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prakash Jha

मेरी दरियादिली की तुम इम्तहान लो, मैं हूँ क्या मुझे तुम पहचान लो। मुझे नहीं चाहिए तुम्हारी ये झूठी रहम, मेरे ज़ख्म #शायरी #freebird #prakashjha #prakashjha_shyari #prakash_jha #prakashjha_gazal

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मेरी  दरियादिली   की  तुम   इम्तहान  लो,
मैं   हूँ    क्या    मुझे   तुम   पहचान   लो।

मुझे  नहीं  चाहिए  तुम्हारी  ये  झूठी रहम,
मेरे ज़ख्मो की गहराइयों को तुम जान लो।

खींचोगे  तो  फट  जाएगा  ये  दामन  मेरा,
लो  झुक  गया हूँ मैं तुम मेरा  गिरेबान लो।

बसर  कर लूंगा मैं  अपनी इन्हीं हालातो में,
मेरी  हालातो से कुछ तो भी तुम  ज्ञान लो।

चाहने   न    चाहने    से   होता   है   क्या,
ये    चाहने    बालो   से   तुम   जान   लो।

गरीबो की  झोपड़ी  में सिर्फ धुंआ ही धुंआ,
मिट जाए गरीबी ऐसा कोई तुम वरदान लो।

मदहोश  हो  कर  बैठे  है  कई शराबी यहां,
होश  बालो  को   तुम  जान - पहचान  लो।

झूठी  खबर   आज  अखबारों  में  है  छपा,
मैंने  जो  कहा  वो  इक  बार  तुम मान लो।

ये आज का शहर  तल्ख़ मिजाजी  है बहुत,
तुम  अपने  तेवर  का खुद तुम  परवान लो।

किसी और को  तुम अपना बनाने  से पहले,
दिल को तोड़ने के लिए तुम तीर-कमान लो।

मुसाफ़िर  हूँ  चलते रहना  ही मुकद्दर है मेरा,
गर हो गई कुछ भूल तो मेरा तुम  चलान लो।

©prakash Jha मेरी  दरियादिली   की  तुम   इम्तहान  लो,
मैं   हूँ    क्या    मुझे   तुम   पहचान   लो।

मुझे  नहीं  चाहिए  तुम्हारी  ये  झूठी रहम,
मेरे ज़ख्म

ashish gupta

#PenPaper ऐसा पहली बार नहीं जो तू समझा अनुभव से वह दूसरों के लिए विचार नहीं है गुम भी नहीं जिंदगी और दिल किसी और के लिए तैयार भी नहीं #Poetry

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ऐसा पहली बार नहीं
 जो तू समझा अनुभव से
वह दूसरों के लिए विचार नहीं है

गुम भी नहीं जिंदगी और दिल
किसी और के लिए तैयार भी नहीं
करता तू जिसको बेहद प्यार
आंखों में उसके इंतजार नहीं है

वक्त आने पर वह काम आया
उस पर इंसान को कोई एतवार नहीं है
बिकता है जमीर जहां रोज
कह लाता वह बाजार नहीं

पढ़ता रहा सुबह से शाम जिसको
हाथों में आज अखबार नहीं है
शब्दों में होने का एहसास करता
और दुनिया खाती कि तू कलमकार नहीं है

©ashish gupta #PenPaper 

ऐसा पहली बार नहीं
 जो तू समझा अनुभव से
वह दूसरों के लिए विचार नहीं है

गुम भी नहीं जिंदगी और दिल
किसी और के लिए तैयार भी नहीं

Devesh Dixit

#अपराधों_की_श्रृंखला #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry अपराधों की श्रृंखला (दोहे) अपराधों की श्रृंखला, का फिर से विस्तार। जगह-जगह से #Poetry #sandiprohila

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Ramandeep Kaur

"विज्ञान का सुख या प्रकृति का आनंद" लघु कथा "निशा चाय बन गयी क्या ?" राकेश ने अखबार से नजर हटाकर कहा। "नहीं आज अच्छा मौसम लग रहा है, बादल भी #Nojotovoice #nojotohindi #barish #kalakaksh #nojotokhabri #nojototales

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Nisheeth pandey

◆शीर्षक- पीड़ित अखबार◆ __________ घर के किसी एकांत शांत कोने में , अखबार ले कर बैठ गया #poem #AlfaazAapke #SpeakOutLoud #MoralStories #Chandrabalam

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◆शीर्षक- पीड़ित अखबार◆

__________
घर के किसी एकांत 
शांत 
कोने में ,
अखबार ले कर
 बैठ गया 
आज अखबार की 
रंगरूप 
पर नज़रें टिकी ,
मन ने कहा 
देखो निशीथ
पूरे देश दुनिया का खबर तुम्हारे घर तक
 पहुंचाने वाला
अखवार के पन्ने देखो 
मटमैला सा
 खुद सहारे की भीख मांगता सा 
पीलिया का बीमार सा 
पीलापन लिये
 कितना बीमार सा लगता है ....
मटमैला सा पीलापन पीड़ित सा अखबार... 

अख़बार में 
कल का घटनाक्रम
 आज काली श्याही में घुल गई ,

प्रथम पन्ने पर चेतावनी ,
कोरोना के कब्जे में देशवासी,

मानवता की विचित्र सार,
बुद्धिजीवीयो के बोलबच्चन हज़ार,
फिर भी मानसिक रूप से
बीमार...

बूढ़े माँ-बाप 
अपने ही घर से बेघर,
3साल 6 साल की मासूम बच्ची का बलात्कार....
पन्ने पलटते हैं अब,
एक मौलवी का एलान ,
अपराध का संरक्षण ही
 सबसे बड़ा मजहब की दुहाई
 देश को डराने धमकाने का बोल बचन..

थोड़ी ठंडी थोड़ी गर्म चाय की चुस्की के साथ 
पन्ने पलटते रहे..

विदेशी घुसपैठ,
 रोहिंग्या का विभिन्न जगहों पर कब्जा ,
खाने पर बढ़ता वैट,
रोज धराशायी होते जेट,

अभी आधा अखबार ही पलटा था..
सारा देश भ्रस्टाचार में ,
पानी मे चीनी की तरह घुल रहा था,

कोयला भी काला धन 
उगल रहा था...
देशद्रोही देश के खिलाफ
 आग उगल रहा था , प्रधानमंत्री को अपशब्द बोल रहा था ....

सडको पर
 मौत बाँटते तब्लीगी ,
 फल सब्जी वाले और रईसजादे...
आधे गैर मुल्क वाले
 तो आधे अपने देश वाले..

क्रिकेट के शोर,
 फुटबॉल के उभरते गोल,
अभिनेताओ के बदलते रोल..
बच्चे नशे में धुत ....

 मंगल और चांद पर 
जिंदगी तलासते वैज्ञानीक,
धरती पर सुखता  पानी..
आज के अखबार के पन्नों का 
ताज़े थे खबरें पर
 समझ में आ गया था 
क्यों पीली पड़ चुकी थी पन्ने ..
मेरे चेहरे पर बदलते तेवर थे ,
 मन व्याकुल
 हो रहा था अब ...
क्या बताऊँ 
हमने पढ़ ली क्या अखबार  .....
अब जल रहा 
सारा शहर
 है आखों में ......

🤔निशीथ🤔

©Nisheeth pandey ◆शीर्षक- पीड़ित अखबार◆

__________
घर के किसी एकांत 
शांत 
कोने में ,
अखबार ले कर
 बैठ गया

Kulbhushan Arora

25 मार्च का दिन अजीबोगरीब दिन था, किसी को कुछ समझ नहीं आया सिवाय इसके की हमें घर से बाहर नहीं जाना है। उमा हमारे घर में काम करती है,ये सब ख़ #yqकुलभूषणदीप

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Yq premium,
अगला दिन.... 25 मार्च का दिन अजीबोगरीब दिन था, किसी को कुछ समझ नहीं आया सिवाय इसके की हमें घर से बाहर नहीं जाना है।
उमा हमारे घर में काम करती है,ये सब ख़

Sweety Mamta

घुँघरु कई सालों पहले अलमारी में रखे घुंघरू आज फिर अलमारी से झांकने लगे थे। इसलिए तो मौका पाते ही ,दोनों पैरों में पहनने वाले घुंघरू बाहर नि

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 घुँघरु

कई सालों पहले अलमारी में रखे घुंघरू आज फिर अलमारी से झांकने लगे थे। इसलिए तो मौका पाते ही ,दोनों पैरों में पहनने वाले घुंघरू बाहर नि

Adhurapathak

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kalpesh nagpure

अख़बार जिंदगी भी "अखबार" बन गयी
पढकर भूल जाते है लोग #अखबार

MS_HINDUSTANI

अखबार #विचार #HBDayRKLaxman

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#HBDayRKLaxman,आज के अख़बार में ख़ास ये है कि 


बिक गए अखबार तो क्या,
दो पैसों की चाह में
अभी कवि की कलम नहीं बिकी, 
सारे संसार में अखबार
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