गजल
Sunil Kumar Maurya Bekhud
वही शाम वही रात वही तारे हैं मगर मायूस दिल वही नजारे हैं लगा था कल जंग जीत कर आए आज बैठे हैं जैसे जिंदगी से हारे हैं मेरी जहां से खफा हो चांद गया गम मैं डूबे मिलते नहीं किनारे हैं गुल खिले खुशबू से घुट रहा है दम आज बेखुद हमें तड़पा रही बहारें हैं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #गजल
Sunil Kumar Maurya Bekhud
गुलों के अल्फ़ाज़ लिफाफे में आज भेज दिया तुमको ए मेरे हमराज मुझे नहीं पता है तुम होगे बागबाग या फिर बेखुद तुम हो जाओगे नाराज ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #गजल
Surendra Kumar Kahar
गजल चमत्कार हो गया,चमत्कार हो गया2 आये थे तो जाना सबने मुझे मैं हूँ कौन कोई पेहचाना ना मुझे। मैं कौन हूँ, मैं कौन हूँ मैं कौन हूँ, मैं कौन हूँ अरे जनाब खुद सोचिये "आप कौन हैं, चमत्कार हो गया,चमत्कार हो गया2 ना मैं समुन्दर, ना हि तुफां हूँ ना मैं अंधेरा,ना मैं सुबाःहूं। मैं डाकू हूँ "नहि नहि मैं तो शरिफ ईंसान हूँ। खुद को जाने नहीं तू क्या जाने मुझे, खुद को पहिचाने ना,तू क्या पहिचाने मुझे। तु जानता है कि तु कौन है तु कौन है,तु कौन है 2। अरे जनाब सोचिए तो जरा- चमत्कार हो गया,चमत्कार हो गया2। मैंढुढ़ता था जिसे वो मिलता नहीं जो चाहिए मुझको वो दिखता हि नहीं। मैं ढुढ़ रहा खुदको ये तो पता नहीं। मिला नहीं मिला आपको भी पता नहीं अरे जनाब खुद सोचिए आपको मिला आपको भी नहि चमत्कार हो गया,चमत्कार हो गया2 ©Surendra Kumar Kahar गजल
गजल #शायरी
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