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Stories related to मलमली तारुण्य

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Patil MS

आता कुठे तिच्या मनात,
प्रेमाचा फुल फुलू लागलाय।
आत्ताच कुठे तिच्या श्वासात,
तारुण्याचा सुगंध दरवळू लागलाय।

तिच्या गालावरती पडलेली खळी,
तिच्या ओठांवरी चढलेली लाली,
तिच्या मनाने मांडलेली प्रेमाची खेळी,
आता कुठे तिलाही जाणवू लागलाय।

आत्ताच कुठे तिचे,डोळेही बोलू लागलेत,
तास अन तास स्वप्न रंगवू लागलेत,
माझ्या वाटेकडे नजर लावून, 
तीचे आरक्त डोळेही जुरू लागलेत।

चाहुलाने माझ्या, तिचे हृदय ही धडधडू लागलाय,
बोलताना का बरे तिचा कंटही दाटू लागलाय?






पाटील एम.एस। #तारुण्य

shabdaveer

shabdaveer

Om Shivam Upadhyay

"तकिये गद्दे नर्म नर्म , राते मलमली छोडकर ..... ज़िंदगी जीता है गरीब, कितनी नींदों को तोडकर....." #ओम 'मलंग'

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"तकिये गद्दे नर्म-नर्म ,
राते मलमली छोडकर .....
ज़िंदगी जीता है गरीब,
कितनी नींदों  को तोडकर....."
#ओम 'मलंग' "तकिये गद्दे नर्म नर्म ,
राते मलमली छोडकर .....
ज़िंदगी जीता है गरीब,
कितनी नींदों  को तोडकर....."
#ओम 'मलंग'

sandy

💐सकाळ असते सुगंध💐 💐सकाळ असते दरवळ💐 💐सकाळ असते तारुण्य💐 💐सकाळ असते हिरवळ💐 💐सकाळ म्हणजे श्वास💐 💐सकाळ म्हणजे प्रेमाचा ध्यास💐 💐सकाळ असते नवी पाल #Quote #nojotophoto

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 💐सकाळ असते सुगंध💐
💐सकाळ असते दरवळ💐
💐सकाळ असते तारुण्य💐
💐सकाळ असते हिरवळ💐
💐सकाळ म्हणजे श्वास💐
💐सकाळ म्हणजे प्रेमाचा ध्यास💐
💐सकाळ असते नवी पाल

sandy

अस्ताला जाणार्‍या सूर्याला बघून एकदा रात्र म्हणाली, "बराच काही काळ तळपतोस मग शेवटी असा का मावळतोस?" सूर्य म्हणाला , "वेडे , मी जातो तुझ्या #story #nojotophoto

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 अस्ताला जाणार्‍या सूर्याला बघून
एकदा रात्र म्हणाली,
"बराच काही काळ तळपतोस
मग शेवटी असा का मावळतोस?"

सूर्य म्हणाला , "वेडे , मी जातो तुझ्या

Siya Singh

यह समय नहीं अनुकुल, स्वयं को कर ले तू मजबूत पथ पर है ज्वाला की लहरे, लक्ष्य श्रृंग पे जाना है जीवन को परिभाषित करते, गिर कर फिर उठने वाले #Life #thought #nojotohindi #myvoice #Life_experience #deshkeveer

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अनिता कुमावत

इन्तज़ार में तेरे जानम कितना बदल गया हूँ मैं ! खुशनुमा सुबह सा था अब शाम सा ढल गया हूँ मैं !! कभी रुबरु आ मिलो बाकी नहीं ये तमन्ना कि ! तेरे #ख्वाब #YourQuoteAndMine #ye_mera_wala_ishq_hai #अमर्ष_राज_अमर्ष #yq_walon_ishq_padho #इन्तजा़र #ishq_shab_may_aur_mai

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इन्तज़ार में तेरे जानम कितना बदल गया हूँ मैं !
खुशनुमा सुबह सा था अब शाम सा ढल गया हूँ मैं !!

कभी रुबरु आ मिलो बाकी नहीं ये तमन्ना कि !
तेरे मलमली ख़्वाबों से ही बहल गया हूँ मैं !!
 इन्तज़ार में तेरे जानम कितना बदल गया हूँ मैं !
खुशनुमा सुबह सा था अब शाम सा ढल गया हूँ मैं !!
कभी रुबरु आ मिलो बाकी नहीं ये तमन्ना कि !
तेरे

रजनीश "स्वच्छंद"

ज्ञान कुंड।। सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा, स्वर्णयुगी ये काल-खंड अवशेषमय होता रहा। आरोह और अवरोह में, सार्थक ध्वनि कहीं मन् #Poetry #kavita

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ज्ञान कुंड।।

सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा,
स्वर्णयुगी ये काल-खंड अवशेषमय होता रहा।

आरोह और अवरोह में,
सार्थक ध्वनि कहीं मन्द थी।
कपट-क्लेश विकृत समर में,
रोध-इंद्रियां बड़ी चंद थीं।
स्फटिक धाग पिरो पिरो,
मंत्रोच्चरित बल भी मूक था।
अवधारणा प्रतिकूल थी,
पथद्रष्टा ठिठक दो टूक था।
अर्जुन सहज सखा कृष्ण भी,
अश्व-टाप सार धूमिल रहा।
अपभ्रंश शब्द कर्ण-पट पड़े,
आशय अनर्थ कुटिल रहा।
अर्थ भी बहुरुपिया हो स्वांगमय होता रहा।
सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा।

अवलोकन आलोक बिन,
सामर्थ्य शब्द उधेड़ता।
कर्म-शिल्पी कृतान्ध बन,
कुविचार लब्ध उकेरता।
जो दिग्भ्रमित वाहित हुआ,
पथ ज्ञान कब वो वाचता।
व्याधी-युक्त उपचार ले,
किस मुख मनुज को जांचता।
किस विधा परिवेश क्या,
किस शोध जीव विहित हुआ।
निःपुष्प तरु तोयहीन जलधर,
अन्तर्मन सजीव निहित हुआ।
बंशी-धुन की छांव में विलाप लय होता रहा।
सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा।

विषपान कर ले कंठ नील,
नव-युग अन्वेषित हो रहा।
कण कण धरा पुनीत धाम,
दण्ड-दोष उल्लेखित हो रहा।
देखो दमकती चल पड़ी,
झुर्रियों में खिल रहा तारुण्य है।
पत्तियों की झुरमुटों से,
धरा से मिल रहा आरुण्य है।
तम भेदती ये अरुणिमा,
स्वागत गान में सृष्टि लगी।
मानव हृदय के कपाट खोल,
ये नव-सृजित दृष्टि जगी।
दृष्टिपात से अंकुरित शीतल मलय होता रहा।
सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा।।

©रजनीश "स्वछंद" ज्ञान कुंड।।

सर्वविदित ये ज्ञान कुंड स्वतः क्षय होता रहा,
स्वर्णयुगी ये काल-खंड अवशेषमय होता रहा।

आरोह और अवरोह में,
सार्थक ध्वनि कहीं मन्

vikrant shelke, zankar

सुंदर जगाचा भेसूर चेहरा ………. का एखाद्या माणसाला कधी वाटतं दुसऱ्याचा जीव घ्यावा कधी एकांकि संख्येने किंवा कधी शतकांच्या संख्येने का व्ह

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सुंदर जगाचा भेसूर चेहरा ............ सुंदर जगाचा भेसूर चेहरा ……….

का एखाद्या माणसाला कधी वाटतं दुसऱ्याचा जीव घ्यावा
 कधी एकांकि संख्येने किंवा कधी शतकांच्या संख्येने
का व्ह
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