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H Singh Rajput
यहाँ अच्छा कुछ नहीं बस ज़िन्दगी ढो रहे है। अपने दर्द को हर महफ़िल में रो रहे है।। अक्सर वो कहते थे कि आधे पागल हो आप पर अब लगता हैं? पूरा हो रहे है।।। पागलपंथी
पागलपंथी
read moreV Singh KyS
मेरे पास अब सिर्फ कागज के तीर है और जब भी कोई तीर चलता है, तो वो पानी नहीं मेरा लहू मांगता है। विद्रोह
विद्रोह
read moresomnath gawade
साहेबांची 'उपद्रवी' कृती वाढली की, कर्मचारी 'विद्रोह' वृत्ती कडे वळू लागतात. #विद्रोह
Author Harsh Ranjan
पेट भारी होता है! पहली बार एक गर्भवती ने ये बोला था, उससे पहले खास कर कि मर्दों को ऐसा लगता था कि पेट और परिवार दुनिया की दो सबसे बड़ी प्रेरणाएं हैं। मैंने लंबे रास्ते पर गौर किया हरेक के पैर से कुछ पेट बंधे हैं। अब मुझे लगता है कि पेट परंपरा के जूतों से भी भारी है। शौक, जज्बे और जोश की, कुछ कर गुजरने के सोच की ये राहें अब सफर के लिहाज से ठंडी हैं। यहाँ अब कुछ बड़ी दुकानें और कुछ रईस लोगों की मंडी हैं, यहाँ के समान शोपीस के लिए उत्तम हैं, जिन्हें चखा जा सके वो प्रसाद से कहाँ कम हैं! मुझे पता है कि चम्मच बेचकर मैं वहाँ जा नहीं सकता, सफर का लती हूँ सो निकल गया, मेरे पेट में सिर्फ चलने की मंशा जलती है, कुछ नफ़रतें, कुछ चाहतें बेरोक-टोक मेरी नसों में चलती हैं। मेरे कानों में एक साधु की बात गूंजती है, कुछ न पाने का वैराग्य, कुछ न खोने की निश्चिन्तता का भाव इंसान को अलग राह मोड़ देता है उसका छिटक जाना कल-पुर्जों की भीड़ से एक तंत्र को बीचो-बीच तोड़ देता है। विद्रोह
विद्रोह
read moreAuthor Harsh Ranjan
पेट भारी होता है! पहली बार एक गर्भवती ने ये बोला था, उससे पहले खास कर कि मर्दों को ऐसा लगता था कि पेट और परिवार दुनिया की दो सबसे बड़ी प्रेरणाएं हैं। मैंने लंबे रास्ते पर गौर किया हरेक के पैर से कुछ पेट बंधे हैं। अब मुझे लगता है कि पेट परंपरा के जूतों से भी भारी है। शौक, जज्बे और जोश की, कुछ कर गुजरने के सोच की ये राहें अब सफर के लिहाज से ठंडी हैं। यहाँ अब कुछ बड़ी दुकानें और कुछ रईस लोगों की मंडी हैं, यहाँ के समान शोपीस के लिए उत्तम हैं, जिन्हें चखा जा सके वो प्रसाद से कहाँ कम हैं! मुझे पता है कि चम्मच बेचकर मैं वहाँ जा नहीं सकता, सफर का लती हूँ सो निकल गया, मेरे पेट में सिर्फ चलने की मंशा जलती है, कुछ नफ़रतें, कुछ चाहतें बेरोक-टोक मेरी नसों में चलती हैं। मेरे कानों में एक साधु की बात गूंजती है, कुछ न पाने का वैराग्य, कुछ न खोने की निश्चिन्तता का भाव इंसान को अलग राह मोड़ देता है उसका छिटक जाना कल-पुर्जों की भीड़ से एक तंत्र को बीचो-बीच तोड़ देता है। विद्रोह
विद्रोह
read moreअशोक द्विवेदी "दिव्य"
जो भी करो बेहद करो, इश्क़ करो या विद्रोह करो, क्योंकि अंजाम दोनो के एक है। #इश्क़ #विद्रोह
Dhananjay(dhanuj) Sankpal
_#कवी'धनूज. वाटे विद्रोह करावा विद्रोह लिहावा समाजकंटक गोळा करोनी चौका-चौकात जाळावा भेदभाव जातीचा सांगणारा, करणारा जातीवंत जरूर निघावा वाटे विद्रोह करावा विद्रोह लिहावा अंधारात पाप, उजेडात पुण्य करणारा एका बापाचा ना निघावा विचार बलात्कारी, नजर बलात्कारी आजूबाजूला यांचा विसावा औलादी ओढ्या नाल्याच्या ओढ्या किनारी पुराव्या वाटे विद्रोह करावा विद्रोह लिहावा अंधश्रद्धा, जातीभेद माजवणारा रस्त्याला तानावा पाठीत दगड मारोनी दगडानी ठेचावा का भडकतोस मस्तकी? प्रश्न करोनी शिरा गळ्याच्या चाकू फिरवूनी तोडाव्या वाटे विद्रोह करावा विद्रोह लिहावा वाटे विद्रोह करावा विद्रोह लिहावा.......................... . ©Dhananjay(dhanuj) Sankpal #विद्रोह #धनूज #शायरी
#विद्रोह #धनूज #शायरी #मराठीशायरी
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