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Eklakh Ansari
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१ हमारे सामने गिरधर खड़े हैं । सकल संसार के रहबर खड़े हैं ।।२ करें कैसे तुम्हारा मान अब हम । पलटकर देखिए झुककर खड़े हैं ।३ डरूँ क्यूँ आँधियों को देखकर मैं । अभी पीछे मेरे गुरुवर खड़े हैं ।।४ मसीहा जो बताते थे खुदी को । वही अब देख बुत बनकर खड़े हैं ।।५ अभी तुम बात मत करना कोई भी । हमारे साथ सब सहचर खड़े हैं ।।६ मिली है योग्यता से नौकरी यह । तभी तो सामने तन कर खड़े हैं ।।७ पकड़ लो हाथ तुम अब तो किसी का । तुम्हारे योग्य इतने वर खड़े हैं ।।८ निभाओ तो प्रखर वादा कभी अब । अभी तक देखिए छत पर खड़े हैं ।। २६/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१ हमारे सामने गिरधर खड़े हैं ।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- आज बैठा मुँह छुपाकर कौन है । दो उसे आवाज़ घर पर कौन है ।। जिसकी खातिर कर रहा हूँ मैं दुआ । इस जहाँ में उससे सुंदर कौन है ।।२ देख कण-कण में बसे प्रभु राम जी । पूछता फिर क्यों कि अंदर कौन है ।।३ और कुछ पल धीर धर ले तू यहाँ । वक़्त बोलेगा धुरंधर कौन है ।।४ एक तेरे सिर्फ़ कहने से नहीं । है खबर सबको सिकंदर कौन है ।।५ दौड़ आयेगा हमारे पास तू । गर पता तुझको हो रहबर कौन है ।।६ तुम कहो तो मान भी लें बात हम । बस बता दो तुम विशंभर कौन है ।।७ बंद हो जायेगी तेरी बोलती जानेगा जब तू कलंदर कौन है ।।८ हम सभी इंसान हैं तेरी तरह । खोजता फिर क्यों तू बंदर कौन है ।।९ इस कदर मत कर गुमाँ खुद पर बशर जान ले लिखता मुकद्दर कौन है ।।१० आज दिल की बात मैं पूछूँ प्रखर । तू प्रखर है तो महेन्दर कौन है ।।११ १९/०३/२०२४ -महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- आज बैठा मुँह छुपाकर कौन है । दो उसे आवाज़ घर पर कौन है ।। जिसकी खातिर कर रहा हूँ मैं दुआ । इस जहाँ में उससे सुंदर कौन है ।।२ देख कण-क
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Blue Moon तुम्हारी नियत में खुदा के *अहकाम नजर नहीं आते बखूदा इसलिए हम तुम्हें नज़र नहीं आते//१ सच में बईमानो की यही एक ख़राबी है*मिजान _ए _अदल के इन्हे मंजर नजर नहीं आते//२ जिनको फिक्र नहीं अपने अंजाम_ए-हश्र की, उनको*दोजख ए दहर नजर नहीं आते//३ *चश्म ए हासिद से अपनी*मसर्रतें बचाके रखना ,मासूमों को नजारे*सहर के नजर नहीं आते//४ *मिजाने_विरासत*दस्त में थामना हरेक के बस की बात नहीं,ये और बात है वालिदेन में भी थामने के आसार नजर नहीं आते // "शमा"एहकाम ए खुदा पर वही चलते है,जिन्हे खौफ ए खुदा हो,के *मुनाफिकों को खुदा के *रहबर नजर नहीं आते//६ #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #bluemoon तुम्हारी नियत में खुदा के *अहकाम नजर नहीं आते बखूदा इसलिए हम तुम्हें बशर नज़र नहीं आते//१ *निर्देश,फरमान सच में बईमानो की यही एक
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Sandeep Rahbraa
जिंदगी के हर इक मकाम से नाकाम लौट आया हूं ' रहबर ' हूं हर इक मोड पर एक कहानी छोड़ आया हूं मिलते नही है मंजिल यूं ही राहों में राही को अपनी बिखरे हुए किरदार - ए - जवानी छोड़ आया हूं। ©Sandeep Rahbraa जिंदगी के हर इक मकाम से नाकाम लौट आया हूं ' रहबर ' हूं हर इक मोड पर एक कहानी छोड़ आया हूं मिलते नही है मंजिल यूं ही राहों में राही को अ
Gurudeen Verma
शीर्षक- मेरे रहबर, मेरे मालिक ---------------------------------------------------------- मेरे रहबर मेरे मालिक, मुझको तुझ पर यकीन है। मुलाजिम हूँ फकत तेरा, तेरी खिदमत करता हूँ।। तेरी तकरीर तेरी तहरीक , इबारत है जीने की । तेरी तालीम की तामिल ,हर महफिल में करता हूँ।। मेरे रहबर मेरे मालिक-------------------।। कोई दूजा नहीं है और, वतन में तु ही मकबूल है। तेरी जो भी नसीहत है, मुझको दिल से कबूल है।। मुस्तहिबी करूँ तेरी, तुझको तरजीह देता हूँ। मुलाजिम हूँ फकत तेरा, तेरी खिदमत करता हूँ।। मेरे रहबर मेरे मालिक-----------------।। देखता हूँ हरपल मैं, हकीकी तेरी शिरकत में । मुझको राह दिखाई है, तुमने सदा गफ़लत में।। रिज्क तेरी जमीं की है, इबादत तेरी करता हूँ। मुलाजिम हूँ फकत तेरा, तेरी खिदमत करता हूँ।। मेरे रहबर मेरे मालिक-----------------।। एक अहसान यह कर दे,मुझको यह खयाल भी दे दे। तेरी तहजीब ना भूलूँ , ऐसा एक ख्वाब भी दे दे ।। मांगू सबकी खुशियां मैं, दिल से फरियाद करता हूँ। मुलाजिम हूँ फकत तेरा,तेरी खिदमत करता हूँ।। मेरे रहबर मेरे मालिक---------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #मेरे रहबर मेरे मालिक
Eklakh Ansari
Aftab
आइना सामने रखोगे तो याद आऊँगा अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊँगा रंग कैसा हो ये सोचोगे तो याद आऊँगा जब नया सूट ख़रीदोगे तो याद आऊँगा भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊँगा ●●● राजेन्द्र नाथ 'रहबर' ©Aftab आइना सामने रखोगे तो याद आऊँगा अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊँगा रंग कैसा हो ये सोचोगे तो याद आऊँगा जब नया सूट ख़रीदोगे तो याद आऊँगा
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- तुमसे प्यारे नगर नहीं होते । आप जब भी इधर नहीं होते ।।१ हाँ दिवानों के घर नहीं होते । प्रेम में जो प्रखर नहीं होते ।।२ ज़िन्दगी हर कदम कहाँ आसाँ । हर तरफ तो डगर नहीं होते ।।३ हर तरफ खून की बहीं नदियाँ । क्या कहूँ अब बशर नहीं होते ।।४ आज चुप क्यों कलम तुम्हारी है । क्या तुम्हें कुछ खबर नहीं होते ५ कुछ न भाता मुझे यहाँ तुम बिन । आप जो अब नज़र नहीं होते ।।६ जिनको मिलते नही यहाँ रहबर । क्या कहूँ उनके सफ़र नही होते ।।७ मान भी लो कभी हमारी तुम हर बशर मे बसर नही होते ।।८ वें प्रखर पर किए सितम इतना । और कहते कहर नहीं होते ।।९ २९/०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR तुमसे प्यारे नगर नहीं होते । आप जब भी इधर नहीं होते ।।१ हाँ दिवानों के घर नहीं होते । प्रेम में जो प्रखर नहीं होते ।।२ ज़िन्दगी हर कदम कहाँ