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RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
एक अजनबी
हुकूमत की नज़र में थीं बग़ावती नज़रें बे-ख़ौफ़ चली भीड़ जिसपे रस्ता वही सुनसान हुआ था आग़ोश में पानी मगर छोड़ दिया जलने को दरिया भला रेत पे कब मेहरबान हुआ इक पल में छीन ली ज़लज़ले ने ज़ौ दिये की घर अभी रौशन था अभी अंधा मकान हुआ मुंसिफ़ बदल गये मगर मुक़दमा नही सुलझा झूठ की आग में सच हर बार श्मशान हुआ..। 🥀🥀🌸🌸🥀🥀 ©एक अजनबी #मुंसिफ़ :- जज, न्याय करने वाला R K Mishra " सूर्य " VIPUL KUMAR अदनासा- बादल सिंह 'कलमगार' भारत सोनी _इलेक्ट्रिशियन Sana naaz. Mahira K
Mysterious Girl
Anil Ray
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 🌷🌷🌷दिल से शुक्रिया गुलाब तेरा🌷🌷🌷 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 खामोश! ही भेजा था किताब में उसने गुलाब कमबख्त! खुशबू मोहब्बत पाठ पढाने लगी। ख्वाब! था मोहब्बत को दिल में बसाकर रखें कमाल! वों गुलाब था, खुशबू महकाने लगी। अब दिन में चैन नहीं, रातें गुजरती ख्वाबों में महज़ खुशबू-ए-गुलाब मोहब्बत हँसने लगी। अब चाहे गुलाब दूर हो, बस खुशबू पास रहे हसीं ख्वाब हर्षित पंखुड़ियाँ है सँवरने लगी। सिर्फ! अब खूशबू-ए-एहसास से मदहोश हूँ गुलाब की गुलाबी जिंदगी भी बहकने लगी। हसीं! गुलाब के स्पर्श से, और महका गुलाब मोहब्बते-खुशबू को कलम भी लिखने लगी। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 ©Anil Ray 🌷🌷 🥀जीवन अभिराम हो गया🥀 🌷🌷 छुपाकर भेजा था, प्यार से गुलाब उसने खत में फिर खुशबू से सारे जहां में चर्चा आम हो गया। प्रत्युत्तर! में मैंने ह
प्रशांत की डायरी
सुरमई साहित्य
RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
मैं फूल नहीं जो स्वाभिमान खोकर चरणों में गिर जाऊँ । अनुचित की मान प्रतिष्ठा में, अपने वचनों से फिर जाऊँ । नैतिकता के पावन घट का, चौराहे पर अपमान करूँ । सम्भव ही नहीं हठी, निष्ठुर, दुर्जन का मैं गुणगान करूँ । गुणगान करें जिनको खुद की, सुचिता का कुछ भी भान नहीं । गुणगान करें जो स्वाभिमान का, कर सकते सम्मान नहीं । गुणगान करें जो चाटुकारिता में सब कुछ कर सकते हैं । गुणगान करें जो स्वार्थ हेतु, दो कौड़ी में मर सकते हैं । गुणगान करें जो स्वान सरीखे चरण चाँटते फिरते हैं । यों तो खुद का भी ज्ञान नहीं, पर ज्ञान बाँटते फिरते हैं । मैं स्वाभिमान हूँ सुचिता का, नैतिकता का अनुपालक हूँ । मैं क्राँति शिखा का द्योतक हूँ, मैं परिवर्तन का चालक हूँ । मैं धर्मध्वजा की रक्षा में, निज प्राण गँवा भी सकता हूँ । मैं सत्य न्याय रक्षार्थ गरल, हँसते-हँसते पी सकता हूँ । करुणा की सत्ता नहीं जहाँ, उन हृदयों का सम्मान करूँ ? सम्भव है क्या दो कौड़ी के चिंतन का मैं गुणगान करूँ..? जिनमे 'मैं' को समझाने का, थोड़ा सा भी सामर्थ्य नहीं । सच को भी सच कह जाने का, थोड़ा सा भी सामर्थ्य नहीं । जो विद्वानों की सभा बीच, अज्ञानी सा व्यवहार करे । जो सज्जन के मृदु वचनों पर, कर्कश तीरों का वार करे । जो मद में ऐसा चूर, ज्ञान के आगे झुकना भूल गया । जो हठ की खातिर पर्वत के सम्मुख भी रुकना भूल गया । सच पूछो तो ऐसा मानव अज्ञानी है, अभिमानी है । वह स्वार्थ भरे घट का गंदे कीचड़ के जैसा पानी है । वह भूल गया हाथी मद में यदि बर्बरता कर सकता है । तो चींटी की हिम्मत से वह गिर सकता है मर सकता है । दुर्योधन का मद एक दिवस झुक जाता है, यह निश्चित है । तो चाटुकार शकुनी भी ठोकर खाता है, यह निश्चित है ।। ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #स्वाभिमान #कविता दिनेश कुशभुवनपुरी Dheeraj Srivastava मनोज मानव राजेन्द्र सनातनी कर्म गोरखपुरिया Kalaa Vyas Karan Kumar Shaurya Kirdar RD
Sultan Mohit Bajpai