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SHBIST
टक-टकी लगाकर बैठे थे दिवार-ओ-दर पर इसी सोच में डूब रहे थे कब आओगे वापस घर पर तुम भूल न जाना हमें ये याद रखोगे ना पूरी ज़िन्दगी गुज़ार दी हमनें इसी डर पर शिवानी बिष्ट✍ ©SHBIST टक टकी लगाकर बैठे थे दिवार -ओ- दर पर! . . . . . . .
सुसि ग़ाफ़िल
कितनी बंदिशें लेकर बैठा है रे तू ना सुन सकते हैं तुम्हें ना आवाज लगा सकते , टका - टकी लगी रहती है आंखों में हर पल हर लम्हें की खबर ना तुम्हें बता सकते | कितनी बंदिशें लेकर बैठा है रे तू ना सुन सकते हैं तुम्हें ना आवाज लगा सकते , टका - टकी लगी रहती है
Farhan Raza Khan
एक चांद को देखने के खातिर ना-जाने कितने चांद ज़मीं पर टक-टकी लगाए हैं।। Ek Chaand ko dekhne ke khatir Na-jane kitne Chand zami par tak-taki lagaye Hain.. एक चांद को देखने के खातिर ना-जाने कितने चांद ज़मीं पर टक-टकी लगाए हैं।। Ek Chaand ko dekhne ke khatir Na-jane kitne Chand zami par tak-ta
Nisheeth pandey
#FourLinePoetry नई गर्लफ्रेंड के फरमाइस पर गुलाबजामुन ले कर मिलने जाते हुए ... कमबख्त पुरानी गर्ल फ्रेंड से भेट हो गई ... थोड़ा रोई धोई बातों बातों में गुलाबजामुन सारा चट कर मुंस्काई ... और जो नई गर्लफेंड गुलाबजामुन की टक टकी में तीतिया मिरचाई हो गई ..... 😱 #निशीथ 😱 ©Nisheeth pandey नई गर्लफ्रेंड के फरमाइस पर गुलाबजामुन ले कर मिलने जाते हुए ... कमबख्त पुरानी गर्ल फ्रेंड से भेट हो गई ... थोड़ा रोई धोई बातों बातों में ग
Devesh Dixit
काली घटायें जब आती हैं काली घटायें, मौसम सुहाना हो जाता है। कहती हैं अब ये फिजायें, इसी में आनंद हो आता है। आगमन काली घटाओं का, मन को प्रफुल्लित करता है। स्पर्श करता हवा का झोंका, तन को भी प्रसन्न करता है। प्रतीक्षा कर रही वर्षा की, कब तक ये अब आएगी। अति हो गई अब गर्मी की, पता नहीं ये कब जाएगी। आ भी जाओ अब वर्षा रानी, इस तपन से हमको दूर करो। खत्म न हो ये हमारी कहानी, इस तपन को तुम ही चूर करो। मयूर भी अब टक-टकी लगाए, निरंतर घटाओं को निहार रहे। वर्षा की बूंदों की आस लगाए, निरंतर पीहू पीहू वे पुकार रहे। ............................................... देवेश दीक्षित 7982437710 ©Devesh Dixit #काली_घटायें #nojotohindi काली घटायें जब आती हैं काली घटायें, मौसम सुहाना हो जाता है। कहती हैं अब ये फिजायें, इसी में आनंद हो आता है।
Shivkumar
Beautiful Moon Night // लौट जा तू उजालों में // फिर वही अधूरी शाम, फिर वही अंधेरी रात । कहीं जल रहा मन, कहीं जल रहा अभिमान ।। तन्हाई की वो यादें भी, कहाँ खो गई इन रातों में, खो गये वो गहरे राज, जिनको छिपाया मैंने इन आंखों में ।। अंधेरे को चिरती हुई, रोशनी, चुभ गई थी, इन आँखों में, आँख खुली तो खुद को पाया था, मैंने फिर से इन छलावों में, बैठा था, टक टकी लगाऐ, शायद वह वापस आ जाए, पर हजारों के शोर में, न वो आए, न उनकी खबर आए, अब मत कर कोशिश, तू भी कुछ ना पाएंगे, मेरी इन यादों में, बेवजह बस डूबता चला जाऐगा, तू भी मेरे संग मेरे जज्बातों में, अब मैं हूं, अंधेरे का राही, है ये अंधेरा मेरा चिर साथी, लौट जा तू उजालों में, मत कर मेरा पीछा, ऐ मेरे पुराने साथी, ऐ मेरे पुराने साथी ।। ©Shivkumar #beautifulmoon #Nojoto #nojotohindi लौट जा तू #उजालों में फिर वही #अधूरी शाम, फिर वही #अंधेरी रात । कहीं जल रहा मन, कहीं जल रहा #अ
Nikhil Ranjan
कभी सोचा है ? इश्क़ की उमर क्या है ! कुछ दिन, कुछ साल, त’उम्र या मरने बाद तक, हाल–ए–हदिल से इज़हार ए इश्क़ तक , या सपनों से निकाल के सामने दीदार तक ! प्यारी बातों से ले के तकरार तक, या मनाने से ले के रूठ जानें तक, आंखें चुराने से ले के, टक–टकी लगाने तक ! उसके ख्याल से ले के, उसके हर लम्हे में शुमार होने तक , हाथों में उसके हाथ आने तक, या लबों के मिल जानें तक , उसके खुशबू के एहसास तक , या खुद उसकी खुशबू में महक जानें तक , सिर्फ रूह के मिलने से या जिस्म के मिल जानें तक ! कभी सोचा है ? इश्क की उमर क्या होगी ! साथ होना ही इश्क है, या दूरियां में भी इसका ज़िक्र हैं , क्या तुम्हे भी प्यार तब तक ही था ? जब तक उससे भी तुम्हारी फिक्र थी ! अगर वो साथ नहीं तो, क्या तुम्हारा इश्क़ भी फीका पड़ने लगा है ? क्या अब तुम्हारे दिल को भी उसकी फिक्र नहीं ! क्या जो कल तक अपना था, आज उससे कोई रिश्ता नहीं ! क्या अब उसकी बातों से तुम्हारा दिल पिघलता नहीं ? आंखों में नमी लाने के लिए , क्या अब उसका नाम काफ़ी नही? अगर यूं है तो , एक उमर इश्क के लिए काफ़ी नहीं !!! कविता – कभी सोचा है ? इश्क़ की उमर क्या है ! कुछ दिन, कुछ साल, त’उम्र या मरने बाद तक, हाल–ए–हदिल से इज़हार ए इश्क़ तक , या सपनों से निकाल क
Akshay Maru Jonty
एक सुकून भरा वो पल, और वो प्यारी चिड़िया याद है ....... 《READ IN CAPTION》🐦💫❤ "एक चिड़िया" रोज़ आया करती थी ,घर की खिड़की पर जब मे छोटा था ,और "तब सोचता दिल दिमाग से ज्यादा था।" चिड़िया हर रोज़ आती थी और में भी रोज़ टक टकी ल
Nisheeth pandey
यकीनन तुम चाँद हो पर, मैं पेड़ का पत्ता हूँ जो तुम्हारी चांदनी लपेट कर सोना चाहता हूं , अनन्त दूरियों के बाबजूद तुम्हारे संग मुस्कुराना चाहता हूं । मैं किसी कवि या शायर की लिखीं स्वप्न लोक का पन्ना हूँ जिसके निष्पंद पन्नो में तुम शब्दों में उतर जाना और पन्नो को जीवंत करना या फिर जैसे निशीथ पहर में करता हूँ छत के दीवारों पर अड़ कर टक टकी लगाए रहता हूं आसमान में और मेरी आँखे टिमटिमाते तारों को देख दूरियां भूल लम्बे करते हैं हथेली जिन्हे बढ़ा कर कुझ तारों को अपनी हथेली में चुराने की कौतूहल उमडती है हमेशा हमेशा के लिए... चाँद का आशमां से मेरे छत पे आना चमकती हँसी से मुझे पुकारना मेरी एहसास तुम्हें फोटो फ्रेम में कैद कर आसमान की सामने वाली दीवार में टांग दिया हो और मेरी टकटकी वाली इंतेज़ार का खत्म होना तुम्हें एकटक देखते देखते मेरी आँखें दरिया में तैरने लगे ईक्षाओं का चिड़ियों सा चहकना धरती की खुरदुरी ज़मीन में खुंद को गाड़ लूं आशाएं के पटल पे किसी दिन उसी जगह एक फूल खिलेगा और उसकी भीनी भीनी सुगंध संग समाँ कर उड़कर बादलों के चादर में लिपट कर तुम्हारे करीब पहुंचकर तुम्हे अपनी बाँहों में भर लूँगा और तुम आश्चर्य चकित हो कर पहले की ही भांति लिपट जाना और अनंत काल तक लिपटे रहना । 🤔#निशीथ🤔 ©Nisheeth pandey #Merekhayaal यकीनन तुम चाँद हो पर, मैं पेड़ का पत्ता हूँ जो तुम्हारी चांदनी लपेट कर सोना चाहता हूं ,
प्रेम और मैं
काश वक़्त को मोड़ सकता, और दोबारा जी पाता उन लम्हों को जिनमे तुम्हारा ज़िक्र था। ये काली स्याह रात कोशती है मुझे तुम्हारे न होने की कमी महसूस क